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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 9
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    उ॒तो पति॒र्य उ॒च्यते॑ कृष्टी॒नामेक॒ इद्व॒शी । न॒मो॒वृ॒धैर॑व॒स्युभि॑: सु॒ते र॑ण ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒तो इति॑ । पतिः॑ । यः । उ॒च्यते॑ । कृ॒ष्टी॒नाम् । एकः॑ । इत् । व॒शी । न॒मः॒ऽवृ॒धैः । अ॒व॒स्युऽभिः॑ । सु॒ते । र॒ण॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतो पतिर्य उच्यते कृष्टीनामेक इद्वशी । नमोवृधैरवस्युभि: सुते रण ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उतो इति । पतिः । यः । उच्यते । कृष्टीनाम् । एकः । इत् । वशी । नमःऽवृधैः । अवस्युऽभिः । सुते । रण ॥ ८.१३.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 9
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    सम्प्रति परमात्मोपासना वर्ण्यते।

    पदार्थः

    (उतो) अथवा (वशी) सर्ववशः (यः) यः परमात्मा (कृष्टीनाम्) प्रजानाम् (एकः, इत्, पतिः) एक एव पालकः (उच्यते) कथ्यते तम् (नमोवृधैः, अवस्युभिः) स्तोतृभिः रक्षामिच्छद्भिः (सुते) साक्षात्कृते सति (रण) हे उपासक ! स्तुहि ॥९॥

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    विषयः

    प्रजापतिरपि स एवास्तीति दर्शयति ।

    पदार्थः

    उतो=अपि च । यः=इन्द्रः । वशी=सर्वप्राणिनां वशकर्ता । एक इद्=एक एव नान्यः । कृष्टीनाम्=मनुष्याणाम् । पतिः=पालयिता स्वामीत्युच्यते । कैः । नमोवृधैः=परमात्मानं नमस्कृत्य पूजयित्वा ये जगति वर्धन्ते ते नमोवृधास्तैर्नमोवृधैरीश्वरभक्तैः । पुनः । अवस्युभिः=सर्वेषां प्राणिनामवो रक्षणं भवेदिति ये सर्वदा कामयन्ते तेऽवस्यवस्तैः । अतः हे इन्द्र ! सुते=अस्माकं गृहापत्यादिवस्तुनि अथवा शुभकर्मणि । रण=रमस्व । यद्वा । हे स्तोतः । सुते=यज्ञे । तमेव रण=स्तुहि । रणतिः शब्दार्थः ॥९ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अब कल्याणार्थ परमात्मा की उपासना करना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (उतो) और (यः) जो परमात्मा (वशी) सबको वश में रखनेवाला (कृष्टीनाम्) सब प्रजाओं का (एकः, इत्, पतिः) एक ही पालक (उच्यते) कहा जाता है, हे उपासक (नमोवृधैः, अवस्युभिः) रक्षा को चाहनेवाले स्तोताओं द्वारा (सुते) साक्षात्कार करने पर (रण) हे उपासक ! उसकी स्तुति करो ॥९॥

    भावार्थ

    हे उपासक जनो ! तुम स्तोताओं द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कर उसकी स्तुति, प्रार्थना तथा उपासना में प्रवृत्त होओ, क्योंकि एकमात्र परमात्मा ही सबका रक्षक, सबको वश में रखनेवाला और एक वही सब प्रजाओं का पालक है ॥९॥

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    विषय

    प्रजापति भी वही है, यह दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (उतो) और (यः) जो इन्द्र (वशी) सर्व प्राणियों को अपने वश में करनेवाला है और जो (कृष्टीनाम्) मनुष्यों का (एकः+इत्) एक ही (पतिः) पालक स्वामी (उच्यते) कहलाता है । कौन उसको एक पति कहते हैं, इस आकाङ्क्षा में कहते हैं (नमोवृधैः) जो ईश्वर को नमस्कार और पूजा करके इस जगत् में बढ़ते हैं अर्थात् ईश्वर के भक्त और जो (अवस्युभिः) सर्व प्राणियों की रक्षा होवे, ऐसी कामनावाले विद्वान् हैं, वे परमात्मा को एक अद्वितीय पति कहते हैं । अतः हे इन्द्र तू (सुते) हमारे सम्पादित गृह अपत्यादि वस्तु में अथवा शुभकर्म में (रण) रत हो । अथवा हे स्तोता (सुते) प्रत्येक शुभकर्म में (रण) उसी की स्तुति करो ॥९ ॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यों ! परमात्मा सर्वपति है, ऐसा जानकर उसका गान करो ॥९ ॥

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    विषय

    पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् प्रभो ! तू ( सप्तिभिः ) सर्पणशील, वेगवान् सूर्यादि के प्रकाशादि सुखों से ( नः जुषाणः ) हमें प्रेम करता हुआ ( नः आगहि ) हमें प्राप्त हो । हे प्रभो ! हमें ( उदिते ) उदय हुए और (मध्यन्दिने) दिन के मध्य समय में विद्यमान (दिवः सूरे) ज्ञान के प्रकाशक, सूर्यवत् तेजस्वी, प्रखर पाप के नाशक स्वरूप ( त्वा हवे ) तुझ से प्रार्थना करता हूं और ( त्वा हवे ) तुझे ही स्वीकार करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    नमोवृधैः अवस्युभिः

    पदार्थ

    [१] (उत उ) = निश्चय से (यः) = जो आप (पतिः उच्यते) = संसार के स्वामी कहे जाते हैं। वे आप (कृष्टीनाम्) = सब मनुष्यों के (एकः इत्) = अकेले ही (वशी) = वश में करनेवाले हैं। सब के आप ही शासक हैं। [२] (नमोवृधैः) = नमन की भावना को उत्तरोत्तर अपने में बढ़ानेवाले, (अवस्युभिः) = रक्षणेच्छु पुरुषों के साथ जो भी व्यक्ति रोगों व वासनाओं से अपना रक्षण करते हैं, उन पुरुषों के साथ सुते सोम का सम्पादन होने पर आप (रण) = (रमस्व) आनन्द का अनुभव कीजिये । अर्थात् ये लोग आपकी प्रीति के पात्र बनें।

    भावार्थ

    भावार्थ- सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के शासक प्रभु के वे व्यक्ति प्रिय होते हैं, जो [क] नम्रता को धारण करते हैं, [ख] अपने शरीरों को रोगों से तथा मनों को वासनाओं के आक्रमण से बचाते हैं, [ग] तथा शरीर में सोम शक्ति [वीर्य शक्ति] का रक्षण करते हैं।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    And lord and master he is called, of the people also, the one and only master, controller and sustainer. O lord, delight in the soma, songs and acts of homage created, sung and performed by devotees who exalt you with homage and obedience and aspire for sustenance and protection.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे माणसांनो! परमात्मा सर्वांचा पती आहे हे जाणून त्याचे गान करा. ॥९॥

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