ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 3
तम॑ह्वे॒ वाज॑सातय॒ इन्द्रं॒ भरा॑य शु॒ष्मिण॑म् । भवा॑ नः सु॒म्ने अन्त॑म॒: सखा॑ वृ॒धे ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । अ॒ह्वे॒ । वाज॑ऽसातये । इन्द्र॑म् । भरा॑य । शु॒ष्मिण॑म् । भव॑ । नः॒ । सु॒म्ने । अन्त॑मः । सखा॑ । वृ॒धे ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमह्वे वाजसातय इन्द्रं भराय शुष्मिणम् । भवा नः सुम्ने अन्तम: सखा वृधे ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । अह्वे । वाजऽसातये । इन्द्रम् । भराय । शुष्मिणम् । भव । नः । सुम्ने । अन्तमः । सखा । वृधे ॥ ८.१३.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
विषयः
अथ परमात्मन आह्वानं वर्ण्यते।
पदार्थः
(शुष्मिणम्) बलवन्तम् (तम्, इन्द्रम्) तं परमात्मानम् (वाजसातये) बलोत्पादके कर्मणि (भराय) यज्ञसिद्धये (अह्वे) आह्वये। हे परमात्मन् ! (नः) अस्माकम् (सुम्ने) सुखे (अन्तमः) समीपतमः (वृधे) वृद्ध्यै (सखा) मित्रम् (भव) भूयाः ॥३॥
विषयः
ईश्वरः स्तूयते ।
पदार्थः
तम्=सुप्रसिद्धतमम्=शुष्मिणम्=महाबलिष्ठमिन्द्रम् । वाजसातये= वाजानां धनानां विज्ञानानां च सातिर्लाभो येन तस्मै । भराय=यज्ञाय । भ्रियन्ते पोष्यन्ते जीवा येन स भरो यज्ञः । अह्वे=आह्वये=प्रार्थये । “लिपिसिचिह्वश्चात्मनेपदेष्वन्यतरस्यामिति ह्वयतेश्छान्दसो लङि च्लेरङादेशः” । हे इन्द्र ! त्वम् । नोऽस्माकम् । सुम्ने=सुखे धने वा । अन्तमः=अन्तिकतमः सन्निकृष्टतमो भव “तमे तादेश्चेत्यन्तिकशब्दस्य तादिलोपः” अपि च । वृधे=वृद्ध्यै पदार्थानाम् । सखा=मित्रभूतो भव । यथा सखा वृद्ध्यै प्रयतते तद्वदित्यर्थः ॥३ ॥
हिन्दी (4)
विषय
अब सर्वोत्कृष्ट परमात्मा का यज्ञादि कर्मों में आह्वान करना कथन करते हैं।
पदार्थ
(शुष्मिणम्) प्रशस्त बलवाले (तम्, इन्द्रम्) उस परमात्मा को (वाजसातये) बलोत्पादक (भराय) यज्ञ की पूर्त्ति के लिये (अह्वे) आह्वान करता हूँ। हे परमात्मन् ! (नः, सुम्ने) हमारे सुख के उत्पादक कार्य में (अन्तमः) संनिकृष्ट हों (वृधे) वृद्धि-निमित्त कार्य्य में (सखा) मित्रसदृश (भव) हों ॥३॥
भावार्थ
याज्ञिक पुरुषों की ओर से कथन है कि हे सर्वरक्षक तथा सब बलों के उत्पादक परमात्मन् ! हम लोग यज्ञपूर्ति के लिये आपका आह्वान करते अर्थात् आपकी सहायता चाहते हैं। कृपा करके हमारे सुखोत्पादक कार्य्यों में सहायक हों, या यों कहो कि हम लोगों को मित्र की दृष्टि से देखें, ताकि हमारे यज्ञादि कार्य्य सफलता को प्राप्त हों और हम उन्नतिशील होकर आपकी उपासना में प्रवृत्त रहें ॥३॥
विषय
ईश्वर की स्तुति करते हैं ।
पदार्थ
(तम्) उस सुप्रसिद्ध (शुष्मिणम्) महाबलिष्ठ (इन्द्रम्) जगद्द्रष्टा ईश्वर का (वाजसातये) विज्ञानधनप्रापक=विज्ञानप्रद (भराय) यज्ञ के लिये (अह्वे) आवाहन करता हूँ । वह इन्द्र (नः) हमारे (सुम्ने) सुख में (अन्तमः) समीपी होवे और (वृधे) वृद्धि के लिये (सखा) मित्र होवे ॥३ ॥
भावार्थ
वही ईश्वर धनद और विज्ञानद है, ऐसा मानकर उसकी उपासना करो ॥३ ॥
विषय
परमेश्वर की स्तुति । पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।
भावार्थ
मैं ( तम् इन्द्रं ) उस अपार ऐश्वर्यवान् प्रभु को ( वाज-सातये ) बल, ज्ञान और ऐश्वर्य प्राप्त करने और सब में निष्पक्षपात होकर विभक्त करने के लिये और ( भराय ) भरण पोषण के लिये ( शुष्मिणम् ) उस बलवान् प्रभु को ( अह्वे ) बुलाता हूं । हे प्रभो ! तू ( नः सुम्ने ) हमारे सुख के लिये और ( वृधे ) हमारी वृद्धि के लिये ( अन्तमः सखा भव ) अति समीपतम, परम मित्र हो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
वाजसातये-वृधे
पदार्थ
[१] मैं (तम्) = उस (शुष्मिणम्) = शत्रु-शोषक बल को प्राप्त करानेवाले (इन्द्र) = सर्वशक्तिमान् प्रभु को (भराय) = संग्राम के लिये (वाजसातये) = शक्ति को प्राप्त कराने के लिये (अह्वे) = पुकारता हूँ। प्रभु ही वह शक्ति देते हैं, जिससे कि हम संग्राम में विजयी हो पाते हैं। [२] (सुम्ने) = सुख प्राप्ति के निमित्त आप (नः) = हमारे (अन्तमः सखा) = अन्तिकम मित्र (भव) = होइये। इस मित्रता के द्वारा (वृधे) = हमारे वर्धन के लिये होइये। 'सुम्ने' शब्द का अर्थ स्तोत्र होता है। हम आपका स्तवन करें, तो आप हमारे मित्र होकर हमारी वृद्धि का कारण बनिये ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु शक्ति प्राप्त कराते हैं, यह शक्ति ही हमें संग्राम में विजयी बनाती है। हम प्रभु का स्तवन करते हैं, तो हमारे मित्र होते हुए हमारी वृद्धि का कारण बनते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
That Indra, potent and abundant, I invoke for victory in the race for life, for growth and fulfilment. O lord, be our friend, our innermost centre of conscience for our progress, peace and all round well being.
मराठी (1)
भावार्थ
तोच ईश्वर धनद व विज्ञानद आहे असे मानून त्याची उपासना करा. ॥३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal