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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 13 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 7
    ऋषिः - नारदः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    प्र॒त्न॒वज्ज॑नया॒ गिर॑: शृणु॒धी ज॑रि॒तुर्हव॑म् । मदे॑मदे ववक्षिथा सु॒कृत्व॑ने ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒त्न॒ऽवत् । ज॒न॒य॒ । गिरः॑ । शृ॒णु॒धि । ज॒रि॒तुः । हव॑म् । मदे॑ऽमदे । व॒व॒क्षि॒थ॒ । सु॒ऽकृत्व॑ने ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रत्नवज्जनया गिर: शृणुधी जरितुर्हवम् । मदेमदे ववक्षिथा सुकृत्वने ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रत्नऽवत् । जनय । गिरः । शृणुधि । जरितुः । हवम् । मदेऽमदे । ववक्षिथ । सुऽकृत्वने ॥ ८.१३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 7
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! (गिरः) वाणीः (प्रत्नवत्) पुरा इव (जनया) प्रादुर्भावय (जरितुः) स्तोतुः (हवम्) स्तोत्रम् (शृणुधि) शृणु (सुकृत्वने) सुकर्मणे (मदेमदे) प्रतियज्ञे (ववक्षिथ) इष्टपदार्थान् वहसि ॥७॥

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    विषयः

    ईश्वरप्रार्थनां करोति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! प्रत्नवत्=प्राचीनकालवत् । इदानीमपि । त्वं गिरः=वाणीः । प्राणिषु जनय=उत्पादय । यथा त्वं पुरा मनुष्येषु पशुषु पक्षिषु एवं सर्वेषु प्राणिषु विचित्रा नानाविद्या वाचोऽजनयः । तथेदानीमपि आनन्ददात्रीर्वाचो जनय । अपि च । जरितुः=गुणविदो हवमाह्वानं स्तवम् । शृणुधी=शृणु । हे इन्द्र ! त्वम् । सुकृत्वने=सुकर्मणो पुरुषाय । मदेऽमदे=उत्सवे उत्सवे । ववक्षिथ=अपेक्षितं फलं देहि ॥७ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (गिरः) वाणियों को (प्रत्नवत्) प्रथम के समान (जनया) उत्पन्न करें (जरितुः) स्तोता के (हवम्, शृणुधि) स्तोत्र को सुनें (सुकृत्वने) आप सुकर्मी के लिये (मदेमदे) प्रत्येक आह्लादक यज्ञ में (ववक्षिथ) इष्ट पदार्थों को धारण करते हैं ॥७॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप स्तोता की स्तुतिरूप वेदवाणियों को सुनें अर्थात् उसको शुभ फलों की प्राप्ति करावें, जिससे वह उत्साहसम्पन्न होकर सदा यज्ञादि सुकर्मों में प्रवृत्त रहे। आप सुकर्मी के लिये सदैव इष्ट पदार्थों को प्राप्त कराते हैं, अतएव उचित है कि सब पुरुष सुकर्मों में प्रवृत्त रहें, ताकि उनकी मनोकामना पूर्ण हो ॥७॥

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    विषय

    इससे ईश्वर की प्रार्थना की जाती है ।

    पदार्थ

    हे इन्द्र ! तू (प्रत्नवत्) पूर्वकालवत् इस समय में भी (गिरः) विविधवाणियों को (जनय) उत्पन्न कर । जैसे पूर्वकाल में मनुष्य पशु और पक्षी प्रभृति प्राणियों में तूने विविध भाषाएँ दीं, वैसे अब भी नानाविध भाषाएँ उत्पन्न कर, जिनसे सुख हो और (जरितुः+हवम्) गुणग्राही जनों का स्तुतिपाठ (शृणुधी) सुन । (मदेऽमदे) उत्सव-उत्सव पर (सुकृत्वने) शुभ कर्मवाले के लिये (ववक्षिथ) अपेक्षित फल दे ॥७ ॥

    भावार्थ

    ईश्वर ही ने मनुष्यों में विस्पष्ट वाणी स्थापित की । वही सर्व कर्मों का फलदाता है, अतः हे मनुष्यों ! उसी को पूजो ॥७ ॥

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    विषय

    परमेश्वर की स्तुति । पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! तू ( जरितः ) स्तुति करने वाले की ( गिरः ) वाणियों को ( प्रत्नवत् ) वृद्ध गुरु के समान ( जनय ) प्रकट कर और ( हवम् ) उसके आह्वान या पुकार को ( शृणुधि ) श्रवण कर । ( मदे-मदे ) प्रत्येक हर्ष के अवसर में, प्रत्येक सात्विक भाव से पुलकित होने में ( सुकृत्वने ) शुभ कर्म करने वाले पुण्यशील जन के हितार्थ ( ववक्षिथ ) तू उत्तम फल प्राप्त कराता है वा उत्तम उपदेश करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञान का प्रकाश

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आप (प्रत्नवत्) = प्राचीनकाल की तरह, अर्थात् जैसा आप सदा से करते आ रहे हैं, उसी प्रकार (गिरः जनय) = ज्ञान की वाणियों को हमारे में प्रादुर्भूत करिये। हृदयस्थ आपके द्वारा हमें ज्ञान की वाणियों का प्रकाश प्राप्त हो । (जरितुः) = स्तोता की (हवम्) = पुकार को (शृणुधि) = आप सुनिये। स्तोता की प्रार्थना आप द्वारा सुनी जाये। [२] हे प्रभो ! आप (मदे मदे) = सोम के रक्षण से उत्पन्न मद [=उल्लास] के होने पर सुकृत्वने इस शुभ कर्म करनेवाले के लिये (ववक्षिथ) = सब इष्ट वस्तुओं को प्राप्त कराते हैं। सोमरक्षण से हमारी वृत्ति शुभ बनती है, यह शुभवृत्ति हमें शुभ कर्मों को कराती है। ये शुभ कर्म शुभ फलों का साधन बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के अनुग्रह से हमारे हृदयों में ज्ञान की वाणियों का प्रकाश हो। हमारी प्रार्थना प्रभु से सुनी जाये। हम सोमरक्षण द्वारा शुभ कर्मों को करते हुए शुभ ही फलों को प्राप्त करें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, listen to the celebrant’s call, create and speak in appreciation as before and, with every delightful song, give holy recognition to the man of good word and action.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वरानेच माणसांमध्ये विस्पष्ट वाणी स्थापित केलेली आहे. तोच सर्व कर्माचा फलदाता आहे. त्यासाठी हे माणसांनो! त्याचीच पूजा करा. ॥७॥

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