ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 13/ मन्त्र 23
उ॒त ते॒ सुष्टु॑ता॒ हरी॒ वृष॑णा वहतो॒ रथ॑म् । अ॒जु॒र्यस्य॑ म॒दिन्त॑मं॒ यमीम॑हे ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । ते॒ । सुऽस्तु॑ता । हरी॒ इति॑ । वृष॑णा । व॒ह॒तः॒ । रथ॑म् । अ॒जु॒र्यस्य॑ । म॒दिन्ऽत॑मम् । यम् । ईम॑हे ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत ते सुष्टुता हरी वृषणा वहतो रथम् । अजुर्यस्य मदिन्तमं यमीमहे ॥
स्वर रहित पद पाठउत । ते । सुऽस्तुता । हरी इति । वृषणा । वहतः । रथम् । अजुर्यस्य । मदिन्ऽतमम् । यम् । ईमहे ॥ ८.१३.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 13; मन्त्र » 23
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 11; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(अजुः, यस्य) अजीर्णस्य यस्य भवतः (यम्, मदिन्तमम्) यदत्यन्तसुखकरं ज्ञानम् (ईमहे) वयं याचामहे (उत) अथ (रथम्) तं ज्ञानाधारम् (ते) तव (सुष्टुता) प्रशंसनीये (वृषणा) कामानां वर्षयित्र्यौ (हरीः) शक्ती (वहतः) यदा आगमयतः तदेति पूर्ववाक्योत्तरम् ॥२३॥
विषयः
महिमा प्रदर्श्यते ।
पदार्थः
उत=अपि च । ते=तवोत्पादितौ । सुष्टुता=सुष्टुतौ शोभनं स्तुतौ । वृषणा=वृषणौ कामानां वर्षितारौ । हरी=परस्परहरणशीलौ स्थावरजङ्गमात्मकावश्वौ । अजुर्यस्य=जरामरणादिदुःखरहितस्य तव । रथम्=रमणीयं शकटं वहतः । रथे त्वां स्थापयित्वा दर्शयत इत्यर्थः । मदिन्तमम्=अतिशयेनानन्दयितारम् । यम्=त्वाम् । ईमहे=धनादिकं याचामहे वयम् ॥२३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(अजुः, यस्य) जिस अजर आपके (यम्, मदिन्तमम्) जिस अत्यन्त सुखकर ज्ञान को (ईमहे) हम लोग याचना करते हैं (उत) जब (रथम्) उस ज्ञान के आधार को (ते) आपकी (सुष्टुता) सुन्दर प्रशंसनीय (वृषणा) कामनाप्रद (हरी) शक्तिएँ (वहतः) समीप में ले आएँ तब, “यह पूर्व प्रश्न का उत्तर” है ॥२३॥
भावार्थ
यह मन्त्र पूर्व मन्त्र में जो धन ऐश्वर्य्यादिविषयक प्रश्न किये हैं, उनके उत्तर को कहता है अर्थात् जो मनुष्य जो अश्व धन आदि पदार्थों को प्राप्त करना चाहे, उसके लिये एकमात्र यही उपाय है कि वह अपने ज्ञान को ईश्वर की प्रार्थना द्वारा तथा उसके कहे हुए विहित आचरणों से बढ़ाकर सामर्थ्य उत्पन्न करे ॥२३॥
विषय
उसका महत्त्व दिखलाया जाता है ।
पदार्थ
(उत) और (ते) तुझसे उत्पादित (सुष्टुता) सर्वथा प्रशंसित (वृषणा) निखिल कामनाओं को वर्षानेवाले (हरी) परस्पर हरणशील स्थावर-जङ्गमात्मक दो घोड़े (अजुर्यस्य) जरामरणादि दुःखरहित तेरे (रथम्) रमणीय रथ को (वहतः) प्रकाशित कर रहे हैं । अर्थात् मानो यह संसार तुझे रथ के ऊपर बैठाकर हम जीवों के समीप दिखला रहा है । (मदिन्तमम्) अतिशय आनन्दयिता (यम्) जिस तुझसे (ईमहे) हम धनादिक वस्तु याचते हैं ॥२३ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! ये स्थावर और जङ्गम संसार परमात्मा को दिखला रहे हैं, अतः वे दोनों अच्छे प्रकार ज्ञातव्य हैं ॥२३ ॥
विषय
पक्षान्तर में राजा के कर्त्तव्यों का निदर्शन ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे तेजस्विन् ! सर्वप्रकाशक ( यम् ) जिस सुख की हम भी ( ईमहे ) याचना करते हैं । ( अजुर्यस्य ) अविनाशी, जरादि रहित ( ते ) तेरे ( रथम् ) रमण करने योग्य, सुखप्रद ( मदिन्तमम् ) अति अधिक हर्षदायक, सुख और ऐश्वर्यमय तेरे स्वरूप या ज्ञानोपदेश को, रथ के घोड़ों के समान ( सु-स्तुता ) उत्तम प्रशंसित और शिक्षित ( वृषणा ) बलवान् ( हरी ) स्त्री पुरुष ही ( वहतः ) धारण करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नारदः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, ५, ८, ११, १४, १९, २१, २२, २६, २७, ३१ निचृदुष्णिक्। २—४, ६, ७, ९, १०, १२, १३, १५—१८, २०, २३—२५, २८, २९, ३२, ३३ उष्णिक्। ३० आर्षी विराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
'सुष्टुता वृषणा' हरी
पदार्थ
[१] (उत) = और (अजुर्यस्य) = कभी जीर्ण न होनेवाले (ते) = आपके, आप से दिये हुए (सुष्टुता) = उत्तम स्तुतिवाले (वृषणा) = शक्तिशाली (हरी) = इन्द्रियाश्व (रथम्) = इस शरीर रथ को (वहतः) = लक्ष्य की ओर ले चलते हैं। [२] उस रथ को ले चलते हैं (यम्) = जिसको (मदिन्तमम्) = आनन्दमय आप से (ईमहे) = हम माँगते हैं ['ईमहे' क्रियादि कर्मक है] आनन्दमय प्रभु से हम उत्तम शरीर-रथ की याचना करते हैं। उस प्रभु से दिया गया यह शरीर-रथ हमारे आनन्द का साधन बनता है। भा
भावार्थ
वार्थ- प्रभु हमें न जीर्ण होनेवाला व आनन्द को प्राप्त करानेवाला शरीर-रथ प्राप्त कराते हैं। शक्तिशाली प्रशस्त इन्द्रियाश्वों को देते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord beyond age and suffering, mighty adorable forces of nature, gravitation and radiation draw your cosmic chariot. We adore and pray for the favour of such lord of universal joy.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! हे स्थावर व जंगम जगत् परमेश्वराचेच दर्शन घडवीत आहे. त्यासाठी हे दोन्ही चांगल्या प्रकारे ज्ञातव्य आहेत. ॥२३॥
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