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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 12
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    3

    दे॒वा य॒ज्ञम॑तन्वत भेष॒जं भि॒षजा॒श्विना॑। वा॒चा सर॑स्वती भि॒षगिन्द्रा॑येन्द्रि॒याणि॒ दध॑तः॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वाः। य॒ज्ञम्। अ॒त॒न्व॒त॒। भे॒ष॒जम्। भि॒षजा॑। अ॒श्विना॑। वा॒चा। सर॑स्वती। भि॒षक्। इन्द्रा॑य। इ॒न्द्रि॒याणि॑। दध॑तः ॥१२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा यज्ञमतन्वत भेषजम्भिषजाश्विना । वाचा सरस्वती भिषगिन्द्रायेन्द्रियाणि दधतः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    देवाः। यज्ञम्। अतन्वत। भेषजम्। भिषजा। अश्विना। वाचा। सरस्वती। भिषक्। इन्द्राय। इन्द्रियाणि। दधतः॥१२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 12
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मातापित्रपत्यानि परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथेन्द्रियाणि दधतो भिषक् सरस्वती भिषजाऽश्विना च देवा वाचेन्द्राय भेषजं यज्ञमतन्वत, तथैव यूयं कुरुत॥१२॥

    पदार्थः

    (देवाः) विद्वांसः (यज्ञम्) सुखप्रदम् (अतन्वत) विस्तृतं कुरुत (भेषजम्) रोगप्रणाशकमौषधरूपम् (भिषजा) आयुर्वेदविदौ (अश्विनौ) आयुर्वेदाङ्गव्यापिनौ (वाचा) तदानुकूल्यया वाण्या (सरस्वती) सरः प्रशस्त आयुर्वेदबोधो विद्यते यस्याः सा (भिषक्) चिकित्साद्यङ्गवित् (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (इन्द्रियाणि) चक्षुरादीनि धनानि वा (दधतः)॥१२॥

    भावार्थः

    यावन्मनुष्याः पथ्यौषधिब्रह्मचर्य्यसेवनेन शरीरारोग्यबलबुद्धीर्न वर्द्धयन्ते, तावत् सर्वाणि सुखानि प्राप्तुं न शक्नुवन्ति॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    माता-पिता और सन्तान परस्पर कैसे वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे (इन्द्रियाणि) उत्तम प्रकार विषयग्राहक नेत्र आदि इन्दियों वा धनों को (दधतः) धारण करते हुए (भिषक्) चिकित्सा आदि वैद्यकशास्त्र के अङ्गों को जाननेहारी (सरस्वती) प्रशस्त वैद्यकशास्त्र के ज्ञान से युक्त विदुषी स्त्री और (भिषजा) आयुर्वेद के जाननेहारी (अश्विना) ओषधिविद्या में व्याप्तबुद्धि वाले दो उत्तम विद्वान् वैद्य ये तीनों और (देवाः) उत्तम ज्ञानीजन (वाचा) वाणी से (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य के लिये (भेषजम्) रोगविनाशक औषधरूप (यज्ञम्) सुख देने वाले यज्ञ को (अतन्वत) विस्तृत करें, वैसे ही तुम लोग भी करो॥१२॥

    भावार्थ

    जब तक मनुष्य लोग पथ्य ओषधि और ब्रह्मचर्य के सेवन से शरीर के आरोग्य, बल और बुद्धि को नहीं बढ़ाते, तब तक सब सुखों के प्राप्त होने को समर्थ नहीं होते॥१२॥

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    विषय

    राजा का बल-सम्पादन । राष्ट्रयज्ञ का विस्तार ।

    भावार्थ

    ( भिषजा ) रोगों की चिकित्सा करने में कुशल (अश्विनौ ) आयुर्वेद के विज्ञान में पारंगत ओषधिवित् और शल्य चिकित्सक दोनों और ( सरस्वती ) सरस्वती, वेदवाणी, या विद्वत्सभा जो (वाचा) वाणी के उपदेश द्वारा ( भिषक् ) अज्ञान, दोषों को दूर करने में कुशल और ( देवाः ) विद्वान् लोग ( इन्द्राय ) इन्द्र के निमित्त (इन्द्रियाणि) राजोचित ऐश्वर्यौं और सामर्थ्यो को ( दधतः ) धारण कराते हुए ( भेषजम् ) रोग, निर्बलता को दूर करने वाले ( यज्ञम् ) परस्पर संगति करने वाले प्रजापालन व्यवहार का यज्ञ के समान ही ( अतन्वत ) उपदेश करते हैं।

    टिप्पणी

    १२ - ३२ देवा यज्ञमिति ब्राह्मणानुवाकः विंशतिरनुष्टुभः । सोमसम्पत् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १२ - ३२ सोमसम्पत् । अनुष्टुभः ।

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    विषय

    नीरोगता - पवित्रता, आश्विनौ- सरस्वती

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र में अपने को भद्र से संपृक्त करने व पाप से विपृक्त करने का उल्लेख है। ऐसा करनेवाले ही 'देव' कहलाते हैं। ये (देवा:) = देवपुरुष, दिव्य वृत्तिवाले लोग (यज्ञम्) = श्रेष्ठतम कर्म को (अतन्वत) = विस्तृत करते हैं। अपने को सदा उत्तम कर्मों में व्यापृत रखते हैं। २. इस प्रकार जब ये उत्तम कर्मों का विस्तार करते हैं तब (अश्विनौये प्राणापान भिषजौ) = जो देवों के वैद्य हैं, दिव्य वृत्तिवाले लोगों को बीमार न होने देनेवाले हैं, वे (भेषजम्) = औषध को (अतन्वत) = विस्तृत करते हैं। ये प्राणापान उनकी सब व्याधियों के प्रतीकारक बनते हैं, इनके शरीर को वे पूर्णतया स्वस्थ करते हैं तथा ३. सरस्वती विद्या की अधिदेवता भी (वाचा) = ज्ञान की वाणियों के द्वारा (भिषक्) = इनकी मानस आधियों को दूर करनेवाली होती है। ज्ञान से इनका जीवन पवित्र हो जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसेकि प्राणापान से इनका शरीर नीरोग बना था । ४. वस्तुतः ये प्राणापान [अश्विनौ] तथा ज्ञान [सरस्वती] (इन्द्राय) = इस जितेन्द्रिय पुरुष के लिए (इन्द्रियाणि) = सब इन्द्रियों की शक्तियों को (दधतः) = धारण करते हैं। इन्हें आधि-व्याधियों से बचाकर अङ्ग-प्रत्यङ्ग में सबल बनाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम सदा उत्तम कर्मों में व्यापृत रहकर प्राणापान की शक्ति से नीरोग बनें तथा ज्ञान के द्वारा पवित्र बनें। यह नीरोगता व पवित्रता हमें सर्वाङ्ग सम्पूर्ण जीवनवाला बनाए। हमारे सब अङ्ग पुष्ट हों ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जोपर्यंत माणसे पथ्य, औषध व ब्रह्मचर्याचे सेवन करून शरीराचे आरोग्य, बल व बुद्धीची वाढ करीत नाहीत तोपर्यंत ती सर्व सुख प्राप्त करण्यास समर्थ ठरू शकत नाहीत.

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    विषय

    आईवडील आणि मुला-मुलांनी कसे वागावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, ज्याप्रमाणे (इन्द्रियाणि नेत्र आदी विषयग्राहक इंद्रियें (दधतः) धारण करणारी आणि (भिषक) वैद्यकशास्त्र उत्तमप्रकारे जाणणारी, चिकित्साशास्त्राच्या सर्व अंगांची माहिती असणारी (सरस्वती) वैद्यकशास्त्रसंपन्न विदुषी नारी (औषधी व प्रयोग यांना पूर्णपणे जाणते) तसेच (भिवजा) आयुर्वेदाचे विद्वान (अश्विना) औषधिविज्ञानाचे ज्ञाता दोन श्रेष्ठ वैद्य आणि पूर्वी वर्णिलेली विदुषी वैद्य नारी, हे तिघे तसेच (देवाः) श्रेष्ठ ज्ञानीजन आपल्या (वाचा) (मधुर व प्रभावी) वाणीने (इन्द्रियाय) समाजाच्या परमेश्वर्यासाठी (भेषजम्‌) रोगविनाशक औषधीरूप (यज्ञम्‌) यज्ञ (अतन्वत) करतात, त्याप्रमाणे तुम्ही सर्व सामान्यजन देखील करत जा. (कुशल वैद्य, निष्णात वैद्यनारी, औषधीविज्ञानी, श्रेष्ठजन हे सर्वजण गोड भाषा बोलत लोकांच्या आरोग्यासाठी यत्न करतात, त्याचा लाभ सर्वांनी घ्यावा आणि इतरांनाही नीरोग राहण्यास साहाय्य करावे) ॥12॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जोपर्यंत लोक पथ्य सांभाळून औषधी सेवन करीत नाहीत, आणि ब्रह्मचर्याचे पालन करीत शरीराचे आरोग्य, बळ आणि बुद्धी, यांची वृद्धी करीत नाहीत, तोपर्यंत सुखाची प्राप्ती कदापी करू शकत नाहीत. ॥12॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O men, just as a lady doctor well versed in the science of medicine, with healthy organs of the body ; physicians and surgeons, having mastery over the Ayur Veda, and learned persons, stretch out the healing sacrifice, for prosperity with their speech, so shouldst ye do.

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    Meaning

    The healing powers of nature and the two Ashvinis, positive and negative currents of universal energy, enact the medicinal yajna of evolution in the service of Indra, lord of the universe. So do the physicians, men and women both, holding their mind and senses in order, carry on the yajna of health and healing with their knowledge and advice. (So too should we all work for health and healing in the service of God and humanity. )

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    Translation

    The enlightened physicians, the twin-healers, spread out the sacrifice of healing. The Doctress with soothing speech is the physician replenishing the resplendent one with new strength (of sense-organs). (1)

    Notes

    Vācā, वेदवाण्या, with the sacred speech of the Vedas. Or, with a soothing speech. Indriyāni, इन्द्रियाणां सामर्थ्य, strength of the sense-organs.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মাতাপিত্রপত্যানি পরস্পরং কথং বর্ত্তেরন্নিত্যাহ ॥
    মাতা-পিতা ও সন্তানগণ পরস্পর কেমন আচরণ করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যেমন (ইন্দ্রিয়াণি) উত্তম প্রকার বিষয়গ্রাহক নেত্রাদি ইন্দ্রিয়সকল বা ধনসমূহকে (দধতঃ) ধারণ করিয়া (ভিষক্) চিকিৎসাদি বৈদ্যকশাস্ত্রের অঙ্গসকলের জ্ঞাত্রী (সরস্বতী) প্রশস্ত বৈদ্যকশাস্ত্রের জ্ঞানযুক্ত বিদুষী স্ত্রী এবং (ভিষজা) আয়ুর্বেদের জ্ঞাতা (অশ্বিনা) ওষধিবিদ্যায় ব্যাপ্তবুদ্ধি দুই উত্তম বিদ্বান্ বৈদ্য এই তিন এবং (দেবাঃ) উত্তম জ্ঞানীগণ (বাচা) বাণী দ্বারা (ইন্দ্রায়) পরমৈশ্বর্য্য হেতু (ভেষজম্) রোগবিনাশক ঔষধরূপ (য়জ্ঞম্) সুখদাতা যজ্ঞকে (অতন্বত) বিস্তৃত করে সেইরূপ তোমরাও কর ॥ ১২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ– যতক্ষণ মনুষ্যগণ পথ্য ওষধি ও ব্রহ্মচর্য্যের সেবন দ্বারা শরীরের আরোগ্য, বল ও বুদ্ধিকে বৃদ্ধি করে না ততক্ষণ সব সুখ প্রাপ্ত হইতে সক্ষম হয় না ॥ ১২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    দে॒বা য়॒জ্ঞম॑তন্বত ভেষ॒জং ভি॒ষজা॒শ্বিনা॑ ।
    বা॒চা সর॑স্বতী ভি॒ষগিন্দ্রা॑য়েন্দ্রি॒য়াণি॒ দধ॑তঃ ॥ ১২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    দেবা য়জ্ঞমিত্যস্য হৈমবর্চির্ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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