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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 73
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - आङ्गिरसो देवताः छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    3

    अद्भ्यः क्षी॒रं व्य॑पिब॒त् क्रुङ्ङा॑ङ्गिर॒सो धि॒या। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳशु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। क्षी॒रम्। वि। अ॒पि॒ब॒त्। क्रुङ्। आ॒ङ्गि॒र॒सः। धि॒या। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अमृत॑म्। मधु॑ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अद्भ्यः क्षीरँव्यपिबत्क्रुङ्ङाङ्गिरसो धिया । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोमृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अद्भ्य इत्यत्ऽभ्यः। क्षीरम्। वि। अपिबत्। क्रुङ्। आङ्गिरसः। धिया। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 73
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    के जना विज्ञानमाप्नुवन्तीत्याह॥

    अन्वयः

    य आङ्गिरसो धियाऽद्भ्यः क्षीरं क्रुङ् व्यपिबत्, स ऋतेनेन्द्रस्यान्धसः सकाशादिदं सत्यं विपानं शुक्रमिन्द्रियं पयोऽमृतं मध्विन्द्रियं च प्राप्नुयात्॥७३॥

    पदार्थः

    (अद्भ्यः) जलेभ्यः (क्षीरम्) दुग्धम् (वि) (अपिबत्) पिबेत् (क्रुङ्) यथा पक्षी अल्पमल्पं पिबति तथा (आङ्गिरसः) अङ्गिरसो विदुषा कृतो विद्वान् (धिया) कर्मणा (ऋतेन) यथार्थेन योगाभ्यासेन (सत्यम्) अविनश्वरम् (इन्द्रियम्) दिव्यां वाचम् (विपानम्) विविधशब्दार्थसम्बन्धयुक्ताम् (शुक्रम्) पवित्राम् (अन्धसः) अन्नादियोगात् (इन्द्रस्य) परमैश्वर्ययुक्तस्य (इन्द्रियम्) दिव्यं श्रोत्रम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (पयः) रसम् (अमृतम्) रोगनाशकम् (मधु) मधुरम्॥७३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये सत्याऽऽचरणैर्वैद्यकशास्त्रविधानात् युक्ताहारविहारं कुर्वन्ति, ते सत्यं बोधं विज्ञानञ्च यान्ति॥७३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन पुरुष विज्ञान को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (आङ्गिरसः) अङ्गिरा विद्वान् से किया हुआ विद्वान् (धिया) कर्म के साथ (अद्भ्यः) जलों से (क्षीरम्) दूध को (क्रुङ्) क्रुञ्चा पक्षी के समान थोड़ा-थोड़ा करके (व्यपिबत्) पीवे, वह (ऋतेन) यथार्थ योगाभ्यास से (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्ययुक्त जीव के (अन्धसः) अन्नादि के योग से (इदम्) इस प्रत्यक्ष (सत्यम्) सत्य पदार्थों में अविनाशी (विपानम्) विविध शब्दार्थ सम्बन्धयुक्त (शुक्रम्) पवित्र (इन्द्रियम्) दिव्यवाणी और (पयः) उत्तम रस (अमृतम्) रोगनाशक ओषधि (मधु) मधुरता और (इन्द्रियम्) दिव्य श्रोत्र को प्राप्त होवे॥७३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो सत्याचरणादि कर्मों करके वैद्यक शास्त्र के विधान से युक्ताहारविहार करते हैं, वे सत्य बोध और सत्य विज्ञान को प्राप्त होते हैं॥७३॥

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    विषय

    हंस के दृष्टान्त से अध्यात्म में ज्ञानी के परमानन्द रस का पान और राजा के ऐश्वर्य उपभोग का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( क्रुङ् ) सारस जिस प्रकार (अद्द्भ्यः) जलों के बीच में से (क्षीरम् ) दूध को (वि अपिबत् ) पृथक कर पान कर लेता है उसी प्रकार ( आङ्गिरसः ) ज्ञानवान् आत्मा, अभ्यासी विद्वान्, ( क्रुङ् ) अति सूक्ष्म, आत्मा या ज्ञानी, योगी, परमहंस (धिया) अपनी योगधारणावती बुद्धि से (अद्द्भ्यः) प्राणों के बीच में से (क्षीरम् ) परम उपभोग्य, परमानन्द रूप आत्मरस को (वि अपिबत् ) विशेष रूप से पान करता है । (ऋतेन सत्यम् ० इत्यादि) पूर्ववत् ॥ इसी प्रकार राजा 'क्रूङ्' हंस के समान अति सूक्ष्म या व्यापक, कुटिल दुर्बोध, गहन, नीतिमान् (आङ्गिरसः) वेद का ज्ञाता, अपने धारण पालन करने वाली राजनीति से आप्त प्रजाओं से ही 'क्षीरवत्' भोग योग्य सार पदार्थ को विविध रूपों में ग्रहण करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अश्विसरस्वतीन्द्राः । अंगिरसः । निचृत् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    क्रुङ [Swan] का क्षीरपान

    पदार्थ

    १. (क्रुङ्) = क्रौञ्चपक्षी [ Swan ] - जैसे हंसजाति का यह क्रौञ्चपक्षी (अद्भ्यः) = जलों से (क्षीरम्) = दूध को (व्यपिबत्) = विशेषरूप से पी लेता है, उसी प्रकार (अंगिरसः) - अपने एक-एक अङ्ग को रसमय बनानेवाला विद्वान् (धिया) = ज्ञानपूर्वक किये गये कर्मों के द्वारा [धी = कर्म तथा प्रज्ञा] (अद्भ्यः क्षीरम्) = [ आपो रेतो भूत्वा] जलों से उत्पन्न सारभूत सोम को [क्षि निवासगत्योः], शरीर में उत्तम निवास व गति, अर्थात् क्रियाशीलता के कारणभूत सोम को (व्यपिबत्) = अपने अन्दर ही पीने का प्रयत्न करता है। सोमरक्षा का सरलतम साधन प्रज्ञापूर्वक कर्मों में लगे रहना ही है। अकर्मण्यता हमें गलत मार्ग की ओर ले जाती है। इस अकर्मण्यता से हममें वासनाएँ जागती हैं और सोमपान सम्भव नहीं रहता। २. (ऋतेन) = यह सोम यज्ञ व नियमितता के द्वारा (सत्यं इन्द्रियं विपानम्) = हमारे सत्य को विकसित करता हैं, इन्द्रिय-शक्तियों को बढ़ाता है और रोगों से रक्षा करता है। ३. यह (शुक्रम्) = हमारे जीवन को उज्ज्वल बनाता है। ४. (अन्धसः) = अन्न से उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (इन्द्रस्य) = सब अङ्गों की शक्ति का वर्धक होता है। ५. (इदम्) = यह शुक्र [सोम] उसका (पयः) = आप्यायन करनेवाला (अमृतम्) = उसे अकाल में न मरने देनेवाला तथा मधु उसके जीवन को मधुर बनानेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्रज्ञापूर्वक कर्मों में लगे रहने के द्वारा सोम का शरीर में रक्षण करनेवाले बनें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सत्यचरण करून वैद्यकशस्रानुसार आहारविहार करतात त्यांना सत्याचा बोध होतो व सत्य विज्ञानाचे आकलन होते.

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    विषय

    कशी माणसें विज्ञान प्राप्त करतात, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जो (आङ्गिरसः) अंगिरा (अतिविद्वान) विद्वानाकडून विद्या शिकून विद्यावान झालेला विद्वान (धिया) आपल्या बुद्धी आणि कर्माद्वारे (अदभ्यः) पाण्यापासून वेगळे करून (पाणी मिसळलेल्या दुधातून फक्त) (क्षीरम्‌) दुधाला (क्रुङ्) कौंच पक्ष्याप्रमाणे, थोडे थोडे करून (न्यपिबत्‌) पितो (पदार्थातील केवळ सार ग्रहण करतो) तो दिव्य (वा ज्ञान) प्राप्त करतो. तसेच तो (ऋतेन) योग्याप्रमाणे योगाभ्यास करून (इन्द्रस्थ) आपल्या ऐश्वर्यवान जीवात्म्यासाठी (अन्धसः) अन्नादी प्राप्त करतो आणि (इदम्‌) या प्रत्यक्ष (सत्यम्‌) सर्व विद्यमान पदार्थात जी अविनाशी आहे आणि जी (विपानम्‌) शब्द आणि अर्थ यांच्यातील सम्बन्ध दाखविते, ती (शुक्रम्‌) (इन्द्रियम्‌) दिव्य वाणी प्राप्त करतो. तसेच तो विद्वान (पयः) विविध उत्तम रस (अमृतम्‌) रोगनाशक औषधी यांचा संग्रह करून (मधु) वाणीमधे माधुर्यगुण आणि (इन्द्रियम्‌) कर्ण इंद्रिये दिव्य श्रवणशक्ती प्राप्त करतो. (विद्वान आपल्या बुद्धी आणि क्रियेतून वारी, आणि कान या इंद्रियांतून दिव्य कर्में करूशकतो) ॥73॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जे लोक सत्याचरण, सत्कर्म करीत वैद्यकशास्त्रात सांगितल्याप्रमाणे योग्य आहार-विहार करतात, ते अवश्यमेव सत्यज्ञान आणि यथार्थ विज्ञान प्राप्त करतात. ॥73॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Just as swan -separates milk from water and drinks it, so a learned person, the embodiment of action, through yogic practices, strengthening his soul with pure food, acquires divine hearing, sweetness, healing medicine, pure love, and immaculate divine speech mingled with the eternal connection between word and its significance in all worldly objects.

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    Meaning

    The man of genius and discrimination trained by a divine sage, like the swan, separates the milk from the water, accepts the milk and rejects the water. With his dedication to the essential reality of existence through yoga, he attains the eternal verity, divine speech, the vision of word and meaning, purity of the inner light, spiritual food, honour and prosperity of the world, purest drinks, abiding health, and the honey-sweet joys of living.

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    Translation

    The vital breath in its wisdom, acting like a swan, drinks only the milk separating it from waters mixed. By sacrifice the truth gains strength and consumption of food becomes pure. May this nectar-like sweet milk be the strength of the resplendent self. (1)

    Notes

    Kruń, हंस:, a swan. Also, the vital breath, that pro duces heat in the body. It is rumoured that a swan can, from a mixture of milk and water, drink milk and leave the water.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কে জনা বিজ্ঞানমাপ্নুবন্তীত্যাহ ॥
    কোন্ পুরুষ বিজ্ঞান প্রাপ্ত হয়েন এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যিনি (আঙ্গিরসঃ) আঙ্গিরা বিদ্বান্ দ্বারা কৃত বিদ্বান্ (ধিয়া) কর্ম সহ (অদ্ভ্যঃ) জল দ্বারা (ক্ষীরম্) দুধকে (ক্রুঙ্) ক্রৌঞ্চ পক্ষী সদৃশ অল্প অল্প করিয়া (ব্যপিবৎ) পান করিবেন তিনি (ঋতেন) যথার্থ যোগাভ্যাস দ্বারা (ইন্দ্রস্য) ঐশ্বর্য্যযুক্ত জীবের (অন্ধসঃ) অন্নাদির যোগ দ্বারা (ইদম্) এই প্রত্যক্ষ (সত্যম্) সত্য পদার্থে অবিনাশী (বিপানম্) বিবিধ শব্দার্থ সম্বন্ধযুক্ত ((শুক্রম্) পবিত্র (ইন্দ্রিয়ম্) দিব্যবাণী ও (পয়ঃ) উত্তম রস (অমৃতম্) রোগনাশক ওষধি (মধু) মধুরতা ও (ইন্দ্রয়ম্) দিব্য শ্রোত্র প্রাপ্ত হইবেন ॥ ৭৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–এই মন্ত্র বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যিনি সত্যাচরণাদি কর্ম করিয়া বৈদ্যক শাস্ত্রের বিধান দ্বারা যুক্তাহারবিহার করেন তিনি সত্য বোধ এবং সত্য বিজ্ঞানকে প্রাপ্ত হন ॥ ৭৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒দ্ভ্যঃ ক্ষী॒রং ব্য॑পিব॒ৎ ক্রুঙ্ঙা॑ঙ্গির॒সো ধি॒য়া । ঋ॒তেন॑ স॒ত্যমি॑ন্দ্রি॒য়ং বি॒পান॑ꣳশু॒ক্রমন্ধ॑স॒ऽইন্দ্র॑স্যেন্দ্রি॒য়মি॒দং পয়ো॒ऽমৃতং॒ মধু॑ ॥ ৭৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অদ্ভ্য ইত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । অঙ্গিরসো দেবতাঃ । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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