Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 19

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 36
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - निचृदष्टिः स्वरः - मध्यमः
    2

    पि॒तृभ्यः॑ स्वधा॒यिभ्यः॑ स्व॒धा नमः॑ पिताम॒हेभ्यः॑ स्वधा॒यिभ्यः॑ स्व॒धा नमः॒ प्रपि॑तामहेभ्यः स्वधा॒यिभ्यः॑ स्व॒धा नमः॑। अक्ष॑न् पि॒तरोऽमी॑मदन्त पि॒तरोऽती॑तृपन्त पि॒तरः॒ पित॑रः॒ शुन्ध॑ध्वम्॥३६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पि॒तृभ्य॒ इति॑ पि॒तृऽभ्यः॑। स्व॒धा॒यिभ्य॒ इति॑ स्वधा॒यिऽभ्यः॑। स्व॒धा। नमः॑। पि॒ता॒म॒हेभ्यः॑। स्व॒धा॒यिभ्य॒ इति॑ स्वधा॒यिऽभ्यः॑। स्व॒धा। नमः॑। प्रपि॑तामहेभ्य॒ इति॒ प्रऽपि॑तामहेभ्यः। स्व॒धा॒यिभ्य॒ इति॑ स्वधा॒यिऽभ्यः॑। स्व॒धा। नमः॑। अक्ष॑न्। पि॒तरः॑। अमी॑मदन्त। पि॒तरः॑। अती॑तृपन्त। पि॒तरः॑। पित॑रः। शुन्ध॑ध्वम् ॥३६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः । अक्षन्पितरःऽअमीमदन्त पितरोतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पितृभ्य इति पितृऽभ्यः। स्वधायिभ्य इति स्वधायिऽभ्यः। स्वधा। नमः। पितामहेभ्यः। स्वधायिभ्य इति स्वधायिऽभ्यः। स्वधा। नमः। प्रपितामहेभ्य इति प्रऽपितामहेभ्यः। स्वधायिभ्य इति स्वधायिऽभ्यः। स्वधा। नमः। अक्षन्। पितरः। अमीमदन्त। पितरः। अतीतृपन्त। पितरः। पितरः। शुन्धध्वम्॥३६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 36
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पित्रपत्यादिभिरितरेतरं कथं वर्त्तितव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    अस्माभिः पुत्रशिष्यादिमनुष्यैर्येभ्यः स्वधायिभ्यः पितृभ्यः स्वधा नमः स्वधायिभ्यः पितामहेभ्यः स्वधा नमः स्वधायिभ्यः प्रपितामहेभ्यः स्वधा नमः क्रियते। हे पितरस्ते भवन्तोऽस्मत्सुसंस्कृतान्यन्नादीन्यक्षन्। हे पितरो! यूयमानन्दिता भूत्वाऽस्मानमीमदन्त। हे पितरो! यूयं तृप्ता भूत्वास्मानतीतृपन्त। हे पितरो! यूयं शुद्धा भूत्वाऽस्मान् शुन्धध्वम्॥३६॥

    पदार्थः

    (पितृभ्यः) पालकेभ्यो जनकाध्यापकादिभ्यः (स्वधायिभ्यः) ये स्वधायिभ्यः ये स्वधामुदकमन्नं वैतुं प्राप्तुं शीलास्तेभ्यः। स्वधेत्युदकनामसु पठितम्॥ (निघं॰१.१२) स्वधेत्यन्ननामसु पठितम्॥ (निघं॰२.७) (स्वधा) अन्नम् (नमः) सत्करणम् (पितामहेभ्यः) ये पितॄणां पितरस्तेभ्यः (स्वधायिभ्यः) (स्वधा) स्वान् दधाति यया सा क्रिया (नमः) नमनम् (प्रपितामहेभ्यः) ये पितामहानां पितरस्तेभ्यः (स्वधायिभ्यः) (स्वधा) स्वेन धारिता सेवा (नमः) अन्नादिकम् (अक्षन्) अदन्तु। योऽद्धातोः स्थाने ‘घस्लृ’ आदेशस्तस्य लुङि रूपम् (पितरः) ज्ञानिनः (अमीमदन्त) अतिशयेन हर्षयत (पितरः) (अतीतृपन्त) अतिशयेन तर्पयत (पितरः) (पितरः) (शुन्धध्वम्) पवित्रीकुरुत॥३६॥

    भावार्थः

    हे पुत्रशिष्यस्नुषादयो जनाः! यूयमुत्तमैरन्नादिभिः पित्रादीन् वृद्धान् सततं सत्कुरुत, पितरो युष्मानप्यानन्दयेयुः। यथा मातापित्रादयो बाल्यावस्थायां युष्मान् सेवन्ते, तथैव यूयं वृद्धावस्थायां तेषां सेवां यथावत् कुरुत॥३६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    माता-पिता पुत्रादि को परस्पर कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हम पुत्र शिष्यादि मनुष्य (स्वधायिभ्यः) जिस स्वधा अन्न और जल को प्राप्त होने के स्वभाव वाले (पितृभ्यः) ज्ञानियों को (स्वधा) अन्न देते और (नमः) सत्कार करते (स्वधायिभ्यः) बहुत अन्न को चाहने वाले (पितामहेभ्यः) पिता के पिताओं को (स्वधा) सुन्दर अन्न देते तथा (नमः) सत्कार करते और (स्वधायिभ्यः) उत्तम अन्न के चाहने वाले (प्रपितामहेभ्यः) पितामह के पिताओं को (स्वधा) अन्न देते और उनका (नमः) सत्कार करते हैं, वे हे (पितरः) पिता आदि ज्ञानियो! आप लोग हमने अच्छे प्रकार बनाये हुये अन्न आदि का (अक्षन्) भोजन कीजिये। हे (पितरः) अध्यापक लोगो! आप आनन्दित होके हम को (अमीमदन्त) आनन्दयुक्त कीजिये। हे (पितरः) उपदेशक लोगो! आप तृप्त होकर हमको (अतीतृपन्त) तृप्त कीजिये। हे (पितरः) विद्वानो! आप लोग शुद्ध होकर हमको (शुन्धध्वम्) शुद्ध कीजिये॥३६॥

    भावार्थ

    हे पुत्र, शिष्य और पुत्रवधू आदि लोगो! तुम उत्तम अन्नादि पदार्थों से पिता आदि वृद्धों का निरन्तर सत्कार किया करो तथा पितर लोग तुमको भी आनन्दित करें। जैसे माता-पितादि बाल्यावस्था में तुम्हारी सेवा करते हैं, वैसे ही तुम लोग वृद्धावस्था में उनकी सेवा यथावत् किया करो॥३६॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    स्वधायी पिता, पितामह, प्रपितामहों का आदर, उनकी तृप्ति और उनका शुद्धि करने का कर्त्तव्य।पितरों का रहस्य ।

    भावार्थ

    ( स्वधायिभ्यः )स्वधा, अन्न, जल या शरीर के पोषण योग्य वेतन स्वीकार करनेवाले (पितृभ्यः) राष्ट्र और प्रजा के पालक पुरुषों को (स्वधा नमः) अन्न, जल योग्य वेतन, आदर-सत्कार और अधिकार दिया जाय । ( पितामहेभ्यः ) उक्त पालकों के भी पालकों को और ( प्रपिता- महेभ्यः ) उनसे भी ऊंचे पद पर विराजमान उनके भी पालक, शासकों और जो ( स्वधायिभ्यः ) अन्नं, वेतन आदि ग्रहण करनेवाले हैं उनका (स्वधा नमः) अन्न, वेतन आदि से सत्कार किया जाय । राष्ट्र के शासकों में तीन श्रेणियां क्रम से उत्तरोत्तर अधिकार रक्खें । ( पितरः ) पालक पुरुष (अक्षन् ) यह स्वीकार करें। ('पितरः अभी- मदन्त) पालक लोग तृप्त, सन्तुष्ट हों । ( पितरः अतीतृपन्त ) पालक जन प्रसन्न रहें । हे (पितरः) पालक पुरुषो ! ( शुन्धध्वम् ) हम.. प्रजाजन को शुद्ध आचरण वाला, शत्रुरहित करो । शत० १२ । ८ । ७ । ८ ।। पिता, पितामह, प्रपितामह तीनों को पुत्र अन्न, वस्त्र आदि द्वारा पालन करें । उनको प्रसन्न रखें और वे सन्तानों को आशीष दिया करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पितरो देवताः । निचृदष्टिः । मध्यमः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पितृश्राद्ध

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार सोम का रक्षण करनेवाले युवक व युवति रसमय व मधुर जीवनवाले बने रहते हैं। उनके मन शिव होते हैं और उनका ज्ञान दीप्त होता है। इस प्रकार उत्तम जीवनवाले वे दम्पती वानप्रस्थाश्रम में प्रविष्ट हुए हुए अपने पिता, पितामह व प्रपितामह को समय-समय पर आमन्त्रित करते हैं। इन पितरों को वे 'स्वधा' = अन्न प्राप्त कराते हैं तथा 'नमः' उनका सत्कार करते हैं। इनके आमन्त्रण को स्वीकार करके वे पितर आते हैं और इसीलिए वे 'स्वधायी' = [स्वधां प्रति एतुं शीलं यस्य] कहलाते हैं। इन स्वधायिभ्यः = स्वधा के प्रति आने के स्वभाववाले (पितृभ्यः) = पिताओं कि लिए (स्वधा नमः) = अन्न तथा सत्कार हो । २. इसी प्रकार (स्वधायिभ्यः) = स्वधा के प्रति आनेवाले (पितामहेभ्यः) = पितामहों के लिए (स्वधा नमः) = अन्न व सत्कार हो तथा (स्वधायिभ्यः) = स्वधा के प्रति आनेवाले (प्रपितामहेभ्यः) = परदादों के लिए (स्वधा नमः) = अन्न व सत्कार हो । ३. यहाँ मन्त्र में आमन्त्रण क्रम पिता पितामह व प्रपितामह है, यद्यपि आयु की दृष्टि से बड़प्पन का मान करते हुए यह क्रम प्रपितामह-पितामह-पिता होना चाहिए तथापि सम्भावना का ध्यान करते हुए यह क्रम बदल दिया गया है। पिता जो ५१ व ५२ वर्ष के होंगे उनके आने का तो सम्भव है ही । पितामह भी ७४ व ७५ वर्ष की आयु होने से सम्भवतः आएँ, परन्तु इस समय तक जो १०० वर्ष से ऊपर के होंगे उनके आने का संशय ही है। पिता से सम्बन्ध का सामीप्य भी है। जो पिता से सम्बन्ध है, पितामह से उतना नहीं होता और प्रपितामह से यह सम्बन्ध और भी दूर का होता है। सन्तान पर पिता का प्रभाव अधिक पड़ता है, पितामह का इससे कम और प्रपितामह का उससे भी कम, परन्तु फिर भी युवक दम्पती इन सभी को आमन्त्रित करते हैं और उनका भोजनादि के द्वारा मान करते हैं । ४. ये युवक बड़े प्रसन्न होते हैं कि उनके आमन्त्रण को स्वीकार करके (पितरः अक्षन्) = पितरों ने भोजन किया है और (पितरः अमीमदन्त) = पितर प्रसन्न हुए हैं, और (पितरः अतीतृपन्त) = उन पितरों ने तृप्ति का अनुभव किया है। ५. अब प्रसन्न व तृप्त पितरों से ये प्रार्थना करते हैं कि हे (पितरः शुन्धध्वम्) = आप उत्तम उपदेश व प्रेरणाओं से हमारे जीवनों को शुद्ध कीजिए। वस्तुतः पितृश्राद्ध का सर्वमहान् लाभ यही है कि हम अपने उन पितरों से अपने कुलधर्मों व जातिधर्मों का उपदेश ग्रहण करके अपने जीवन में प्रेरणा प्राप्त करते हैं तथा उनके आशीर्वादों से शुभमार्ग पर चलने की शक्ति का अनुभव करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम पिता - पितामह व प्रपितामहों को वानप्रस्थाश्रमों से समय-समय पर घर में आमन्त्रित करें। उनका अन्नादि द्वारा सत्कार करें। उनसे उपदेश व प्रेरणा लेकर अपने जीवनों को शुद्ध बनाएँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे पुत्र-शिष्य व पुत्रवधूंनो ! उत्तम अन्न वगैरे पदार्थांनी तुम्ही सतत पिता इत्यादी वृद्धांचा सत्कार करा. पितरांनीही तुम्हाला आनंदित करावे. माता व पिता बाल्यावस्थेत जशी तुमची सेवा करतात तशी तुम्हीही वृद्धावस्थेत त्यांची यथा योग्य सेवा करा.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    माता, पिता, पुत्र आदींनी एकमेकाशी कसे वागावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - ‘आम्ही पुत्र, शिष्य आदी लोक (स्वधायिभ्यः जे (पूज्यजन) स्वधा म्हणजे अन्न, जल आदी देण्यास पात्र आहेत, अशा (पितृभ्यः) ज्ञानीजनांना आम्ही (त्यांचे पुत्र वा शिष्य) (स्वधा) अन्न देतो आणि (नमः) त्यांचा सत्कार करतो. तसेच (स्वधायिभ्यः) पुष्कळ अन्नादी पदार्थांची इच्छा असणाऱ्या (पितामहेभ्यः) पित्याच्या पित्यांना आम्ही (स्वधा) उत्तम अन्न देतो आणि (नमः) त्यांचा सत्कार करतो. तसेच (स्वधायिभ्यः) उत्तम अन्नाची अपेक्षा करणाऱ्या (प्रपितामहेभ्यः) आजोबांच्या वडिलांना (आम्ही त्यांचे पणतू) (स्वधा) अन्न देतो व त्यांचा (नमः) आदर-सन्मान करतो. हे (पितरः) पिता आदी ज्ञानी जनहो, आम्ही उत्तम प्रकारे तयार केलेल्या अन्नाचे आपण (अक्षन्‌) सेवन करा. हे (पितरः) अध्यापक जनहो, आपण (या अन्न, सत्कार आदी कार्यामुळे) आनंदित व्हा, (सत्काराचा स्वीकार करा) आणि आम्हाला (अमीमदन्त) आनंदित करा. हे (पितरः) उपदेशकजणहो, आपण (आमच्या सत्कारादी कार्यामुळे तृप्त व्हा आणि आम्हाला (अतीतृपन्त) तृप्त वा संतुष्ट करा (आपण आम्ही केलेल्या सन्मानाने संतुष्ट झालात की आम्हाला परम तृप्ती होईल) हे (पितरः) विद्वज्जनहो, आपण शुद्ध व्हा आणि आम्हांला (शुन्धध्वम्‌) शुद्ध करा. ॥36॥

    भावार्थ

    भावार्थ - (परमेश्वराचा पुत्रादीच्याप्रति उपदेश) हे पुत्रांनो, शिष्यांनो आणि पुत्रवधू आदी (घरातील सर्व लहान सदस्यांनो) तुम्ही उत्तम अन्न आदीद्वारे पिता आदी घरातील वृद्ध, वयस्कर मंडळींचा नेहमी आदर-सत्कार करीत जा. तसेच वृद्धमंडळींनी देखील तुम्हा घरातील लहान मंडळीना आनंदित ठेवावे. ज्याप्रमाणे आई-वडिलांनी लहानपणी तुमची सेवा (लालन-पालन, सुश्रूषा) केली आहे (वा करीत आहेत) त्याप्रमाणे तुम्ही लोकांनीदेखील वृद्धावस्थेत त्यांची यथोचित सेवा केली पाहिजे. ॥36॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    We offer food and homage to our fathers who desire food and water. We offer food and homage to our grandfathers, who desire food and water. We offer food and homage to our great-grandfathers, who desire food and water. O parents eat the food we have prepared. O parents and teachers rejoice and make us full of joy. O preachers be satisfied and satisfy us. O learned persons be purified and purify us.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    To our parents and seniors, we offer their own share of food and reverence. To our grand-parents and seniors, we offer their own share of food and reverence. To our great-grand-parents and seniors, we offer their own share of food and reverence. Parents, partake of your own share we offer and rejoice. Rejoice and give us the pleasure of joy. Parents, teachers, seniors, enjoy yourselves to your full satisfaction and give us the satisfaction of service and reverence. Parents, teachers, seniors, be pure yourselves, and purify and sanctify us with the service we offer and your blessings.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    May this food with reverence be for the parents, who are in quest of food. (1) May this food with reverence be for the grandparents, who are in quest of food. (2) May this food with reverence be for the great grandparents, who are in quest of food. (3) The parents have taken meals. (4) The parents have been delighted. (5) The parents have been fully satisfied. (6) O parents, may you now cleanse yourselves. (7)

    Notes

    According to the ritualists, here follow the formulas (mantras) for oblation and prayer to the Fathers or the Manes of the departed ancestors. Svadhã, oblation; food. Also, an exclamation like svāhā, vaşat and vet to be pronounced while pouring an oblation in the fire. in quest of food. Svadhāyibhyah, स्वधां प्रति गमनशीलेभ्य:, to those who are Namaḥ, reverence; homage. Also, food. Akşan, भक्षितवंत:, have eaten. Sundhadhvam,शुद्धा: भवत, be cleansed.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পিত্রপত্যাদিভিরিতরেতরং কথং বর্ত্তিতব্যমিত্যাহ ॥
    মাতাপিতা পুত্রাদির সহিত পরস্পর কেমন ব্যবহার করিবে এই বিষয়েরউপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–আমরা পুত্র শিষ্যাদি মনুষ্য (স্বধায়িভ্যন্) যে স্বধা অন্ন ও জল প্রাপ্ত হওয়ার স্বভাবযুক্ত (পিতৃভ্যঃ) জ্ঞানিদেরকে (স্বধা) অন্ন দেয় এবং (নমঃ) সৎকার করে (স্বধায়িভ্যঃ) বহু অন্নের কামনাকারী (পিতামহেভ্যঃ) পিতার পিতাদেরকে (স্বধা) সুন্দর অন্ন প্রদান করে তথা (নমঃ) সৎকার করে এবং (স্বধায়িভ্যঃ) উত্তম অন্ন কামনাকারী (প্রপিতামহেভ্যঃ) পিতামহের পিতাদেরকে (স্বধা) অন্ন প্রদান করে এবং তাহাদের (নমঃ) সৎকার করে তাহারা হইলেন (পিতরঃ) পিতাদি জ্ঞানিগণ! আপনারা আমাদের উত্তম প্রকার রন্ধিত অন্ন আদির (অক্ষণ্) ভোজন করুন! হে (পিতরঃ) অধ্যাপকগণ! আপনারা আনন্দিত হইয়া আমাদিগকে (অমীমদন্ত) আনন্দযুক্ত করুন । হে (পিতরঃ) উপদেশকগণ! আপনারা তৃপ্ত হইয়া আমাদিগকে (অতীতৃপন্ত) তৃপ্ত করুন । হে (পিতরঃ) বিদ্বান্গণ! আপনারা শুদ্ধ হইয়া আমাদিগকে (শুন্ধধ্বম্) শুদ্ধ করুন ॥ ৩৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–হে পুত্র, শিষ্য ও পুত্রবধূ ইত্যাদি লোকজন! তোমরা উত্তম অন্নাদি পদার্থ দ্বারা পিতাদি বৃদ্ধদের নিরন্তর সৎকার করিতে থাক তথা পিতরগণ তোমাদিগকেও আনন্দিত করিতে থাকিবে যেমন মাতাপিতাদি বাল্যাবস্থায় তোমাদের সেবা করে সেইরূপ তোমরাও বৃদ্ধাবস্থায় তাহাদের যথাবৎ সেবা করিতে থাক ॥ ৩৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    পি॒তৃভ্যঃ॑ স্বধা॒য়িভ্যঃ॑ স্ব॒ধা নমঃ॑ পিতাম॒হেভ্যঃ॑ স্বধা॒য়িভ্যঃ॑ স্ব॒ধা নমঃ॒ প্রপি॑তামহেভ্যঃ স্বধা॒য়িভ্যঃ॑ স্ব॒ধা নমঃ॑ । অক্ষ॑ন্ পি॒তরোऽমী॑মদন্ত পি॒তরোऽতী॑তৃপন্ত পি॒তরঃ॒ পিত॑রঃ॒ শুন্ধ॑ধ্বম্ ॥ ৩৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    পিতৃভ্য ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । নিচৃদষ্টিশ্ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top