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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 61
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - पितरो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्तानृ॑तु॒मतो॑ हवामहे नाराश॒ꣳसे सो॑मपी॒थं यऽआ॒शुः। ते नो॒ विप्रा॑सः सु॒हवा॑ भवन्तु व॒य स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम्॥६१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्नि॒ष्वा॒त्तान्। अ॒ग्नि॒स्वा॒त्तानित्य॑ग्निऽस्वा॒त्तान्। ऋ॒तु॒मत॒ इत्यृ॑तु॒ऽमतः॑। ह॒वा॒म॒हे॒। ना॒रा॒श॒ꣳसे। सो॒म॒पी॒थमिति॑ सोमऽपी॒थम्। ये। आ॒शुः। ते। नः॒। विप्रा॑सः। सु॒हवा॒ इति॑ सु॒ऽहवाः॑। भ॒व॒न्तु॒। व॒यम्। स्या॒म॒। पत॑यः। र॒यी॒णाम्। ॥६१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निष्वात्ताँऽऋतुमतो हवामहे नाराशँसे सोमपीथँयऽआशुः । ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयँस्याम पतयो रयीणाम् ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निष्वात्तान्। अग्निस्वात्तानित्यग्निऽस्वात्तान्। ऋतुमत इत्यृतुऽमतः। हवामहे। नाराशꣳसे। सोमपीथमिति सोमऽपीथम्। ये। आशुः। ते। नः। विप्रासः। सुहवा इति सुऽहवाः। भवन्तु। वयम्। स्याम। पतयः। रयीणाम्।॥६१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 61
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पितृसन्तानैरितेतरं किं कर्त्तव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    ये सोमपीथमाशुर्यानृतुमतोऽग्निष्वात्तान् पितॄन् वयं नराशंसे हवामहे, ते विप्रासो नः सुहवा भवन्तु, वयं च तत्कृपातो रयीणां पतयः स्याम॥६१॥

    पदार्थः

    (अग्निष्वात्तान्) सुष्ठुगृहीताऽग्निविद्यान् (ऋतुमतः) प्रशस्ता वसन्तादय ऋतवो विद्यन्ते येषां तान् (हवामहे) (नाराशंसे) नराणां प्रशंसामये सत्कारव्यवहारे (सोमपीथम्) सोमपानम् (ये) (आशुः) अश्नीयुः (ते) (नः) अस्मभ्यम् (विप्रासः) मेधाविनः (सुहवाः) सुष्ठुदानाः (भवन्तु) (वयम्) (स्याम) (पतयः) स्वामिनः (रयीणाम्) धनानाम्॥६१॥

    भावार्थः

    सन्तानाः पदार्थविद्याविदो देशकालज्ञान् प्रशस्तौषधिरससेवकान् विद्यावयोवृद्धान् सत्कारार्थमाहूय तत्सहायेन धनाद्यैश्वर्य्यवन्तो भवन्तु॥६१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    माता-पिता और सन्तानों को परस्पर क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    (ये) जो (सोमपथीम्) सोम आदि उत्तम ओषधिरस को (आशुः) पीवें, जिन (ऋतुमतः) प्रशंसित वसन्तादि ऋतु में उत्तम कर्म करने वाले (अग्निष्वात्तान्) अच्छे प्रकार अग्निविद्या को जाननेहारे पिता आदि ज्ञानियों को हम लोग (नाराशंसे) मनुष्यों के प्रशंसारूप सत्कार के व्यवहार में (हवामहे) बुलाते हैं, (ते) वे (विप्रासः) बुद्धिमान् लोग (नः) हमारे लिये (सुहवाः) अच्छे दान देनेहारे (भवन्तु) हों और (वयम्) हम उनकी कृपा से (रयीणाम्) धनों के (पतयः) स्वामी (स्याम) होवें॥६१॥

    भावार्थ

    सन्तान लोग पदार्थविद्या और देश, काल के जानने और प्रशंसित औषधियों के रस को सेवन करनेहारे, विद्या और अवस्था में वृद्ध पिता आदि को सत्कार के अर्थ बुला के, उनके सहाय से धनादि ऐश्वर्य्य वाले हों॥६१॥

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    भावार्थ

    (ये) जो (नाराशंसे) उत्तम पुरुषों के प्रशंसा योग्य सत्कार व्यवहार में (सोमपीथम् ) राज्यैश्वर्य के पालन के पदाधिकारी को (आशुः) प्राप्त करते हैं उन ( अग्नि-स्वात्तान् ) अग्रणी, तेजस्वी पद को प्राप्त या सेनानायकों द्वारा स्वीकृत विद्वान् (ऋतुमतः ) क्षात्र-बल के स्वामी पुरुषों को ( हवामहे) आदर से बुलावें । (ते) वे (विप्रासः) मेधावी, विद्वान् पुरुष (नः) हमें (सु-हवाः) उत्तम समृद्धि के देने वाले (भवन्तु) हों । और हम ( रयीणां पतयः स्याम ) ऐश्वर्यों के स्वामी बनें । 'ऋतुमतः - या षड् विभूतयः ऋतवस्ते | जै० १।२।१।१। ऋतव उपसदः श० १०।२।५ ॥ तदस्या ऋतवोऽभवन् । तै० ३।१२।९।४। ऋतवो वै सोमस्य राज्ञो राजभ्रातरो यथा मनुष्यस्य । ऐ० १। १३ ॥ ऋतव एते यऋतव्याः । क्षत्रं वा ऋतव्याः,विश इमा इतरा इष्टकाः ॥ श० ७।१|१।७२ ॥ विभूतियाँ उपसद् अर्थात् उपसभाएं, या मोर्चे, राजाओं के सम्बन्धी जन, राजसभा के सदस्य और क्षत्रिय पदाधिकारी ये सब 'ऋतु' कहाते हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    शंखः । पितरः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    नाराशंस में सोमपान

    पदार्थ

    १. (अग्निष्वात्तान्) = ग्रहण की है अग्नि आदि पदार्थों की विद्या जिन्होंने उन (ऋतुमतः) = प्रशस्त ऋतुओंवाले, अर्थात् ऋतुओं के अनुसार दिनचर्यावाले पितरों को हम (नाराशंसे) = नरसमूह के लिए (आशंसनीय) = प्रशस्त धर्मों को करने के निमित्त (हवामहे) पुकारते हैं । २. हम उन पितरों को पुकारते हैं (ये) = जो (सोमपीथम्) = सोम के पान को (आशुः) = [ अश्नन्ति ] खाते हैं। सोमपान करनेवाले पितर ही स्वस्थ रहकर नरों के लिए हितकर कार्यों के करनेवाले होते हैं। ३. (ते विप्रासः) = विशेषरूप से अपना पूर्ण करनेवाले पितर (नः) = हमारे लिए (सुहवा:) = सुगमता से आमन्त्रित करने योग्य (भवन्तु) हों और इनके उपदेशों को सुनकर तथा इनसे प्रेरणा प्राप्त करके (वयम्) = हम (रयीणाम्) = धनों के (पतयः स्याम) = सदा पति ही बने रहें, हम कभी धन के दास न बन जाएँ। धन को साधन के रूप में देखते हुए हम भी [क] अग्निष्वात्त बनने का प्रयत्न करें - उत्कृष्ट ज्ञानी बनें, पदार्थविद्या का खूब अध्ययन करें। [ख] ऋतुमान बनें, ऋतुओं के अनुकूल हमारी दिनचर्या हो । [ग] नरहित के लिए प्रशंसनीय कर्मों को करनेवाले बनें। [घ] सोमपान से शक्ति की रक्षा का पूरा ध्यान करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम अग्नि आदि सब पदार्थों के विज्ञान में कुशल बनकर ऋतु के अनुसार भोजनादि क्रियाओं को करते हुए नरहित के प्रशंसनीय कर्मों को करनेवाले बनें। इस नाराशंस के निमित्त सोमपान करें, अर्थात् शरीर में सोम की रक्षा करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    पदार्थविद्या व देशकाल परिस्थिती जाणून उत्तम औषधांच्या रसाचे सेवन करणारे व विद्यायुक्त आणि वयोवृद्ध असणारे पिता इत्यादींचा संतानांनी सत्कार करावा. त्यांना आमंत्रित करून त्यांच्या साह्याने धन वगैरे ऐश्वर्य प्राप्त करावे.

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    विषय

    माता-पिता व संतानांनी एकमेकाशी कसे वागावे, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (ये) जे (सोमपीथम्‌) सोम आदी उत्तम रसाचे (आशुः) सेवन करतात, आणि जे (ऋतुमतः) मनोहर वसंत आदी ऋतूत (यज्ञ आदी) उत्तम कर्म करणारे, तसेच (अग्निष्वात्तान्‌) चांगल्या प्रकारे अग्निविद्या जाणणारे आमचे पिता आदी ज्ञानी लोक आहेत, त्यांना (आम्ही संताने) (नाराशंसे) ज्यात विद्वानांचा सत्कार व प्रशंसा केली जाते, अशा कार्यक्रमात (हवामहे) बोलावतो (आणि सत्कारादीद्वारा त्यांना प्रसन्न करतो (ते) ते (विप्रासः) बुद्धिमान लोक (नः) आम्हाला (सुहवाः) श्रेष्ठ (विद्या, ज्ञान आदी) दान देणारे (भवन्तु) असोत आणि त्यांच्या कृपेने (वयम्‌) आम्ही (त्यांची मुलें, नातवंडे आदी) (रयीणाम्‌) धन-संपत्तीचे (पतयः) स्वामी (स्याम) व्हावेत (अशी आम्ही कामना करतो) ॥61॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे पदार्थ विद्येचे ज्ञाता आहेत, देश, काल, परिस्थिति जाणतात, उत्तम हितकर औषधीचे सेवन करतात, तसेच ज्ञानवृद्ध आणि वयोवृद्ध पिता आदी ज्येष्ठ वयस्कर विद्वान आहेत, संतानांनी सत्कारादी कार्यासाठी त्यांना निमंत्रित केले पाहिजे आणि त्यांच्या मार्गदर्शन व सहाय्याने धनादी ऐश्वर्याचे स्वामी व्हायला हवे ॥61॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    We invite for the good of humanity, the sages who know the science of fire, drink the medicinal juice of Soma, and are true to seasons. May they be charitable to us, and make us lords of wealth.

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    Meaning

    Those experts of the science and technology of fire who work according to the seasons needs and who enjoy a drink of soma, we invite to social receptions and honour of felicitations. May they, noble scholars and creators, be great benefactors of society, and may we all become producers, protectors and masters of wealth and prosperity in the world.

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    Translation

    We invite those persons who are expert in uses of fires and who are careful about seasons to work for the benefit of all men, and who enjoy the devotional bliss. May those wise ones be prompt to come at our invitation and may we become masters of riches. (1)

    Notes

    Nārāśamse, in the work undertaken for the benefit of all men. Also, in a cup containing Soma juice dedicated to Narāsainsa, Agni, praised by men. Ṛtumataḥ, ऋतुसंयुक्तान्, careful about seasons. Suhavāḥ, easy to call; responding promptly to our calls.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পিতৃসন্তানৈরিতেতরং কিং কর্ত্তব্যমিত্যাহ ॥
    মাতাপিতা ও সন্তানদিগকে পরম্পর কী করা উচিত এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–(য়ে) যাহারা (সোমপীথম্) সোমাদি উত্তম ওষধিরসকে (আশুঃ) পান করিবেন, যে সব (ঋতুমতঃ) প্রশংসিত বসন্তাদি ঋতুতে উত্তম কর্ম সম্পাদনকারী (অগ্নিষ্বাত্তান্) উত্তম প্রকার অগ্নিবিদ্যার জ্ঞাতা পিতাদি জ্ঞানিদেরকে আমরা (নারাশংসে) মনুষ্যদিগের প্রশংসারূপ সৎকারের ব্যবহারে (হবামহে) আহ্বান করি (তে) তাহারা (বিপ্রাসঃ) বুদ্ধিমানগণ (নঃ) আমাদের জন্য (সুহবাঃ) সুদাতা (ভবন্তু) হউন এবং (বয়ম্) আমরা তাহাদের কৃপায় (রয়ীণাম্) ধনসমূহের (পতয়ঃ) স্বামী (স্যাম) হইব ॥ ৬১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–সন্তানগণ পদার্থ বিদ্যা ও দেশকাল জ্ঞাতা এবং প্রশংসিত ওষধি সমূহের রসকে সেবনকারী বিদ্যা ও অবস্থায় বৃদ্ধ পিতাদিকে সৎকারের হেতু ডাকিয়া তাহাদের সাহায্য দ্বারা ধনাদি ঐশ্বর্য্যযুক্ত হও ॥ ৬১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒গ্নি॒ষ্বা॒ত্তানৃ॑তু॒মতো॑ হবামহে নারাশ॒ꣳসে সো॑মপী॒থং য়ऽআ॒শুঃ ।
    তে নো॒ বিপ্রা॑সঃ সু॒হবা॑ ভবন্তু ব॒য়ᳬं স্যা॑ম॒ পত॑য়ো রয়ী॒ণাম্ ॥ ৬১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অগ্নিষ্বাত্তানিত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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