यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 68
ऋषिः - शङ्ख ऋषिः
देवता - पितरो देवताः
छन्दः - स्वराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
2
इ॒दं पि॒तृभ्यो॒ नमो॑ऽअस्त्व॒द्य ये पूर्वो॑सो॒ यऽउप॑रास ई॒युः। ये पार्थि॑वे॒ रज॒स्या निष॑त्ता॒ ये वा॑ नू॒नꣳ सु॑वृ॒जना॑सु वि॒क्षु॥६८॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम्। पि॒तृभ्य॒ इति॑ पि॒तृभ्यः॑ नमः॑। अ॒स्तु॒। अ॒द्य। ये। पूर्वा॑सः। ये। उप॑रासः। ई॒युः। ये। पार्थि॑वे। रज॑सि। आ। निष॑त्ताः। निस॑त्ता॒ इति॒ निऽस॑त्ताः। ये। वा॒। नू॒नम्। सु॒वृ॒जना॒स्विति॑ सुऽवृ॒जना॑सु। वि॒क्षु ॥६८ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदम्पितृभ्यो नमोऽअस्त्वद्य ये पूर्वासो यऽउपरासऽईयुः । ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता ये वा नूनँ सुवृजनासु विक्षु ॥
स्वर रहित पद पाठ
इदम्। पितृभ्य इति पितृभ्यः नमः। अस्तु। अद्य। ये। पूर्वासः। ये। उपरासः। ईयुः। ये। पार्थिवे। रजसि। आ। निषत्ताः। निसत्ता इति निऽसत्ताः। ये। वा। नूनम्। सुवृजनास्विति सुऽवृजनासु। विक्षु॥६८॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
ये पितरः पूर्वासो य उपरास ईयुर्ये पार्थिवे रजस्या निषत्ता वा नूनं ये सुवृजनासु विक्षु प्रयतन्ते, तेभ्यः पितृभ्योऽद्येदं नमोऽस्तु॥६८॥
पदार्थः
(इदम्) प्रत्यक्षम् (पितृभ्यः) जनकादिभ्यः (नमः) सुसंस्कृतमन्नम् (अस्तु) (अद्य) इदानीम् (ये) (पूर्वासः) अस्मत्तो वृद्धाः (ये) (उपरासः) वानप्रस्थसंन्यासाश्रमाप्ता गृहाश्रमविषयभोगेभ्य उपरताः (ईयुः) प्राप्नुयुः (ये) (पार्थिवे) पृथिव्यां विदिते (रजसि) लोके (आ) (निषत्ताः) कृतनिवासाः (ये) (वा) (नूनम्) निश्चितम् (सुवृजनासु) शोभना वृजनाः गतयो यासां तासु (विक्षु) प्रजासु॥६८॥
भावार्थः
अस्मिन् संसारे ये प्रजाशोधका अस्मत्तो वरा विरक्ताश्रमं प्राप्ताः पित्रादयस्सन्ति, ते पुत्रादिभिर्मनुष्यैः सदा सेवनीया नोचेत् कियती हानिः॥६८॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(ये) जो पितर लोग (पूर्वासः) हम से विद्या वा अवस्था में वृद्ध हैं, (ये) जो (उपरासः) वानप्रस्थ वा संन्यासाश्रम को प्राप्त होके गृहाश्रम के विषयभोग से उदासीनचित्त हुए (ईयुः) प्राप्त हों, (ये) जो (पार्थिवे) पृथिवी पर विदित (रजसि) लोक में (आ, निषत्ताः) निवास किये हुए (वा) अथवा (ये) जो (नूनम्) निश्चय कर के (सुवृजनासु) अच्छी गतिवाली (विक्षु) प्रजाओं में प्रयत्न करते हैं, उन (पितृभ्यः) पितरों के लिये (अद्य) आज (इदम्) यह (नमः) सुसंस्कृत अन्न (अस्तु) प्राप्त हो॥६८॥
भावार्थ
इस संसार में जो प्रजा के शोधने वाले हमसे श्रेष्ठ विरक्ताश्रम अर्थात् संन्यासाश्रम को प्राप्त पिता आदि हैं, वे पुत्रादि मनुष्यों को सदा सेवने योग्य हैं, जो ऐसा न करें तो कितनी हानि हो॥६८॥
विषय
पूर्व और पर तथा पृथिवीलोक और प्रजाओं पर अधिष्ठित पालक जनों का वर्णन ।
भावार्थ
( अद्य ) आज विशेष दिन (ये पूर्वासः) जो पूर्व के हमारे पहले के और हमसे पूर्व नियुक्त हैं और (ये) जो (उ-परासः) अपने कार्य की अवधि समाप्त करके वनस्थ व संन्यस्त होकर, (ईयुः) चले गये हैं उन (पितृभ्यः) पालक पुरुषों के निमित्त (इदं नमः) यह नमस्कार, आदर एवं अन्न आदि (अस्तु) प्राप्त हो । और (ये) जो ( पार्थिवे रजसि ) पृथिवी लोक में (आ निषत्ताः ) अधिष्ठाता रूप से हैं (ये वा) और जो ( नूनम् ) निश्चय से (सु-वृजनासु) उत्तम बल और आचार वाली (विक्षु) प्रजाओं पर ( आ- निषत्ताः) अधिष्ठाता रूप से हैं उनको भी (इदं नमः अस्तु) यह अन्न, वेतन आदर प्राप्त हो ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शंखः । पितरः । स्वराट् पंक्तिः । पंचमः ॥
विषय
उत्कृष्ट पितर
पदार्थ
१. (अद्य) = आज (पितृभ्यः) = ज्ञानप्रद पितरों के लिए (इदं नमः अस्तु) = यह सत्कार व अन्न हो। हम सत्कारपूर्वक उनके लिए सात्त्विक हव्य पदार्थों को प्राप्त कराएँ । २. (ये) = जो पितर (पूर्वास:) = हमसे विद्या व अवस्था में वृद्ध हैं, गुणों के दृष्टिकोण से पूर्वस्थान में स्थित हैं। (उ) = और (ये) = जो (उपरासः) = [उपरमन्ते इति, विषयेभ्य उपरताः] जो सांसारिक विषयों से उपरत हुए हैं। जो [ कृतकृत्याः परं ब्रह्म ईयु : - उ० ] गृहस्थ के सब कार्यभारों को पूर्ण करके अब ब्रह्मज्ञान में ही मुख्यरूप से (ईयुः) = गति कर रहे हैं। ३. (ये) = जो (पितर पार्थिवे रजसि) = इस पार्थिवलोक में, पृथिवीलोक के मुख्य देवता अग्नि में (आनिषत्ताः) = समन्तात् निषण्ण हैं, सब प्रकार से यज्ञ-यागादि करने में प्रवृत्त हैं। (ये वा) = या जो (नूनम्) = निश्चय से (सुवृजनासु) = [शोभनं वृजनं बलं यासाम्] उत्तम धर्म - [पापवर्जन] - रूप बलवाली (विक्षु) = प्रजाओं में गिने जाते हैं, उन सब पितरों के लिए हम सत्कारपूर्वक अन्न प्राप्त कराएँ ।
भावार्थ
भावार्थ- हम 'पूर्व' अर्थात् विद्यावयोवृद्ध 'उपर' विषयों से उपरत 'पार्थिवे रजसि आनिषत्ता' = अग्नि में यज्ञ-यागादि करनेवाले तथा उत्तम धर्मरूप बलवाले पितरों का अन्नादि से सत्कार करनेवाले बनें।
मराठी (2)
भावार्थ
या जगात आपल्यापेक्षाही श्रेष्ठ व विरक्त, दोष दूर करणारे, शुद्धी करणारे सन्यासी पिता असतात त्यांचा पुत्रांनी सदैव मान ठेवावा. या योग्यतेचेच ते असतात व जे असे मान ठेवणारे नसतात त्यांची खूप हानी होते.
विषय
पुनश्च तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (पुत्र वा गृहस्थजन म्हणतात) (ये) जे पितरजन (पूर्वासः) आमच्यापेक्षा वयाने आणि ज्ञानाच्या दृष्टीने वृद्ध आहेत, तसेच (ये) जे पिता, पितामह आदीजन (उपरासः) वानप्रस्थ वा संन्यासाश्रम स्वीकारलेले आहेत आणि गृहस्थाश्रमातील विषयभोगांना कंटाळून उदासिनचित्त विरागी वानप्रस्थ व संन्यासी (ईयुः) झाले आहेत, (त्यांना आम्ही सुसंस्कारित अन्न देत आहोत) या शिवाय (ये) जे पितर (पार्थिवे) पृथ्वीवरील (ज्ञात-अज्ञात) (रजसि) लोकात (वा प्रदेशात) (आ, निषत्ताः) निवास करीत आहेत, (वा) अथवा (ये) जे (नूनम) निश्चयाने (सुवृजनासु) चांगली आचरण असणारी (विक्षु) प्रजा (वा संतान) होण्यासाठी यत्न करतात, त्या (पितृभ्यः) पिता आदी लोकांसाठी (अद्य) आज (आम्ही गृहस्थ जन) (इदम्) हे शुद्ध रूचकर भोजन (अस्तु) प्रस्तुत करीत आहोत (याचा त्या सर्वांनी स्वीकार करावा) ॥68॥
भावार्थ
भावार्थ - या जगात प्रजेत (समाजात) सुधारणा करणारे, आम्ही सामान्यजनांपेक्षा) श्रेष्ठ, विरक्त वानप्रस्थ वा संन्यासाश्रम स्वीकारलेले, जे पिता आदी वंदनीय लोक आहेत, ??? सदा त्यांची सेवा केली पाहिजे. तसे न केल्यास समाजाची फार मोठी हानी होईल (वा होते), यात शंका नाही ॥68॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Now let us offer food to the fathers who are more advanced than us in age and knowledge, who have taken to Banprastha and Sanyas Ashramas, who are engrossed in worldly affairs, and who work amongst the people of high character.
Meaning
Let this food and adoration today be for the parents and seniors, those who came earlier, those who came later, those who are seated in this earthly world and those who are on the move for sure among the moving people.
Translation
Here today we pay homage to the elders, who depart earlier and to those who follow later; to those, who dwell in this material world as well as to those, who live among people of righteous actions. (1)
Notes
Namaḥ, homage, reverence. Also, food. Pūrvāsaḥ, who departed earlier. Uparāsaḥ, who followed later. Pārthive rajasi nişattā, पृथिवी लोके स्थिता:, dwelling on this earth or in this material world. Suvrjanāsu viksu, शोभनाचारासु प्रजासु, among people of righteous actions.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ– (য়ে) যে সব পিতর লোকেরা (পূর্বাসঃ) আমাদের হইতে বিদ্যা বা অবস্থায় বৃদ্ধ (য়ে) যাহারা (উপরাসঃ) বানপ্রস্থ বা সন্ন্যাসাশ্রম প্রাপ্ত হইয়া গৃহাশ্রমের বিষয় ভোগ হইতে উদাসীন চিত্ত হইয়া (ঈষুঃ) প্রাপ্ত হয় (য়ে) যাহারা (পার্থিবে) পৃথিবীর উপর বিদিত (রজসি) লোকে (আ, নিষত্তাঃ) নিবাস কৃত (বা) অথবা (য়ে) যাহারা (নূনম্) নিশ্চয় করিয়া (সুবৃজনাসু) সুগতিসম্পন্ন (বিক্ষু) প্রজাদের মধ্যে প্রচেষ্টা করে সেই (পিতৃভ্যঃ) পিতর দের জন্য (অদ্য) আজ (ইদম্) এই (নমঃ) সুসংস্কৃত অন্ন (অস্তু) প্রাপ্ত হউক ॥ ৬৮ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–এই সংসারে যাহারা প্রজাশোধক আমাদের হইতে শ্রেষ্ঠ বিরক্তাশ্রম অর্থাৎ সন্ন্যাসাশ্রম প্রাপ্ত পিতাদি আছেন তাহারা পুত্রাদি মনুষ্যদিগকে সর্বদা সেবনীয় যাহারা এইরকম করিবে না, তাহা হইলে কত হানি হয় ॥ ৬৮ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ই॒দং পি॒তৃভ্যো॒ নমো॑ऽঅস্ত্ব॒দ্য য়ে পূর্বো॑সো॒ য়ऽউপ॑রাস ঈ॒য়ুঃ ।
য়ে পার্থি॑বে॒ রজ॒স্যা নিষ॑ত্তা॒ য়ে বা॑ নূ॒নꣳ সু॑বৃ॒জনা॑সু বি॒ক্ষু ॥ ৬৮ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ইদমিত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । স্বরাট্ পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
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