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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 72
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिक् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    सोमो॒ राजा॒मृत॑ꣳ सु॒तऽऋ॒जी॒षेणा॑जहान्त्मृ॒त्युम्। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑ राजा॑। अ॒मृत॑म्। सु॒तः। ऋ॒जी॒षेण॑। अ॒ज॒हा॒त्। मृ॒त्युम्। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७२ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो राजामृतँ सुत ऋजीषेणाजहान्मृत्युम् । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः राजा। अमृतम्। सुतः। ऋजीषेण। अजहात्। मृत्युम्। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७२॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 72
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    के मुक्तिमाप्नुवन्तीत्याह॥

    अन्वयः

    य ऋतेनान्धसः सत्यं विपान्ं शुक्रमिन्द्रियमिन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयोऽमृतं मधु च सङ्गृह्णीयात्, सोऽमृतं प्राप्तः सन् सुतस्सोमो राजर्जीषेण मृत्युमजहात्॥७२॥

    पदार्थः

    (सोमः) ऐश्वर्यवान् प्रेरकः (राजा) देदीप्यमानः (अमृतम्) अमृतात्मक ब्रह्म ओषधेः सारं वा (सुतः) (ऋजीषेण) सरलभावेन (अजहात्) जह्यात् (मृत्युम्) (ऋतेन) सत्येन ब्रह्मणा (सत्यम्) सत्सु साधु (इन्द्रियम्) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गम (विपानम्) विविधं पानं यस्मात् तत् (शुक्रम्) आशु कार्य्यकरम् (अन्धसः) अन्नस्य (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (इन्द्रियम्) धनम् (इदम्) जलम्। इदमित्युकदनामसु पठितम्॥ (निघं॰१.१२) (पयः) दुग्धम् (अमृतम्) एतत्स्वरूपमानन्दम् (मधु) क्षौद्रम्॥७२॥

    भावार्थः

    ये सुशीलेन विद्वत्सङ्गात् सर्वाणि शुभलक्षणानि प्राप्नुवन्ति, ते मृत्युदुःखं हित्वा मोक्षसुखं गृह्णन्ति॥७२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    कौन पुरुष मुक्ति को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (ऋतेन) सत्य ब्रह्म के साथ (अन्धसः) सुसंस्कृत अन्नादि के सम्बन्धी (सत्यम्) विद्यमान द्रव्यों में उत्तम पदार्थ (विपानम्) विविध पान करने के साधन (शुक्रम्) शीघ्र कार्य करानेहारे (इन्द्रियम्) धन (इन्द्रस्य) परम ऐश्वर्य वाले जीव के (इन्द्रियम्) श्रोत्र आदि इन्द्रिय (इदम्) जल (पयः) दुग्ध (अमृतम्) अमृतरूप ब्रह्म वा ओषधि के सार और (मधु) सहत का संग्रह करे, सो (अमृतम्) अमृतरूप आनन्द को प्राप्त हुआ (सुतः) संस्कारयुक्त (सोमः) ऐश्वर्यवान् प्रेरक (राजा) न्यायविद्या से प्रकाशमान राजा (ऋजीषेण) सरल भाव से (मृत्युम्) मृत्यु को (अजहात्) छोड़ देवे॥७२॥

    भावार्थ

    जो उत्तम शील और विद्वानों के सङ्ग से सब शुभलक्षणों को प्राप्त होते हैं, वे मृत्यु के दुःख को छोड़कर मोक्षसुख को ग्रहण करते हैं॥७२॥

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    विषय

    अभिषिक्त राजा का कोष, बल द्वारा विपद्-विजय सम्पत् प्राप्ति ।आध्यात्मिक मृत्युंजय और मधु अमृत पान का रहस्य ।

    भावार्थ

    (सोमः) सर्वप्रेरक ( राजा ) राजा, सबसे ऊपर विराजमान पुरुष भी (सुतः) राजपद पर अभिषिक्त होकर (अमृतम् ) अमृत, अखण्ड राज्य को पाता है । वह (ऋजीषेण) सरल, धर्मानुकूल आचरण से, अथवा संगृहीत प्रभूत धनकोष और सेनाबल द्वारा ( मृत्युम् ) प्रजा और राजा पर आने वाले मृत्यु अर्थात् प्राणसंकट को ( अजहात् ) दूर करता है । (ऋतेन), सत्य, वेदज्ञान से (सत्यम् ) सच्चे (वि- पानम् ) विविध प्रकार से राष्ट्र की रक्षा करने में समर्थ (इन्द्रियम् ) राजोचित ऐश्वर्य, बल और (अन्धसः) अन्न के ( शुक्रम) शुद्ध, सारभूत वीर्य और (इन्द्रस्य) ऐश्वर्यवान् सेनापति के ( इन्द्रियम् ) ऐश्वर्य और (इदम् ) इस प्रत्यक्ष ( पयः ) पुष्टिकारक अन्न, ( अमृतम् ) दीर्घजीवन या उत्तम जल और (मधु ) मधुर पदार्थ को प्राप्त करता है । अध्यात्म में- सोम राजा ज्ञानी पुरुष योग आदि द्वारा ज्ञानसम्पन्न शुद्ध-बुद्ध होकर अमृतपद लाभ करता है और मृत्यु को पार कर जाता है । अन्न से जिस प्रकार वीर्य प्राप्त करता है उसी प्रकार ऋत, सत्य के बल पर सच्चे आत्मिक बल को और इन्द्र ऐश्वर्यवान् आत्मा के इन्द्रिय, ऐश्वर्यमय स्वरूप को साक्षात् दूध के समान स्वच्छ अमृत के समान अविनाशी मधु के समान मधुर आनन्द को प्राप्त करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ७२–७९—अश्विसरस्वतीन्द्रा ऋषयः । ग्रहाः, सोमश्च । भुरिक् त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    सोम तथा अमरता

    पदार्थ

    १. गतमन्त्र के अनुसार क्रियाशीलता के द्वारा वासनाओं से ऊपर उठ जाने पर शरीर में सोम सुरक्षित रहता है और यह (सोम:) = सोम (राजा) = [राजू दीप्तौ] उसके जीवन को दीप्त करनेवाला होता है। २. (अमृतम्) = यह सोम अमृत है। यह अपने रक्षा करनेवाले की अमरता का कारण बनता है, उसे रोगों का शिकार नहीं होने देता। ३. (सुतः) = निष्पादित हुआ हुआ यह सोम (ऋजीषेण) = [सरल भावेन-द०] जीवन में सरलता के मार्ग से चलने के द्वारा- सरलभाव को अपनाने के द्वारा (मृत्युम्) = मृत्यु को अजहात् छोड़ता है, अर्थात् सोम की रक्षा करनेवाला पुरुष सरलवृत्तिवाला होता है और जीवन में व्यर्थ की चिन्ताओं से रहित होने के कारण वह कभी अकालमृत्यु का ग्रास नहीं होता । सोमरक्षा से जीवन सौम्य व शान्त होता है। शान्त व सरल पुरुष अवश्य पूर्ण आयुष्य प्राप्त करता है। २. (शुक्रं ऋतेन) = यह सोम मानव-जीवन में व्यवस्था [राजा] व नियमितता के द्वारा [ऋत] सत्य का वर्धन करनेवाला होता है, (इन्द्रियम्) = एक-एक इन्द्रिय की शक्ति का वर्धक होता है, (विपानम्) = यह उसकी विशेषरूप से रक्षा करनेवाला होता है। सत्य के वर्धन के द्वारा यह सोम मन को दीप्त करता है, इन्द्रियों की शक्ति के वर्धन से इन्द्रियों को उज्ज्वल बनाता है, और शरीर की रोगों से विशेषरूप से रक्षा करके शरीर को तेजस्वी बनाता है। एवं, शरीर इन्द्रियों व मन को दीप्त करने के कारण इसका 'शुक्र' यह नाम सार्थक ही है, [शुच दीप्तौ ] । ३. (अन्धसः) = अन्न से, अध्यायनीय-अत्यन्त ध्यान देने योग्य सात्त्विक अन्न से उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (इन्द्रस्य) = जीवात्मा के (इन्द्रियम्) = प्रत्येक अङ्ग की शक्ति का वर्धन करनेवाला होता है । (इदम्) = यह उसका (पयः) - आप्यायन करनेवाला होता है, (अमृतम्) = यह उसे रोगों द्वारा मृत्यु का शिकार नहीं होने देता। (मधु) = यह उसके जीवन को अत्यन्त मधुर बना देता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम की रक्षा करनेवाला व्यक्ति सरल वृत्ति व स्वभाव का बनता है। इसके जीवन में व्यर्थ की चिन्ताएँ उत्पन्न नहीं होतीं, इसीलिए यह दीर्घजीवी बनता है। इसके जीवन में सत्य तथा माधुर्य होता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे चरित्रवान असतात व विद्वानांच्या संगतीने शुभलक्षणयुक्त होतात ते मृत्यूच्या दुःखापासून मुक्त होऊन मोक्षसुख प्राप्त करतात.

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    विषय

    कोणती वा कशी माणसें मुक्ती प्राप्त करतात, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जो माणूस (ऋतेन) सत्य ज्ञानासह (प्रामाणिकपणे) (अन्धसः) शुद्ध अन्न (संग्रहीत करतो) (सत्यम्‌) सर्व द्रव्यातून उत्तम पदार्थांचे आणि (विपानम्‌) पान करण्याचे विविध साधन (रस, सार आदी) संग्रहीत करतो, जो (शुक्रम्‌) कार्यशीघ्र पूर्ण करून (इन्द्रियम्‌) धन आणि (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यशाली जीवाचे (इन्द्रियम्‌) कर्ण आदी इन्द्रियें (सुरक्षित वा अव्यंग ठेवतो) (तो माणूस मृत्यूला जिंकू शकतो) (या शिवाय गार्हस्थधर्माच्या यशस्वितेसाठी) जो (इदम्‌) शुद्ध, स्वच्छ, जल, (पयः) दूश्र, (अमृतम्‌) अमृतरूप ज्ञान अथवा औषधींचे सार आणि (मधु) मध या सर्व जीवनावश्यक पदार्थांचा संग्रह करतो (तो मृत्यूला पराभूत करतो) त्याचप्रमाणे एक (सुतः) सुसंस्कार संपन्न (सोमः) ऐश्वर्यवान आणि प्रेरक (राजा) न्याय करणारा राजा देखील (ऋजीषेण) सहजपणे (मृत्युम्‌) मृत्यूला (अजहात्‌) दूर ठेवतो (जिंकतो) (तात्पर्य हा की शुद्ध अन्न, उत्तम रस प्रामाणिकपणे मिळवलेले ऐश्वर्य, औषधी आणि अन्नादी पदार्थ, हे सर्व मनुष्याला दीर्घायू करतात. तो मृत्यला जिंकू शकतो आणि शेवटी सत्कर्मांचे फळ म्हणून मुक्तावस्था प्राप्त करू शकतो.) ॥72॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक श्रेष्ठ शीलवान, चारित्र्य संपन्न असून विद्वज्जनांच्या संगतीत राहतात, ते सर्व शुभलक्षणें प्राप्त करतात आणि मृत्यू रूप दुःखाला दूर ठेवून अंततः मोक्षसुख प्राप्त करतात ॥72॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    A renowned sage, through yoga, and religious practices, overcomes death and attains to salvation. Just as with food one gets strength, so he reaches the final beatitude on the strength of truth, realises his soul-force, manifests the supreme nature of his supreme soul, pure like milk, immortal like the Supreme Spirit, and sweet like honey.

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    Meaning

    Soma, the man cleansed and distilled like soma through discipline, brilliant and inspiring, meditating on God and godly in character, by the simplicity and sincerity of his natural living conquers the pain of death. By his dedication to Rita, the universal Law of Dharma, he attains truth, spiritual power, soothing drinks, purity and vitality, best foods, honour and prosperity, water and milk, honey and the very nectar of life.

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    Translation

    The cure-juice (soma) the king of medicines, is the drink of life, when it is pressed out well. It leaves death behind with other crude drugs. By sacrifice the truth gains strength and consumption of food becomes pure. May this nectar-like sweet milk be the strength of the resplendent self. (1)

    Notes

    Räjā, king of herbal plants. Suta, pressed out. Mrtyum ajahāt, leaves death behind. Rjisena, with other crude drugs. Also,सरल भावेन ,easily. Ṛtena satyam indriyam, यज्ञेन सत्यं बलं आप्नोति ,by sacrifice the truth gains strength. Andhasah vipānam śukram, अन्नस्य विविधंपानं शुद्धं भवति, consumption of food becomes pure. Indrasya idam indriyam, (may) this be the strength of Indra, the resplendent Self. Payaḥ, amṛtam, madu, milk, nectar-like, honey sweet.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কে মুক্তিমাপ্নুবন্তীত্যাহ ॥
    কোন্ পুরুষ মুক্তি প্রাপ্ত হয় এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যিনি (ঋতেন) সত্যব্রহ্ম সহ (অন্ধসঃ) সুসংস্কৃত অন্নাদি সম্পর্কীয় (সত্যম্) বিদ্যমান দ্রব্যে উত্তম পদার্থ (বিপানম্) বিবিধ পান করিবার সাধন (শুক্রম্) শীঘ্র কর্মক্ষম (ইন্দ্রিয়ম্) ধন (ইন্দ্রস্য) পরম ঐশ্বর্য্যযুক্ত জীবের (ইন্দ্রিয়ম্) শ্রোত্রাদি ইন্দ্রিয় (ইদম্) জল (পয়ঃ) দুগ্ধ (অমৃতম্) অমৃতরূপ ব্রহ্ম বা ওষধি সার এবং (মধু) মধু সংগ্রহ করে সুতরাং (অমৃতম্) অমৃতরূপ আনন্দ প্রাপ্ত হইয়া (সুতঃ) সংস্কারযুক্ত (সোমঃ) ঐশ্বর্য্যবান্ প্রেরক (রাজা) ন্যায়বিদ্যা দ্বারা প্রকাশমান রাজা (ঋজীষেণ) সরল ভাব পূর্বক (মৃত্যুম্) মৃত্যুকে (অজহাৎ) ছাড়িয়া দিক্ ॥ ৭২ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যাহারা উত্তমশীল এবং বিদ্বান্দিগের সঙ্গ দ্বারা সকল শুভলক্ষণসমূহকে প্রাপ্ত হন তাহারা মৃত্যুর দুঃখ ছাড়িয়া মোক্ষসুখ গ্রহণ করেন ॥ ৭২ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সোমো॒ রাজা॒মৃত॑ꣳ সু॒তऽঋ॒জী॒ষেণা॑জহান্মৃ॒ত্যুম্ । ঋ॒তেন॑ স॒ত্যমি॑ন্দ্রি॒য়ং বি॒পান॑ꣳ শু॒ক্রমন্ধ॑স॒ऽইন্দ্র॑স্যেন্দ্রি॒য়মি॒দং পয়ো॒ऽমৃতং॒ মধু॑ ॥ ৭২ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সোমো রাজেত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । সোমো দেবতা । ভুরিক্ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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