यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 26
ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः
देवता - यज्ञो देवता
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
2
अ॒श्विभ्यां॑ प्रातः सव॒नमिन्द्रे॑णै॒न्द्रं माध्य॑न्दिनम्। वै॒श्व॒दे॒वꣳ सर॑स्वत्या तृ॒तीय॑मा॒प्तꣳ सव॑नम्॥२६॥
स्वर सहित पद पाठअ॒श्विभ्या॒मित्य॒श्विऽभ्या॑म्। प्रा॒तः॒स॒व॒नमिति॑ प्रातःऽसव॒नम्। इन्द्रे॑ण। ऐ॒न्द्रम्। माध्य॑न्दिनम्। वै॒श्व॒दे॒वमिति॑ वैश्वऽदे॒वम्। सर॑स्वत्या। तृ॒तीय॑म्। आ॒प्तम्। सव॑नम् ॥२६ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्विभ्याम्प्रातःसवनमिन्द्रेणैन्द्रम्माध्यन्दिनम् । वैश्वदेवँ सरस्वत्या तृतीयमाप्तँ सवनम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अश्विभ्यामित्यश्विऽभ्याम्। प्रातःसवनमिति प्रातःऽसवनम्। इन्द्रेण। ऐन्द्रम्। माध्यन्दिनम्। वैश्वदेवमिति वैश्वऽदेवम्। सरस्वत्या। तृतीयम्। आप्तम्। सवनम्॥२६॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
सत्पुरुषैः कथं भवितव्यमित्याह॥
अन्वयः
यैरश्विभ्यां प्रथमं सवनमिन्द्रेणैन्द्रं द्वितीयं माध्यन्दिनं सवनं सरस्वत्या वैश्वदेवं तृतीयं सवनमाप्तन्ते जगदुपकारकाः सन्ति॥२६॥
पदार्थः
(अश्विभ्याम्) सूर्य्याचन्द्रमोभ्याम् (प्रातस्सवनम्) प्रातःकाले सवनं यज्ञक्रियाप्रेरणम् (इन्द्रेण) विद्युता (ऐन्द्रम्) ऐश्वर्यकारकम् (माध्यन्दिनम्) मध्याह्ने भवम् (वैश्वदेवम्) विश्वेषां देवानामिदम् (सरस्वत्या) सत्यया वाचा (तृतीयम्) त्रयाणां पूरकम् (आप्तम्) व्याप्तं प्राप्तम् (सवनम्) आरोग्यकरं होमादिकम्॥२६॥
भावार्थः
ये त्रिषु कालेषु सार्वजनिकहितमाचरन्ति, तेऽत्र सत्पुरुषास्सन्ति॥२६॥
हिन्दी (3)
विषय
सत्पुरुषों को कैसा होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
जिन मनुष्यों ने (अश्विभ्याम्) सूर्य्य-चन्द्रमा से प्रथम (प्रातःसवनम्) प्रातःकाल यज्ञक्रिया की प्रेरणा (इन्द्रेण) बिजुली से (ऐन्द्रम्) ऐश्वर्यकारक दूसरा (माध्यन्दिनम्) मध्याह्न में होने और (सवनम्) आरोग्यता करने वाला होमादि कर्म और (सरस्वत्या) सत्यवाणी से (वैश्वदेवम्) सम्पूर्ण विद्वानों के सत्काररूप (तृतीयम्) तीसरा सवन अर्थात् सायङ्काल की क्रिया को यथावत् (आप्तम्) प्राप्त किया है, वे जगत् के उपकारक हैं॥२६॥
भावार्थ
जो भूत, भविष्यत्, वर्त्तमान इन तीनों कालों में सब मनुष्यादि प्राणियों का हित करते हैं, वे जगत् में सत्पुरुष होते हैं॥२६॥
विषय
राजा का बल-सम्पादन । राष्ट्रयज्ञ का विस्तार ।
भावार्थ
( अश्विभ्याम्) अश्वियों से ( प्रातः सवनम् आप्तम् ) प्राप्त सवन की तुलना है । (इन्द्रेण ) इन्द्र ग्रह से ( ऐन्द्रं माध्यंदिनम् ) इन्द्र- देवताक माध्यंदिन सवन की तुलना है । ( सरस्वत्या ) सरस्वती द्वारा ( तृतीयम् ) तीसरे ( वैश्वदेवं सवनम् आप्तम् ) विश्वेदेव सम्बन्धी सवन की तुलना है । राष्ट्र में - 'अश्वी' नामक पदाधिकारियों का स्थापन राष्ट्र के प्रातः सवन है । 'इन्द्र' पदाधिकारी का स्थापन माध्यंदिन सवन है। सरस्वती, वेदवाणी का प्रसार वैश्वदेव सायंसवन के समान है। सूर्य और चन्द्रवत् राष्ट्र के दो रक्षक 'अश्वी' राजा और अमात्य हैं । मध्याह्न में प्रखर सूर्यवत् राष्ट्र के बीच 'इन्द्र' प्रचण्ड सेनापति है । सायं रात्रि के समय नक्षत्रवत् उज्ज्वल विद्वान्गण हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यज्ञः । अनुष्टुप् । गांधारः ॥
विषय
सवन- त्रयी
पदार्थ
१. उपनिषदों में 'प्रातः सवन, माध्यन्दिनसवन व सायंसवन' का उल्लेख है। २४ वर्ष तक का ब्रह्मचर्य ही प्रातः सवन है, इसे करनेवाला 'वसु' कहलाता है। ४४ वर्ष तक का ब्रह्मचर्य माध्यन्दिनसवन है। इसे करनेवाला 'रुद्र' है तथा तृतीयसवन ४८ वर्ष तक का ब्रह्मचर्य है। इसे करनेवाला 'आदित्य' है। २. वसु ब्रह्मचारी वीर्यरक्षा द्वारा अपनी प्राणापान की शक्ति की वृद्धि करके उत्तम निवासवाला बनता है। मन्त्र में कहते हैं कि (अश्विभ्याम्) = प्राणापान के साधकों से यह प्रातः सवन किया जाता है। २४ वर्ष तक का ब्रह्मचर्य इसकी प्राणापान शक्ति को खूब आप्यायित कर देता है। इस प्रातः सवन को करनेवाला व्यक्ति भी 'अश्विनौ' शब्द से कहलाने लगता है। ३. (इन्द्रेण) = इन्द्रियों को वशीभूत करनेवाले से (माध्यन्दिनम्) = ४४ वर्ष का माध्यन्दिनसवन विस्तृत किया जाता है। यह (ऐन्द्रम्) = इन्द्रशक्ति का विकास करनेवाला होता है। इन्द्र ने असुरों का संहार किया, यह भी सब आसुरवृत्तियों का संहार करता है। असुरों के लिए यह 'रुद्र' भयंकर होता है। ४.( सरस्वत्या) = ज्ञान की अधिदेवता से (तृतीयं सवनम्) = यह ४८ वर्ष का तृतीयसवन (आप्तम्) = प्राप्त किया जाता है। यह तृतीयसवन (वैश्वदेवम्) = सब दिव्य गुणों की प्राप्ति के लिए हितकर होता है। दिव्य गुणों व ज्ञान का आदान करने के कारण ब्रह्म का ग्रहण करनेवाला 'आदित्य' कहलाता है। यह ज्ञान का अधिकाधिक संचय करता है। [सरस्वत्या] तथा दिव्य गुणों की अपने में वृद्धि करता है [वैश्वदेवम्] ।
भावार्थ
भावार्थ - १. आचार्य - चरणों में 'उपसद्' बनने का पहला लाभ यह है कि प्राणापान शक्ति देकर हमें स्वस्थ बनाते हैं [अश्विभ्यां वसु] २. दूसरा लाभ यह है कि हम आसुरवृत्तियों का संहार करनेवाले 'रुद्र' बनकर प्रभु बनते हैं [इन्द्रस्य इति ऐन्द्रम्] और अन्त में ३. सरस्वती की अराधना करते हुए ज्ञान व दिव्य गुणों को बढ़ाकर हम 'आदित्य' बनते हैं और सब दिव्य गुणों के स्वीकार से 'वैश्वदेवम्' होते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
भूत, भविष्य व वर्तमान या तीन कालात जे सर्व माणसांचे हित करतात ते या जगात सत्पुरुष म्हणून ओळखले जातात.
विषय
सत्पुरूषांनी कसे असावे, वा ते कसे असतात, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - जे लोक (अश्विभ्यां) सूर्य आणि चंद्र यांच्यापासून (प्रातःसवनम्) प्रातःकाळी यज्ञ करण्याची (प्रेरणा घेतात) (इन्द्रेण) विद्युतद्वारे (ऐन्द्रम्) ऐश्वर्य देण्याची वा प्राप्त करण्याची (प्रेरणा घेतात) त्यानंतर दुसरी वेळ म्हणजे (माध्यन्दिनम्) मध्याह्नीं केले जाणार (सवनम्) आरोग्यादायी होम आदी कर्म करतात आणि (सत्काररूप (तृतीयम्) तृतीय सवन म्हणजे सायंकाळीं केल्या जाणाऱ्या यज्ञकर्मांची प्रेरणा (आप्तम्) घेतात (आणि त्याप्रमाणे त्रिकाल होम करतात) ते जगाचे उपकारक असतात ॥26॥
भावार्थ
missing
इंग्लिश (3)
Meaning
They are the benefactors of humanity who perform the morning yajna with the sun and moon, the glorious mid-day prosperity bringer yajna through lightning, the evening yajna, the giver of health, through true vedic speech, for reverence of the learned.
Meaning
The morning Soma-yajna is performed with hymns to the Ashvinis, the dawn, the sun and the moon. The mid-day Soma-yajna is performed with hymns to Indra for energy, power and honour. And the third, evening Soma-yajna, is accomplished and completed with hymns to Sarasvati, spirit and word of universal knowledge and inspiration for the sake of universal peace and happiness.
Translation
The offerings of the morning sacrifice are obtained by the twin-healers. The offerings of the mid-day sacrifice, that is meant for the resplendent Lord, are obtained by the resplendent Lord. The offerings of the third (the evening) sacrifice, meant for all the bounties of Nature, are obtained by the learning divine. (1)
Notes
Aptam, प्राप्तं, is obtained.
बंगाली (1)
विषय
সৎপুরুষৈঃ কথং ভবিতব্যমিত্যাহ ॥
সৎ পুরুষের কেমন হওয়া উচিত এই বিষয়েপরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–যে মনুষ্যগণ (অশ্বিভ্যাম্) সূর্য্য, চন্দ্র হইতে প্রথম (প্রাতঃসবনম্) প্রাতঃকাল যজ্ঞক্রিয়ার প্রেরণা (ইন্দ্রেণ) বিদ্যুৎ দ্বারা (ঐন্দ্রম্) ঐশ্বর্য্যকারক দ্বিতীয় (মাধ্যন্দিনম্) মধ্যাহ্নে ঘটিত এবং (সবনম্) আরোগ্যকারী হোমাদি কর্ম এবং (সরস্বত্যা) সত্যবাণী দ্বারা (বৈশ্বদেবম্) সম্পূর্ণ বিদ্বান্দের সৎকার রূপ (তৃতীয়ম্) তৃতীয় সেবন অর্থাৎ সায়ংকালের ক্রিয়াকে যথাবৎ (আপ্তম্) প্রাপ্ত করিয়াছে তাহারা জগতের উপকারক ॥ ২৬ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যাহারা ভূত, ভবিষ্যৎ, বর্ত্তমান এই তিন কালে সকল মনুষ্যাদি প্রাণিসকলের হিত করে তাহারা জগতে সৎপুরুষ হয় ॥ ২৬ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অ॒শ্বিভ্যাং॑ প্রাতঃসব॒নমিন্দ্রে॑ণৈ॒ন্দ্রং মাধ্য॑ন্দিনম্ ।
বৈ॒শ্ব॒দে॒বꣳ সর॑স্বত্যা তৃ॒তীয়॑মা॒প্তꣳ সব॑নম্ ॥ ২৬ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অশ্বিভ্যামিত্যস্য হৈমবর্চির্ঋষিঃ । য়জ্ঞো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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