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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 74
    ऋषिः - शङ्ख ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    2

    सोम॑म॒द्भ्यो व्य॑पिब॒च्छन्द॑सा ह॒ꣳसः शु॑चि॒षत्। ऋ॒तेन॑ स॒त्यमि॑न्द्रि॒यं वि॒पान॑ꣳ शु॒क्रमन्ध॑स॒ऽइन्द्र॑स्येन्द्रि॒यमि॒दं पयो॒ऽमृतं॒ मधु॑॥७४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोम॑म्। अ॒द्भ्य इत्य॒त्ऽभ्यः। वि। अ॒पि॒ब॒त्। छन्द॑सा। ह॒ꣳसः। शु॒चि॒षत्। शु॒चि॒सदिति॑ शुचि॒ऽसत्। ऋ॒तेन॑। स॒त्यम्। इ॒न्द्रि॒यम्। वि॒पान॒मिति॑ वि॒ऽपान॑म्। शु॒क्रम्। अन्ध॑सः। इन्द्र॑स्य। इ॒न्द्रि॒यम्। इ॒दम्। पयः॑। अ॒मृत॑म्। मधु॑ ॥७४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोममद्भ्यो व्यपिबच्छन्दसा हँसः शुचिषत् । ऋतेन सत्यमिन्द्रियँविपानँ शुक्रमन्धसऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदम्पयो मृतम्मधु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सोमम्। अद्भ्य इत्यत्ऽभ्यः। वि। अपिबत्। छन्दसा। हꣳसः। शुचिषत्। शुचिसदिति शुचिऽसत्। ऋतेन। सत्यम्। इन्द्रियम्। विपानमिति विऽपानम्। शुक्रम्। अन्धसः। इन्द्रस्य। इन्द्रियम्। इदम्। पयः। अमृतम्। मधु॥७४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 74
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    यः शुचिषद्धंसो विवेकी जनश्छन्दसाऽद्भ्यः सोमं व्यपिबत्, स ऋतेनाऽन्धसो दोषनिवर्तकं शुक्रं विपानं सत्यमिन्द्रियमिन्द्रस्य प्रापकमिदं पयोऽमृतं मध्विन्द्रियं चाप्तुमर्हति, स एवाखिलानन्दं प्राप्नोति॥७४॥

    पदार्थः

    (सोमम्) सोमलतादिमहौषधिसारम् (अद्भ्यः) सुसंस्कृतेभ्यो जलेभ्यः (वि) (अपिबत्) (छन्दसा) स्वच्छन्दतया (हंसः) यो हन्ति दुःखानि सः (शुचिषत्) यः पवित्रेषु विद्वत्सु सीदति सः (ऋतेन) सत्येन वेदविज्ञानेन (सत्यम्) सत्सु परमेश्वरादिपदार्थेषु साधु (इन्द्रियम्) प्रज्ञानम् (विपानम्) विविधरक्षान्वितम् (शुक्रम्) शुद्धिकरम् (अन्धसः) सुसंस्कृतस्यान्नस्य (इन्द्रस्य) योगजन्यस्य परमैश्वर्यस्य (इन्द्रियम्) जीवेन जुष्टम् (इदम्) प्रत्यक्षप्रत्ययालम्बम् (पयः) उत्तमरसम् (अमृतम्) मोक्षम् (मधु) मधुविद्यासमन्वितम्॥७४॥

    भावार्थः

    ये युक्ताहारविहारा वेदानधीत्य योगमभ्यस्याऽविद्यादिक्लेशान्निवर्त्य योगसिद्धीः प्राप्य तदभिमानमपि विहाय कैवल्यमाप्नुवन्ति, ते ब्रह्मानन्दम्भुञ्जते॥७४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (शुचिषत्) पवित्र विद्वानों में बैठता है (हंसः) दुःख का नाशक विवेकी जन (छन्दसा) स्वच्छन्दता क साथ (अद्भ्यः) उत्तम संस्कारयुक्त जलों से (सोमम्) सोमलतादि महौषधियों के सार रस को (व्यपिबत्) अच्छे प्रकार पीता है, सो (ऋतेन) सत्य वेदविज्ञान से (अन्धसः) उत्तम संस्कार किये हुए अन्न के दोषनिवर्तक (शुक्रम्) शुद्धि करनेहारे (विपानम्) विविध रक्षा से युक्त (सत्यम्) परमेश्वरादि सत्य पदार्थों में उत्तम (इन्द्रियम्) विज्ञान रूप (इन्द्रस्य) योगविद्या से उत्पन्न हुए परम ऐश्वर्य की प्राप्ति करानेहारे (इदम्) इस प्रत्यक्ष प्रतीति के आश्रय (पयः) उत्तम ज्ञान रस वाले (अमृतम्) मोक्ष (मधु) विद्यायुक्त (इन्द्रियम्) जीव ने सेवन किये हुए सुख को प्राप्त होने को योग्य होता है, वही अखिल आनन्द को पाता है॥७४॥

    भावार्थ

    जो युक्ताहार-विहार करनेहारे वेदों को पढ़, योगाभ्यास कर, अविद्यादि क्लेशों को छुड़ा, योग की सिद्धियों को प्राप्त हो और उनके अभिमान को भी छोड़ के कैवल्य को प्राप्त होते हैं, वे ब्रह्मानन्द का भोग करते हैं॥७४॥

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    विषय

    हंस के दृष्टान्त से शुचिषत् आत्मा और धर्मात्मा राजा का प्राणों और प्रजाओं से रस और ऐश्वर्य प्राप्ति का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( हंसः ) हंस जिस प्रकार ( अद्द्भ्यः ) जलों के बीच में (सोमम् ) परम साररूप अंश को (वि अपिबत् ) विशेष रूप से पान कर लेता है उसी प्रकार (शुचिषत् ) शुद्ध ब्रह्म में विद्यमान योगी (हंसः) अपने समस्त सांसारिक दुःखों का नाश करने में समर्थ, परमहंस (छन्दसा ) आत्मसामर्थ्य या प्राण के बल से ( अद्भ्यः ) प्राणों या प्राप्त ज्ञानों और कर्मों में से ही ( सोमम् ) परम ब्रह्मानन्द रसों का ( वि अपिबत् ) पान करता है और उसी प्रकार राष्ट्र में राजा शुचि, निष्पाप, निच्छल, धर्माध्यक्ष के आसन पर विराज कर 'हंस' शत्रुओं और दुष्ट पुरुषों के हनन कर के निष्पक्षपात हो (छन्दसा ) प्रजा के आच्छादन या रक्षा बल से आप्त प्रजाओं के बीच में से राष्ट्र के ऐश्वर्य को विविध उपायों से प्राप्त करता है । (ऋतेन सत्यम् ० इत्यादि ) पूर्ववत् ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अश्व्यादयः । सोमः । त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    विषय

    शुचिषत् हंस

    पदार्थ

    १. (शुचिषत्) = [ पवित्रेषु विद्वत्सु सीदति - द०] पवित्र जीवनवाले विद्वानों के सम्पर्क में रहनेवाला, उन्हीं के सङ्ग में बैठने उठनेवाला (हंसः) = [ हन्ति पाप्मानम् ] सत्सङ्ग द्वारा पापों को नष्ट करनेवाला यह 'शंख' [ऋषि] (अद्भ्यः) = [आप: प्राणा:] प्राणसाधना के द्वारा तथा (छन्दसा) = वेदज्ञान द्वारा, सतत अध्ययन की वृत्ति के द्वारा, जो वृत्ति उसे पापों से बचाती है [छादयति] उस स्वाध्याय की वृत्ति के द्वारा (सोमम्) = सोम को (व्यपिबत्) = विशेषरूप से शरीर में ही पीने का प्रयत्न करता है। २. यह सोम (ऋतेन) = यज्ञ व नियमितता से (सत्यं इन्द्रियं विपानम्) = सत्य का वर्धन करता है, अङ्गों की शक्ति को बढ़ाता है, शरीर को विशेषरूप से रोगों से बचाता है। ३. (शुक्रम्) = यह जीवन को उज्ज्वल व क्रियाशील [शुच् दीप्तौ या शुक् गतौ] बनाता है। ४. (अन्धसः) = अन्न से उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (इन्द्रस्य) = जीवात्मा के (इन्द्रियम्) = सब अङ्गों की शक्ति को बढ़ानेवाला होता है । ५. (इदं पयः) = यह आप्यायन करनेवाला होता है, (अमृतम्) असमय में न मरने देनेवाला होता है तथा मधु उसके जीवन को मधुर बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- शरीर में सोम की रक्षा के लिए हम सत्सङ्ग के द्वारा आसुरवृत्ति को नष्ट करें। प्राणसाधना करें तथा ज्ञान की रुचिवाले हों।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे युक्त आहार-विहार करून वेदांचे अध्ययन करतात ते योगाभ्यास करून अविद्या इत्यादी क्लेशांना दूर करतात आणि योगसिद्धी प्राप्त करतात. अहंकाराला त्याग करून कैवल्य प्राप्त करून ब्रह्मानंद भोगतात.

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    विषय

    पुनश्च, तोच विषय -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जो मनुष्य (शुचिषत्‌) पवित्राचार असून विद्वानांच्या सभेत बसतो, असा (हंसः) दुःखनाशक विवेकी मनुष्य (छन्दसा) स्वच्छन्दपणे (वा मनसोक्तपणे) (अद्भ्यः) उत्तम शुद्ध पाण्यात (सोमम्‌) सोमलता आदी औषधींचे सार मिसळून रस (व्यपिबत्‌) पितो. (विद्वज्जन त्याला उत्तम औषधी व सोमरस देतात) तो विवेकी माणूस (ऋतेन) सत्य वेद विज्ञानाने (अन्धसः) तयार केलेले उत्तम संस्कारित (वेदात वर्णित रीतीने तयार केलेले अन्न) सेवन करतो. दोषनिवारक (शुक्रम) आणि शुद्धीकरणाऱ्या (विपानम्‌) विविध प्रकारे माणसाचे रक्षण करणाऱ्या पदार्थांद्वारे (सुख प्राप्त करतो) तसेच तो विवेकी मनुष्य (सत्यम्‌) परमेश्वर तथा वर्तमान पदार्थांमधे सर्वोत्तम असलेल्या (इन्द्रियम्‌) ज्ञान-विज्ञानाला (इन्द्रस्य) योगविद्येने उत्पन्न पामेश्वर्य देणारे (सुख अनुभवतो) तसेच तो (इदम्‌) या प्रत्यक्ष असलेल्या भौतिक पदार्थाव्यतिरिक्त (पयः) उत्तम (पार लौकिक ज्ञान) रूप रस आणि (अमृतम्‌) मोक्ष सुख प्राप्त करून (मधु) मधुरता देणारे (इन्द्रियम्‌) जीवात्म्याला होणारे सुख अनुभव करतो. तोच सर्वोच्च आनंदाचा अनुभव घेतो. ॥74॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे मनुष्य युक्त आहार-विहार करणारे असतात, वेदाध्ययन करीत योगाभ्यास करतात, अविद्या आदी क्लेशांपासून मुक्त होण्याचा यत्न करतात, तसेच योगाच्या अष्टसिद्धी प्राप्त करतात, पण सिद्धी प्राप्त केल्यामुळे अहंकारी होत नाहीत, तेच लोक कैवल्यावस्था प्राप्त करतात आणि ब्रह्मानंद उपभोगतात. ॥74॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    He who enjoys the company of pure learned persons, is a discriminator, willingly drinks Soma juice out of waters, purifies food with vedic knowledge, is a cleanser of soul, equipped with the power of protection, knows God, is procurer of supremacy through the knowledge of yoga, acquires happiness of soul sweet like honey, salvation, and the apparent essence of knowledge.

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    Meaning

    The man of discrimination, friend of pure visionaries, with the freedom of his vision, distils the essence, soma, from the waters as the swan separates the milk from water. He accepts the essence and rejects the scum. With his vision of the Vedas, he attains the truth of divinity, the purity and energy of food, direct experience of the divine presence, and the supreme taste of the sweetness and bliss of Immortality and Moksha.

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    Translation

    The swan, the sun, seated in the cloudless sky, drinks cure-juice from the waters to his pleasure. By sacrifice the truth gains strength and consumption of food becomes pure. May the nectar-like sweet milk be the strength of the self. (1)

    Notes

    Chandasā,स्वच्छंदतया, at its will; in its wisdom. Also, with hymns of the Veda composed in metres. Sucişat, निर्मले गगने स्थित:, seated in a cloudless sky. Hamsah, the sun that floats in the sky.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যে (শুচিষৎ) পবিত্র বিদ্বান্দিগের মধ্যে উপবেশন করে (হংসঃ) দুঃখের নাশক বিবেকী জন (ছন্দসা) স্বচ্ছন্দতা সহ (অদ্ভ্যঃ) উত্তম সংস্কারযুক্ত জল দ্বারা (সোমম্) সোমলতাদি মহৌষধিসকলের সার রসকে (ব্যপিবৎ) উত্তম প্রকারে পান করে, সে (ঋতেন) সত্য বেদবিজ্ঞান দ্বারা (অন্ধসঃ) উত্তম সংস্কার কৃত অন্নের দোষ নিবর্তক (শুক্রম্) শুদ্ধিকারক (বিপানম্) বিবিধ রক্ষা দ্বারা যুক্ত (সত্যম্) পরমেশ্বরাদি সত্য পদার্থে উত্তম (ইন্দ্রিয়ম্) বিজ্ঞানরূপ (ইন্দ্রস্য) যোগবিদ্যা হইতে উৎপন্ন পরম ঐশ্বর্য্যের প্রাপ্তিকারক (ইদম্) এই প্রত্যক্ষ প্রতীতির আশ্রয় (পয়ঃ) উত্তম জ্ঞান-রস যুক্ত (অমৃতম্) মোক্ষ (মধু) বিদ্যাযুক্ত (ইন্দ্রিয়ম্) জীব সেবনকৃত সুখ প্রাপ্ত হইবার যোগ্য হয়, সেই অখিল আনন্দ লাভ করে ॥ ৭৪ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যিনি যুক্তাহার বিহারকারী বেদ পাঠ করিয়া যোগাভ্যাস করিয়া অবিদ্যাদি ক্লেশ ত্যাগ করিয়া, যোগসিদ্ধি প্রাপ্ত হইয়া এবং তাহার অভিমানকেও ত্যাগ করিয়া কৈবল্য প্রাপ্ত হয়, তিনি ব্রহ্মানন্দের ভোগ করেন ॥ ৭৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    সোম॑ম॒দ্ভ্যো ব্য॑পিব॒চ্ছন্দ॑সা হ॒ꣳসঃ শু॑চি॒ষৎ । ঋ॒তেন॑ স॒ত্যমি॑ন্দ্রি॒য়ং বি॒পান॑ꣳ শু॒ক্রমন্ধ॑স॒ऽইন্দ্র॑স্যেন্দ্রি॒য়মি॒দং পয়ো॒ऽমৃতং॒ মধু॑ ॥ ৭৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    সোমমিত্যস্য শঙ্খ ঋষিঃ । সোমো দেবতা । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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