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यजुर्वेद अध्याय - 19

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  • यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 25
    ऋषिः - हैमवर्चिर्ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिगनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    2

    अ॒र्ध॒ऽऋ॒चैरु॒क्थाना॑ रू॒पं प॒दैरा॑प्नोति नि॒विदः॑। प्र॒ण॒वैः श॒स्त्राणा॑ रू॒पं पय॑सा॒ सोम॑ऽआप्यते॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒र्द्ध॒ऽऋ॒चैरित्य॑र्द्धऽऋ॒चैः। उ॒क्थाना॑म्। रू॒पम्। प॒दैः। आ॒प्नो॒ति॒। नि॒विद॒ इति॑ नि॒ऽविदः॑। प्र॒ण॒वैः। प्र॒न॒वैरिति॑ प्रऽन॒वैः। श॒स्त्राणा॑म्। रू॒पम्। पय॑सा। सोमः॑। आ॒प्य॒ते॒ ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्धऋचौरुक्थानाँ रूपम्पदैराप्नोति निविदः । प्रणवैः शस्त्राणाँरूपम्पयसा सोम आप्यते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अर्द्धऽऋचैरित्यर्द्धऽऋचैः। उक्थानाम्। रूपम्। पदैः। आप्नोति। निविद इति निऽविदः। प्रणवैः। प्रनवैरिति प्रऽनवैः। शस्त्राणाम्। रूपम्। पयसा। सोमः। आप्यते॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 19; मन्त्र » 25
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    कथमध्यापकैर्भवितव्यमित्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यो विद्वानर्द्धऽऋचैरुक्थानां रूपं पदैः प्रणवैः शस्त्राणां रूपं निविदश्चाप्नोति, येन विदुषा पयसा सोम आप्यते, स वेदवित् कथ्यते॥२५॥

    पदार्थः

    (अर्द्धऽऋचैः) ऋचामर्द्धान्यर्द्धर्चास्तैर्मन्त्रभागैः (उक्थानाम्) स्तोत्रविशेषाणाम् (रूपम्) (पदैः) विभक्त्यन्तैः (आप्नोति) (निविदः) ये निश्चयेन विन्दन्ति तान् (प्रणवैः) ओङ्कारैः (शस्त्राणाम्) शसन्ति यैस्तैषाम् (रूपम्) (पयसा) उदकेन (सोमः) रसविशेषः (आप्यते) प्राप्यते॥२५॥

    भावार्थः

    ये विदुषः सकाशादधीत्य वेदस्थानां पदवाक्यमन्त्रविभागशब्दार्थसम्बन्धानां यथार्थं विज्ञानं कुर्वन्ति, तेऽत्राऽध्यापका भवन्ति॥२५॥३

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अध्यापको को कैसा होना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    जो विद्वान् (अर्द्धऽऋचैः) ऋचाओं के अर्ध भागों से (उक्थानाम्) कथन करने योग्य वैदिक स्तोत्रों का (रूपम्) स्वरूप (पदैः) सुबन्त-तिडन्त पदों और (प्रणवैः) ओंकारों से (शस्त्राणाम्) शस्त्रों का (रूपम्) स्वरूप और (निविदः) जो निश्चय से प्राप्त होते हैं, उनको (आप्नोति) प्राप्त होता है वा जिस विद्वान् से (पयसा) जल के साथ (सोमः) सोम ओषधि का रस (आप्यते) प्राप्त होता है, सो वेद का जानने वाला कहाता है॥२५॥

    भावार्थ

    जो विद्वान् के समीप वस के, पढ़ के, वेदस्थ पद-वाक्य-मन्त्र-विभागों के शब्द-अर्थ और सम्बन्धों का यथावद्विज्ञान करते हैं, वे इस संसार में अध्यापक होते हैं॥२५॥

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    विषय

    राजा का बल-सम्पादन । राष्ट्रयज्ञ का विस्तार ।

    भावार्थ

    (अर्ध-ऋचैः उक्थानां रूपं आप्नोति) अर्ध ऋचाओं द्वारा उक्थ नाम स्तोत्रों का रूप प्राप्त करता है । राष्ट्र में - समृद्ध स्तुतिवचनों से ( उक्थानाम् ) विशेष स्तुति योग्यों का स्वरूप प्राप्त होता है । (पदैः निविदः आप्नोति) पदों द्वारा 'निविद्' ऋचाओं का ग्रहण करता है । राष्ट्र में - (पदैः)अधिकारसूचक पदों के द्वारा ( निविदः ) निखिल पदार्थों को प्राप्त करनेवाले ज्ञानी पुरुषों को प्राप्त करता है । (प्रणवैः शस्त्राणां रूपम् आप्नोति) यज्ञ में प्रणव अर्थात् ओंकारों द्वारा शस्त्रों अर्थात् स्तुतियुक्त मन्त्रों का स्वरूप प्राप्त करता है। राष्ट्र में - (प्रणवैः) प्रशंसनीय नवयुवकों द्वारा ( शस्त्राणाम् ) शस्त्रधारी पुरुषों का उत्तम स्वरूप प्राप्त करता है । ( पयसा सोमः आप्यते ) ' पयस्' अर्थात् दुग्ध से यज्ञ में सोमलता के रस का रूप प्राप्त किया जाता है । राष्ट्र में - पुष्टिकारक अन्न आदि पदार्थ से ही (सोमः) समस्त राज्य पद, ऐश्वर्य, प्राप्त किया जाता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    सोमः । भुरिगनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    सोम की प्राप्ति

    पदार्थ

    १. (अर्धऋचैः) = मन्त्रभाग से (उक्थानाम्) = प्रवचनों का (रूपम्) = सौन्दर्य (आप्नोति) = प्राप्त किया जाता है। आचार्य विद्यार्थियों को 'श्रद्धा' के विषय में समझाते हुए ('श्रद्धया सत्यमाप्यते’, ‘श्रद्धां भगस्य मूर्धनि वचसा वेदयामसि', 'श्रद्धया विन्दते वसु') = आदि मन्त्रभागों से विषय को बड़ा सौन्दर्य प्राप्त करा देते हैं। २. इसी प्रकार, (पदैः) = शब्दों से (निविद:) = निश्चयात्मक बातों को आप्नोति प्राप्त करता है। 'भोजन' इसलिए भोजन है कि [भुज् पालनाभ्यवहारयोः] यह पालन के लिए खाया जाता है, अर्थात् यह स्पष्ट है कि हमने शरीर-रक्षा के लिए खाना है, स्वाद के लिए नहीं । 'बाहु' इसीलिए 'बाहु' हैं कि [बाह्र प्रयत्ने] इनसे मनुष्य कार्यसिद्धि के लिए प्रयत्न करता है, इन्हें सदा कर्मों में लगाये रखता है। 'दीधिति' अंगुलियों का नाम है, चूंकि 'धीयन्ते कर्मसु' इन्हें कर्मों में आहित करना है । एवं, 'वैदिक पद' हमें निश्चयात्मक ज्ञान देनेवाले हैं। ३. (प्रणवैः) = [ओंकारै: द०] निरन्तर किये जानेवाले 'ओम्' के जप से (शस्त्राणांरूपम् आप्यते) = शस्त्र का रूप प्राप्त किया जाता है, अर्थात् यह (प्रणवः) = ओंकार जप करनेवाले का शस्त्र बन जाता है। उपनिषद् में तो 'प्रणवो धनुः' कहकर प्रणव को धनुष बना ही दिया है। इस प्रणवरूप धनुष से हम काम आदि शत्रुओं का [शंसन्ति - हिंसन्ति यैः] हिंसन करनेवाले होते हैं। ४. इस प्रकार (पयसा) = शक्तियों के आप्यायन के द्वारा (सोमः) = वह उमा के साथ रहनेवाले महादेव, अर्थात् सम्पूर्ण ज्ञानवाले प्रभु (आप्यते) = पाये जाते हैं। उसी प्रकार जैसे (पयसा) = दूध से (सोमः) = वीर्य (आप्यते) = प्राप्त होता है। दुग्धादि के प्रयोग से सोम की प्राप्ति होती है। इस सोम से सब शक्तियों का आप्यायन करते हुए हम प्रभु को पानेवाले बनते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु-प्राप्ति के लिए ज्ञानवृद्धि तो आवश्यक है ही । जप से वासना को दूर करना भी आवश्यक है और सात्त्विक भोजनों से सोम का वर्धन करते हुए अङ्ग-प्रत्यङ्ग की शक्ति को बढ़ाना भी आवश्यक है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे विद्वानांजवळ राहून अध्ययन करतात व वेदातील पद, वाक्य, मंत्र विभागाचे शब्द अर्थ व संबंधाचे स्वरूप विशेष ज्ञानाने यथायोग्यरीत्या जाणतात ते अध्यापक म्हणून ओळखले जातात.

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    विषय

    अध्यापक कसे असावेत, यावषियी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - जे विद्वान (अर्द्धऋचै) यांच्या अर्धभागाने (उक्थानाम्‌) कथनीय अथवा व्यक्तव्य (रूपम्‌) संपूर्ण आशय (जाणून घेतात) तसेच (पदैः) सुबन्त, तिङ्न्त पदांद्वारा (प्रथमा ते सप्तमी विभक्तीपर्यंतचे शब्दरूप, धातुरूप) आणि (प्रणवैः) ओंकाराद्वारा (शास्त्राणाम्‌) शस्त्रांचे (रूपम्‌) स्वरूप (जाणून घेतात) तसेच जो विद्वान (निविदः) जे जे पदार्थ निश्चयाने अवश्यमेव प्राप्त होणारे आहेत, त्यांना (आप्नोति) प्राप्त करतो अथवा जो विद्वान (पयसा) जलाबरोबर (सोमः) सोम औषधी चारस (आप्यते) प्राप्त करतो (पाण्यात सोम आदी औषधी कुटून त्यातील रस काढण्याचा विधी जाणतो) तोच विद्वान वेदज्ञ म्हणविला जातो. (वेदांचे अध्ययन करणाऱ्याने अर्ध्या मंत्राने पूर्ण आशय जाणून घेण्याची कला अवगत करावी. शब्दाने शस्त्रांचे प्रभावी रूप ओळखले पाहिजे आणि सोमरस तयार करण्याची रीत जाणली पाहिजे) ॥25॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक वेदज्ञ विद्वानाजवळ बसून, त्यापासून वेद शिकून शब्द, वाक्य, मंत्र, विभाग आदीचे ज्ञान प्राप्त करतात आणि विद्वाज्जन शब्द आणि अर्थाचा संबंध ज्याप्रकारे करतात, त्याप्रकारे शब्दार्थ विद्या शिकलेले असतात, तेच लोक अध्यापक होण्यास पात्र आहेत, असे जाणावे. ॥25॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    A learned person gets songs of praise by verse-halves, short detached formulae by case-terminations. By Om exclamations he gets the mode of praise, prayer and contemplation. By water is got the soma juice.

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    Meaning

    By half-Riks you get to the form and meaning of Uktha verses. By phrases you get to the Nivids, invocatory verses and formulae. By the chant and worship of Om you get to the form and meaning of mystic powers. By water and milk rejuvenation is achieved as by soma.

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    Translation

    By half Rk verses one gets the form of ukthas (recitations of praise songs); by padas (one quarter of a verse) one gets nivids (small invocations); by pranavas i. e. the word om one gets the form of sastras (a type of praise song); and by milk one gets curative extract. (1)

    Notes

    Uktha, recitation of praise-songs. Nivid, small invocations. Pranavaḥ, ओंकार:, the sound 'Om'. Sastra, a type of praise-song.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কথমধ্যাপকৈর্ভবিতব্যমিত্যুপদিশ্যতে ॥
    অধ্যাপকদিগের কেমন হইতে হইবে এই বিষয়ের উপদেশপরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–যে বিদ্বান্ (অর্দ্ধঋচৈঃ) ঋচাগুলির অর্দ্ধ ভাগসহিত (উক্থানাম্) কথন করিবার যোগ্য বৈদিক স্তোত্র সমূহের (রূপম্) স্বরূপ (পদৈঃ) সুবন্ত তিঙ্ ন্ত পদসকল এবং (প্রণবৈঃ) ওঁকার দ্বারা (শস্ত্রানাম্) শস্ত্রসকলের (রূপম্) স্বরূপ এবং (নিবিদঃ) যাহা নিশ্চয়পূর্বক প্রাপ্ত হয় তাহাকে (আপ্নোতি) প্রাপ্ত হয় বা যে বিদ্বান্ হইতে (পয়সা) জল সহ (সোমঃ) সোম ওষধির রস (আপ্যতে) প্রাপ্ত হয় তিনিই বেদজ্ঞাতা নামে অভিহিত হন্ ॥ ২৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যাহারা বিদ্বানের সমীপ বসিয়া পড়িয়া বেদস্থ পদ বাক্য মন্ত্র বিভাগের শব্দ অর্থ ও সম্বন্ধের যথাবৎ জ্ঞান করে তাহারা এই সংসারে অধ্যাপক হয় ॥ ২৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒র্ধ॒ऽঋ॒চৈরু॒ক্থানা॑ᳬं রূ॒পং প॒দৈরা॑প্নোতি নি॒বিদঃ॑ ।
    প্র॒ণ॒বৈঃ শ॒স্ত্রাণা॑ᳬं রূ॒পং পয়॑সা॒ সোম॑ऽআপ্যতে ॥ ২৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অর্দ্ধऽঋচৈরিত্যস্য হৈমবর্চির্ঋষিঃ । সোমো দেবতা । ভুরিগনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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