यजुर्वेद - अध्याय 19/ मन्त्र 37
ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः
देवता - सरस्वती देवता
छन्दः - भुरिगष्टिः
स्वरः - मध्यमः
4
पु॒नन्तु॑ मा पि॒तरः॑ सो॒म्यासः॑ पु॒नन्तु॑ मा पिताम॒हाः पु॒नन्तु॒ प्रपि॑तामहाः। प॒वित्रे॑ण श॒तायु॑षा। पु॒नन्तु॑ मा पिताम॒हाः पु॒नन्तु॒ प्रपि॑तामहाः। प॒वित्रे॑ण श॒तायु॑षा विश्व॒मायु॒र्व्यश्नवै॥३७॥
स्वर सहित पद पाठपु॒नन्तु॑। मा॒। पि॒तरः॑। सो॒म्यासः॑। पु॒नन्तु॑। मा॒। पि॒ता॒म॒हाः। पु॒नन्तु॑। प्रपि॑तामहा॒ इति॒ प्रऽपि॑तामहाः। प॒वित्रे॑ण। श॒तायु॒षेति॑ श॒तऽआ॑युषा। पु॒नन्तु॑। मा॒। पि॒ता॒म॒हाः। पु॒नन्तु॑। प्रपि॑तामहा॒ इति॒ प्रऽपि॑तामहाः। प॒वित्रे॑ण। श॒तायु॒षेति॑ श॒तऽआ॑युषा। विश्व॑म्। आयुः॑। वि। अ॒श्न॒वै॒ ॥३७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनन्तु मा पितरः सोम्यासः पुनन्तु मा पितामहाः । पुनन्तु प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा । पुनन्तु मा पितामहाः सोम्यासः पुनन्तु प्रपितामहाः । पवित्रेण शतायुषा विश्वमायुर्व्यश्नवै ॥
स्वर रहित पद पाठ
पुनन्तु। मा। पितरः। सोम्यासः। पुनन्तु। मा। पितामहाः। पुनन्तु। प्रपितामहा इति प्रऽपितामहाः। पवित्रेण। शतायुषेति शतऽआयुषा। पुनन्तु। मा। पितामहाः। पुनन्तु। प्रपितामहा इति प्रऽपितामहाः। पवित्रेण। शतायुषेति शतऽआयुषा। विश्वम्। आयुः। वि। अश्नवै॥३७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तदेवाह॥
अन्वयः
सोम्यासः पितरः पवित्रेण शतायुषा मा पुनन्तु, सोम्यासः पितामहाः पवित्रेण शतायुषा मा पुनन्तु, सोम्यासः प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा मा पुनन्तु, सोम्यासः पितामहाः पवित्रेण शतायुषा मा पुनन्तु, सोम्यासः प्रपितामहाः पवित्रेण शतायुषा मा पुनन्तु, यतोऽहं विश्वमायुर्व्यश्नवै प्राप्नुयाम्॥३७॥
पदार्थः
(पुनन्तु) अशुद्धाद् व्यवहारान्निवर्त्य शुद्धे प्रवर्त्य पवित्रीकुर्वन्तु (मा) माम् (पितरः) ज्ञानप्रदानेन पालकाः (सोम्यासः) सोमे ऐश्वर्ये भवाः सोमवच्छान्ता वा (पुनन्तु) (मा) (पितामहाः) (पुनन्तु) (प्रपितामहाः) (पवित्रेण) शुद्धाचरणयुक्तेन (शतायुषा) शतं वर्षाणि यस्मिन्नायुषि तेन (पुनन्तु) (मा) (पितामहाः) (पुनन्तु) (प्रपितामहाः) (पवित्रेण) ब्रह्मचर्य्यादिधर्माचरणयुक्तेन (शतायुषा) (विश्वम्) पूर्णम् (आयुः) जीवनम् (वि) विविधार्थे (अश्नवै) प्राप्नुयाम्। लोट्प्रयोगोऽयम्॥३७॥
भावार्थः
पितृपितामहप्रपितामहैः स्वकन्याः पुत्रांश्च ब्रह्मचर्यसुशिक्षाधर्मोपदेशेन संयोज्य विद्यासुशीलयुक्ताः कार्याः सन्तानैः सेवानुकूलाचरणाभ्यां सर्वे नित्यं सेवनीयाः। एवं परस्परोपकारेण गृहाश्रमे आनन्देन वर्त्तितव्यम्॥३७॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
(सोम्यासः) ऐश्वर्य से युक्त वा चन्द्रमा के तुल्य शान्त (पितरः) ज्ञान देने से पालक पितर लोग (पवित्रेण) शुद्ध (शतायुषा) सौ वर्ष की आयु से (मा) मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें, अति बुद्धिमान् चन्द्रमा के तुल्य आनन्दकर्त्ता (पितामहाः) पिताओं के पिता उस अतिशुद्ध सौ वर्षयुक्त आयु से (मा) मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें। ऐश्वर्यदाता चन्द्रमा के तुल्य शीतल स्वभाव वाले (प्रपितामहाः) पितामहों के पिता लोग शुद्ध सौ वर्ष पर्य्यन्त जीवन से (मा) मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें। विद्यादि ऐश्वर्ययुक्त वा शान्तस्वभाव (पितामहाः) पिताओं के पिता (पवित्रेण) अतीव शुद्धानन्दयुक्त (शतायुषा) शत वर्ष पर्य्यन्त आयु से मुझ को (पुनन्तु) पवित्राचरणयुक्त करें। सुन्दर ऐश्वर्य के दाता वा शन्तियुक्त (प्रपितामहाः) पितामहों के पिता पवित्र धर्माचरणयुक्त सौ वर्ष पर्यन्त आयु से मुझ को (पुनन्तु) पवित्र करें, जिससे मैं (विश्वम्) सम्पूर्ण (आयुः) जीवन को (व्यश्नवै) प्राप्त होऊं॥३७॥
भावार्थ
पिता, पितामह और प्रपितामहों को योग्य है कि अपने कन्या और पुत्रों को ब्रह्मचर्य, अच्छी शिक्षा और धर्मोपदेश से संयुक्त करके विद्या और उत्तम शील से युक्त करें। सन्तानों को योग्य है कि पितादि की सेवा और अनुकूल आचरण से पिता आदि सभों की नित्य सेवा करें, ऐसे परस्पर उपकार से गृहाश्रम में आनन्द के साथ वर्त्तना चाहिये॥३७॥
विषय
पितरों का शुद्धि करने का कर्त्तव्य ।
भावार्थ
( सोम्यासः ) ऐश्वर्य, राज्य कार्य में स्थित सोम राजा के समान शान्त, तेजस्वी ( पितरः ) पालक गुरु, आचार्य, विद्वान् ऋत्विग आदि (मा पुनन्तु) मुझे पवित्र करें। निन्दा योग्य असत् आचार से छुड़ा- कर, शुद्ध व्यवहार में प्रवृत्त करें । ( पितामहाः मा पुनन्तु ) पिता के समान पालकों के भी पालक, गुरुओं के गुरु, शासकों के शासक पुरुष मुझे पवित्र आचार वाला करें। (प्रपितामहाः पुनन्तु) उनके पूज्य लोग भी मुझे पवित्र बनावें । वे (पवित्रेण) पवित्र (शतायुषा) सौ वर्ष के पूर्ण दीर्घ जीवन से मुझे पवित्र करें। (पुनन्तु पिता०, पुनन्तु प्रपिता० पवित्रेण शतायुषा ० ) पूर्ववत् । जिसमें मैं ( विश्वम् ) समस्त, सम्पूर्ण (आयुः) जीवन का (व्यश्नवैः) भोग करूं । ( ३७-४५ ) शत० १२ । ८ । ९ । १८ ॥ दिलीप वसिष्ठ से कहते हैं. कि- पुरुषायुषजीविन्यो निरातङ्का निरीतयः । यन्मदीयाः प्रजास्तस्य हेतुस्त्वद्द्ब्रह्मवर्चसम् ॥ रघुवंश १ । ६३ ॥ जो मेरी प्रजाएं निर्भय, निरापद होकर पूर्ण आयु भोगती हैं उसमें आपका ब्रह्मतेज, सत् शिक्षा ही कारण है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
३७–५४ नवर्चे पावमानं सूक्तम् । सरस्वती । भुरिगष्टिः । मध्यमः ॥
विषय
पवित्र शतायुष्य
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार पितृश्राद्ध करनेवाला प्रार्थना करता है कि (मा) = मुझे (सोम्यासः) = अत्यन्त सौम्य - शान्त स्वभाववाले (पितर:) = ये पिता (पुनन्तु) = पवित्र करें। उनके जीवन की सौम्यता मेरे जीवन को भी सौम्य बनाए । (मा) = मुझे (पितामहाः) = पितामह (पुनन्तु) = पवित्र करें और (प्रपितामहाः) = प्रपितामह भी (पुनन्तु) = मेरे जीवन को पापशून्य बनाएँ। मुझे ये सब (शतायुषा) = सौ वर्ष के जीवन को देनेवाले (पवित्रेण) = जीवन को पवित्र करने के साधनभूत ज्ञान से पवित्र कर दें । २. (शतायुषा पवित्रेण) = सौ वर्ष का आयुष्य देनेवाले पवित्रीकरण के साधनभूत ज्ञान से (मा) = मुझे (पितामहाः) = पितामह (पुनन्तु) = पवित्र करें और (प्रपितामहाः पुनन्तु) = प्रपितामह पवित्र करें, जिससे विश्वम् पूर्ण आयु-जीवन को व्यश्नवै मैं विशेषरूप से प्राप्त करनेवाला बनूँ। मेरा शरीर, मन व मस्तिष्क सभी स्वस्थ हों। यह होगा तभी जब मैं पवित्र बनूँगा, अतः ये पितर मुझे अपने उपदेशों व सौम्य जीवनों की क्रियात्मक प्रेरणाओं से पवित्र कर दें। मेरा जीवन शुद्ध हो और मैं शतायु बनूँ ।
भावार्थ
भावार्थ- मैं पितरों की प्रेरणाओं से व उनके आचरण से अपने जीवन को शुद्ध बनाऊँ तथा शुद्ध जीवनवाला बनकर पूरे सौ वर्ष तक चलनेवाला बनूँ। 'पवित्रशतायुष्य' ही मेरा ध्येय हो ।
मराठी (2)
भावार्थ
वडील, आजोबा, पणजोबा यांनी आपल्या मुला-मुलींना ब्रह्मचर्य, चांगले शिक्षण व धर्माचा उपदेश करून विद्या व शील यांनी युक्त करावे. संतानांनी पित्याच्या अनुकुल वागावे व त्यांची सेवा करावी. याप्रमाणे परस्पर उपकार करून गृहस्थाश्रमात आनंदाने राहावे.
विषय
पुन्हा पुढील मंत्रात विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (एक उपासक वा दीर्घायुरारोग्याची कामना करणारा साधक प्रार्थना करीत आहे. उत्तम, सदाचारयुक्त जीवन जगण्यासाठी) (सोम्यासः) ऐश्वर्यवान अथवा चंद्राप्रमाणे शांत स्वभाव असलेल्या (पितरः) ज्ञान देणाऱ्या माझे पालक पिता आदी वृद्धजन यांनी (पवित्रेण) शुद्ध, पवित्र (शतायुषा) शंभरवर्षाचे आयुष्य देऊन (मा) मला (पुनन्तु) पवित्र करावे (ही नम्र प्रार्थना) अतिबुद्धिमान तसेच चन्द्राप्रमाणे आनंददायक असलेले (पितामहाः) वडिलांचे वडील (आजोबा) यांनीही तेच अतिपवित्र असे शंभरवर्षाचे आयुष्य देऊन (मा) मला (पुनन्तु) पवित्र करावे. तसेच ऐश्वर्यवान व चंद्राप्रमाणे शीतल स्वभाव असणाऱ्या माझ्या (प्रपितामहाः) पणजोबा (आणि तत्सम वृद्धजन) यांनी (मा) मला शुद्ध शंभरवर्षाचे आयुष्य देऊन (पुनन्तु) पवित्र करावे. विद्या आदी ऐश्वर्याने समृद्ध आणि शांत स्वभावाच्या (पितामहाः) पित्यांचे पिता (आजोबा व त्यासारखे वृद्धजन) यांनी (पवित्रेण) अतीव शुद्ध आणि आनंदमय (शतायुषा) शतवर्षआयु देऊन मला (पुनन्तु) पवित्र वा सदाचारयुक्त करावे. ऐश्वर्यदाता व शांत स्वभावाच्या (प्रपितामहाः) आजोबांचे वडील यांनीही मला शंभर वर्षांचे आयुष्य देऊन (पुनन्तु) पवित्र करावे की ज्यायोगे मी (विश्वम्) पूर्ण (आयुः) जीवन (व्यश्नवै) प्राप्त करीन (पिता, आजोबा, पणजोबा यांच्या शुभाशीर्वादाने मी सदाचारी, पवित्र राहून शतायूषी व्हावे, अशी मी इच्छा करीत आहे ॥37॥
भावार्थ
भावार्थ - सर्व पिता, पितामह आणि प्रपितामह (वडील, आजोबा, पणजोबा) यांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी आपल्या मुला-मुलींना (नातू, पणतू यांना) ब्रह्मचर्य-पालन करण्याचा, उत्तम विद्या ग्रहण करण्याचा धर्मोपदेश नेहमी द्यावा आणि त्यांना विद्यावान व शीलवान करावे. त्याच प्रकारे पुत्र-पुत्री आदी संततीसाठी हितकर आहे की त्यानी पिता आदींची सेवा करावी. अनुकूल आचरणाद्वारे पिता आदी वडील लोकांची नित्य सेवा करावी. अशाप्रकारे एकमेकावर उपकार करीत गृहाश्रमात सदैव आनंदात असावे. ॥37॥
इंग्लिश (3)
Meaning
May fathers, full of glory and mental peace, purify me with a pure life of a hundred years. May grandfathers, purify me with a pure life of a hundred years. May great grandfathers purify me with a pure life of a hundred years. May learned and calm grandfathers purify me with a happy, pure life of a hundred years. May sedate great-grandfathers purify me with a pure life of a hundred years. May I obtain full length of life.
Meaning
May my parents, grand parents, and great grand parents, kind, beneficent and honourable, purify me and sanctify me with the purity of discipline and education for a life of hundred years. May my grand parents and my great grand parents purify me and sanctify me with the purity of moral life and learning for a full life, so that with their blessings I may live for a full age of hundred years.
Translation
May the parents, drinkers of cure-juice cleanse me; may the grandparents cleanse me; may the great-grandparents cleanse me with a pure life of a hundred years. May the grandparents cleanse me; may the great-grandparents cleanse me with a pure life of a hundred years, so that I may live my full length of life. (1)
Notes
Somyāsaḥ, सोमसम्पादिन:, drinkers of Soma juice (cure-juice). Vyaśnavai, प्राप्नुयाम्, may obtain (full life span).
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তদেবাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কেপরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ–(সোম্যাসঃ) ঐশ্বর্য্য যুক্ত বা চন্দ্রমার তুল্য শান্ত (পিতরঃ) জ্ঞান দেওয়ায় পালক পিতরগণ (পবিত্রেণ) শুদ্ধ (শতায়ুষা) শত বর্ষের আয়ু দ্বারা (মা) আমাকে (পুনান্তু) পবিত্র করুন । অতিবুদ্ধিমান চন্দ্রমার তুল্য আনন্দকর্ত্তা (পিতামহাঃ) পিতাদেরও পিতা সেই অতিশুদ্ধ শতবর্ষযুক্ত আয়ু দ্বারা (মা) আমাকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন । ঐশ্বর্য্যদাতা চন্দ্রের তুল্য শীতল স্বভাব সম্পন্ন (প্রপিতামহাঃ) পিতামহদের পিতাগণ শুদ্ধ শত বর্ষ পর্য্যন্ত জীবন দ্বারা (মা) আমাকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন । বিদ্যাদি ঐশ্বর্য্যযুক্ত বা শান্তস্বভাব (পিতামহাঃ) পিতাদের পিতা (পবিত্রেণ) অতীব শুদ্ধানন্দযুক্ত (শতায়ুষা) শতবর্ষ পর্য্যন্ত আয়ু দ্বারা আমাকে (পুনন্তু) পবিত্রাচরণযুক্ত করুন । সুন্দর ঐশ্বর্য্য দাতা বা শান্তিযুক্ত (প্রপিতামহাঃ) পিতামহদের পিতা পবিত্র ধর্মাচরণযুক্ত শতবর্ষ পর্যন্ত আয়ু দ্বারা আমাকে (পুনন্তু) পবিত্র করুন যাহাতে আমি (বিশ্বম্) সম্পূর্ণ (আয়ুঃ) জীবনকে (ব্যশ্নবৈ) প্রাপ্ত হই ॥ ৩৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ–পিতা, পিতামহ ও প্রপিতামহের কর্ত্তব্য যে, নিজেদের কন্যা ও পুত্রদিগকে ব্রহ্মচর্য্য, সুশিক্ষা এবং ধর্মোপদেশ দ্বারা সংযুক্ত করিয়া বিদ্যা ও উত্তম শীল দ্বারা যুক্ত করিবে । সন্তানের কর্ত্তব্য যে, পিতাদির সেবা এবং অনুকূল আচরণ দ্বারা পিতা আদি সমস্তর নিত্য সেবা করিবে । এমন পরস্পর উপকার দ্বারা গৃহাশ্রমে আনন্দ সহ ব্যবহার করা উচিত ॥ ৩৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
পু॒নন্তু॑ মা পি॒তরঃ॑ সো॒ম্যাসঃ॑ পু॒নন্তু॑ মা পিতাম॒হাঃ । পু॒নন্তু॒ প্রপি॑তামহাঃ ।
প॒বিত্রে॑ণ শ॒তায়ু॑ষা । পু॒নন্তু॑ মা পিতাম॒হাঃ পু॒নন্তু॒ প্রপি॑তামহাঃ ।
প॒বিত্রে॑ণ শ॒তায়ু॑ষা বিশ্ব॒মায়ু॒র্ব্য᳖শ্নবৈ ॥ ৩৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
পুনন্তু মা পিতর ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । সরস্বতী দেবতা । ভুরিগষ্টিশ্ছন্দঃ ।
মধ্যমঃ স্বরঃ ॥
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