Loading...
अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 7 के मन्त्र
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - उपरिष्टाज्ज्योतिर्जगती सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
    0

    यत्र॒ तपः॑ परा॒क्रम्य॑ व्र॒तं धा॒रय॒त्युत्त॑रम्। ऋ॒तं च॒ यत्र॑ श्र॒द्धा चापो॒ ब्रह्म॑ स॒माहि॑ताः स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑ । तप॑: । प॒रा॒ऽक्रम्य॑ । व्र॒तम् । धा॒रय॑ति । उत्ऽत॑रम् । ऋ॒तम् । च॒ । यत्र॑ । श्र॒ध्दा । च॒ । आप॑: । ब्रह्म॑ । स॒म्ऽआहि॑ता: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्र तपः पराक्रम्य व्रतं धारयत्युत्तरम्। ऋतं च यत्र श्रद्धा चापो ब्रह्म समाहिताः स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र । तप: । पराऽक्रम्य । व्रतम् । धारयति । उत्ऽतरम् । ऋतम् । च । यत्र । श्रध्दा । च । आप: । ब्रह्म । सम्ऽआहिता: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्र) जिस [ब्रह्म] में (तपः) तप [ऐश्वर्य वा सामर्थ्य] (पराक्रम्य) पराक्रम करके (उत्तरम्) उत्तम (व्रतम्) व्रत [वरणीय कर्म] को (धारयति) धारण करता है। (यत्र ब्रह्म) जिस ब्रह्म में (ऋतम्) सत्य शास्त्र, (च) और (श्रद्धा) श्रद्धा [सत्यधारण विश्वास] (च) और (आपः) सब प्रजाएँ (समाहिताः) मिलकर स्थापित हैं, (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥११॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के सामर्थ्य से नियम धारण, वेद, शास्त्र आदि सब पदार्थ स्थित हैं ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(यत्र) यस्मिन् ब्रह्मणि (तपः) ऐश्वर्यं सामर्थ्यम् (पराक्रम्य) पराक्रमं कृत्वा (व्रतम्) व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सतः-निरु० २।१३। वरणीयं कर्म (धारयति) दधाति (उत्तरम्) उत्कृष्टम् (ऋतम्) सत्यशास्त्रम् (च) (यत्र) (श्रद्धा) सत्यधारणविश्वासः (च) (आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये यजु० ६।२७ (ब्रह्म) ब्रह्मणि (समाहिताः) सम्यक् स्थापिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सबका धारक'ब्रह्माश्रित तप'

    पदार्थ

    १. (यत्र) = जिसके आश्रय पर (पराक्रम्य) = पराक्रम करके (तपः) = तप (उत्तरं व्रतं धारयति) = उत्कृष्ट आचरण को धारण करता है, अर्थात् आचरण को उत्कृष्ट बनानेवाले तप का आधार वे प्रभु ही तो हैं (च) = और (यत्र) = जिसमें (ऋतं श्रद्धा च) = ऋत और श्रद्धा (आप: ब्रह्म) = सब जीवगण व ज्ञान (समाहिता:) = एक ही साथ [सम्] स्थापित हैं [आहिताः] (तम्) = उस देव को (स्कम्भं ब्रूहि) = सर्वाधार 'स्कम्भ' कहो। (सः एव) = वह ही (स्वित्) = निश्चय से (कतम:) = अतिशयेन आनन्दमय है|

    भावार्थ

    सब व्रतों के धारक तप, ऋत, श्रद्धा, सब जीवगण व ज्ञान का धारक वह आनन्दमय 'स्कम्भ' नामक प्रभु ही है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (यत्र) जिसमें (तपः) तप (पराक्रम्य) पराक्रम करके (उत्तरम्) उत्कृष्ट (व्रतम्) व्रत को (धारयति) धारण करता है, (यत्र) जिसमें (ऋतम् च) नियम और (श्रद्धा) सत्य धारण करने की प्रवृत्ति, (आापः) जल [आप्त जन (मन्त्र १०) या व्याप्त प्रकृति] तथा (ब्रह्म) अन्न (समाहिताः) इकट्ठे होकर स्थित हैं (तम्) उसे (स्कम्भम्) स्कम्भ (ब्रूहि) तू कह (कतमः, स्विद्, एव सः) अर्थ देखो मन्त्र (४)

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह है कि "तपोमय जीवन के बिना उत्कृष्ट व्रतों का पालन नहीं हो सकता"]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मन्त्रार्थ

    (यत्र तपः-उत्तरं व्रतं-पराक्रस्य धारयति) जिस सर्वा धार पर ब्रह्म में तप अर्थात् परिणाम कारक बल जगद्रचनबल "स तपस्तप्त्वा सर्वमसृजत्" उत्कृष्टनियम को प्राप्त होकर जगत् को धारण करता है (यत्र ऋतं च-श्रद्धा च आपः-ब्रह्म-समाद्दिता:) जिस आधार रूप ब्रह्म में वेदज्ञान श्रद्धा-स्वाभाविकी शक्ति और व्यापनशील तन्मात्राएं तथा ब्रह्माण्ड रखे हैं (स्कम्भं तं) उस सर्वाधार को बता विचार वह कौन सा या अत्यन्त सुखद है ॥११॥

    टिप्पणी

    इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥

    विशेष

    ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Skambha Sukta

    Meaning

    Wherein Tapa, discipline of enlightened living, rises higher to the superior discipline of Vrata, commitment, wherein are integrated Rtam, truth and law, Shraddha, faith, Apah, Karma, and Brahma, knowledge, of that Skambha, pray, speak to me. Which one is that? Say it is Skambha, only that of all, the ultimate centre and circumference of existence.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Where the austerity (tapah) becomiņg aggressive (parākramya) holds on to the higher vow (vrata) wherein the righteousness (rta) and faith (Sraddha), action (āpah) and knowledge (brahma) are set together; tell me of that Skambha, which of so many, indeed, is He ?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Pronounce Him to be the Supreme Being in whom the sacred austerity exerting in full maintains its loftiest vow or the subsequent result and where in are comprehended comic law, faith, atoms and matter. Who out of many powers, tell me O learned! is the Supporting Divine Power.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Declare that All-pervading God, Who is he of many, in Whom, exerting full power, Fervour maintains her loftiest vow? In Whom are comprehended Law, Faith, all souls and Vedic knowledge.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(यत्र) यस्मिन् ब्रह्मणि (तपः) ऐश्वर्यं सामर्थ्यम् (पराक्रम्य) पराक्रमं कृत्वा (व्रतम्) व्रतमिति कर्मनाम वृणोतीति सतः-निरु० २।१३। वरणीयं कर्म (धारयति) दधाति (उत्तरम्) उत्कृष्टम् (ऋतम्) सत्यशास्त्रम् (च) (यत्र) (श्रद्धा) सत्यधारणविश्वासः (च) (आपः) आप्ताः प्रजाः-दयानन्दभाष्ये यजु० ६।२७ (ब्रह्म) ब्रह्मणि (समाहिताः) सम्यक् स्थापिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top