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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 23
    ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
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    यस्य॒ त्रय॑स्त्रिंशद्दे॒वा नि॒धिं रक्ष॑न्ति सर्व॒दा। नि॒धिं तम॒द्य को वे॑द॒ यं दे॑वा अभि॒रक्ष॑थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । त्रय॑:ऽत्रिंशत् । दे॒वा: । नि॒ऽधिम् । रक्ष॑न्ति । स॒र्व॒दा । नि॒ऽधिम् । तम् । अ॒द्य । क: । वे॒द॒ । यम् । दे॒वा॒: । अ॒भि॒ऽरक्ष॑थ ॥७.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य त्रयस्त्रिंशद्देवा निधिं रक्षन्ति सर्वदा। निधिं तमद्य को वेद यं देवा अभिरक्षथ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । त्रय:ऽत्रिंशत् । देवा: । निऽधिम् । रक्षन्ति । सर्वदा । निऽधिम् । तम् । अद्य । क: । वेद । यम् । देवा: । अभिऽरक्षथ ॥७.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यस्य) जिस [परमेश्वर] के (निधिम्) कोष [संसार] को (त्रयस्त्रिंशत्) तेंतीस (देवाः) देव [दिव्य पदार्थ] (सर्वदा) सर्वदा (रक्षन्ति) रखाते हैं। (तम्) उस (निधिम्) कोष की (अद्य) आज (कः) कौन (वेद) जानता है, (यम्) जिस को, (देवाः) हे देवो ! [दिव्य पदार्थों] (अभिरक्षथ) तुम सर्वदा रखवाली करते हो ॥२३॥

    भावार्थ

    आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, एक इन्द्र और एक प्रजापति [मन्त्र १३ देखो] परमेश्वर के नियम से संसार के व्यवहार सदा सिद्ध करते हैं ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) म० १३ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (निधिम्) कोषम्। संसारम् (रक्षन्ति) पालयन्ति (सर्वदा) (वेद) जानाति। अन्यत् सुगमम् ॥

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    विषय

    'देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले' वे प्रभु

    पदार्थ

    १. (त्रयस्त्रिशद् देवा:) = तेतीस देव [बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र, आठ वसु, इन्द्र व प्रजापति] (यस्य निधिम्) = जिसके द्वारा दी गई निधि [कोश] को (सर्वदा रक्षन्ति) = सदा अपने में रखते हैं ('तेन देवा देवतामन आयन्') = उस प्रभु से ही तो ये सब देव देवत्व को प्राप्त करते हैं। ('तस्य भासा सर्वमिदं विभाति') = उसी की दीप्ति से तो ये सब दीप्त हो रहे हैं। २. हे (देवाः) = देवो! (यं निधिम्) = जिस निधि को तुम (अभिरक्षथ) = अपने अन्दर रक्षित करते हो, (अद्य) = आज (तम्) = उस [निधिम्] उस निधि को (कः वेद) = कौन पूरा-पूरा जानता है। प्रभु ने एक-एक देव में देवत्व स्थापित किया है। उस देवत्व को ही पूर्णतया जानना कठिन है। संस्थापक के जानने की बात तो दूर रही। इस पृथिवी को भी कौन पूर्णतया जानता है?

    भावार्थ

    प्रभु ने सब देवों में जिस देवत्व को स्थापित किया है, उसे भी पूर्णतया जानना संभव नहीं। प्रभु तो अज्ञेय हैं ही।

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    भाषार्थ

    (त्रयस्त्रिंशद् देवाः) ३३ देव (यस्य निधिम्) जिस की निधि की (सर्वदा) सदा (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं, (तम् निधिम्) उस निधि को, (अद्य) आज तक, (कः वेद) कोन जानता है (यम्) जिस निधि की (देवाः) हे देवो! (अभिरक्षथ) तुम रक्षा करते हो।

    टिप्पणी

    [निधि = जगत् । इस के रहस्य को कोई नहीं जानता। अथवा निधि = वेद इस के भी रहस्य को आज तक किसी ने नहीं जाना। यथा "निधिपाः" = वेदविद्या का रक्षक ब्रह्मचारी (निरुक्त २।२।३, ४)]।

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    मन्त्रार्थ

    (यस्य-निधि-त्रयस्त्रिंशत्-देवाः सदा रक्षन्ति ) जिस सर्वाधार परमात्मा के निधि-गुण शक्ति कृति सञ्चय की तेंतीस देव रक्षा करते हैं (देवाः अद्य तं निधिं कः वेद-यम् - अभिरक्षथ ) देवो- विद्वानों ! उस गुण शक्ति कृति सञ्चय को आज सृष्टिकाल में कौन जानता है कोई विरला ही जानता है जिसकी तुम सब प्रकार रक्षा करते हो ॥२३॥

    टिप्पणी

    इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥

    विशेष

    ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Skambha Sukta

    Meaning

    Whose treasure-hold of the universe thirty-three Devas, divinities of nature, constantly protect and preserve, serve and promote, of that Skambha, pray, speak to me. O Devas, who now knows that treasure- hold of divinity which you protect and promote?

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    Translation

    Whose precious treasure (nidhi) the thirty-three enlightened ones (33 devas) always guard; whoever knows that treasure now, which, O enlightened ones, you so carefully guard?

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    Translation

    Whose secret treasure the thirty-three mighty forces of world always protect who is amongst them who knows this treasure which they guard carefully.

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    Translation

    Whose secret treasure evermore the three and thirty forces protect? Who knoweth now the treasure which, O gods ye watch and guard?

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) म० १३ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (निधिम्) कोषम्। संसारम् (रक्षन्ति) पालयन्ति (सर्वदा) (वेद) जानाति। अन्यत् सुगमम् ॥

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