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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
    ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - परोष्णिक् सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
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    यस्य॒ त्रय॑स्त्रिंशद्दे॒वा अङ्गे॒ सर्वे॑ स॒माहि॑ताः। स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । त्रय॑:ऽत्रिंशत् । दे॒वा: । अङ्गे॑ । सर्वे॑ । स॒म्ऽआहि॑ता: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य त्रयस्त्रिंशद्देवा अङ्गे सर्वे समाहिताः। स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । त्रय:ऽत्रिंशत् । देवा: । अङ्गे । सर्वे । सम्ऽआहिता: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
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    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यस्य) जिसके (अङ्गे) अङ्ग में (सर्वे) सब (त्रयस्त्रिंशत्) तेंतीस (देवाः) देवता [दिव्य पदार्थ] (समाहिताः) मिलकर स्थापित हैं। (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥१३॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के सामर्थ्य से ही वसु आदि पदार्थ संसार का धारण करते हैं। तेंतीस देवता यह हैं−८ वसु अर्थात् अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्यौः वा प्रकाश, चन्द्रमा और नक्षत्र, ११ रुद्र अर्थात् प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनञ्जय यह दश प्राण और ग्यारहवाँ जीवात्मा, १२ आदित्य अर्थात् महीने, १ इन्द्र अर्थात् बिजुली, प्रजापति अर्थात् यज्ञ−महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठ ६६-६८ ॥१३॥

    टिप्पणी

    १३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) वस्वादयः−ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठानि ६८-६८ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (अङ्गे) (सर्वे) समाहिताः सम्यक् स्थापिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    तेतीस देवों का आधार 'ब्रह्म'

    पदार्थ

    १. (यस्य अङ्गे) = जिसके एक अङ्ग [एक देश] में (सर्वे त्रयस्त्रिंशद देवा:) = सब तेतीस देव समाहिता:- परस्पर संगतरूप में स्थापित हैं, तम्-उस प्रभु को ही स्कम्भ बूहि-सर्वाधार 'स्कम्भ' कहो। सः एव-वही स्वित्-निश्चय से कतमः अतिशयेन आनन्दमय है।

    भावार्थ

    'आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य व इन्द्र और प्रजापति' इन तेतीस देवों के आधार वे आनन्दमय प्रभु ही हैं।

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    भाषार्थ

    (यस्य अङ्गे) जिस के अङ्ग में (सर्वे) सब (त्रयस्त्रिंशत् देवाः) ३३ देव (समाहिताः) इकट्ठे हो कर स्थित है (तम्) उसे (स्कम्भम् ब्रूहि) तू स्कम्भ कह (कतमः, स्वित् एव सः) अर्थ देखो मन्त्र (४)

    टिप्पणी

    [३३ देवताओं के सम्बन्ध में कहा है कि इन्हें "एके” कोई ही ब्रह्म वेत्ता जानते हैं (अथर्व० ७।२७)। यजुर्वेद ७।१९ में कहा है कि "देवा दिवि एकादश स्थ, पृथिव्याम् एकादश स्थ, अप्सुक्षितः एकादश स्थ"। इस से ज्ञात होता है कि ३३ देवताओं में ११ तो द्युलोकस्थ हैं, ११ पृथिवीस्थ हैं, और ११ अप्सु अर्थात् अन्तरिक्ष में स्थित है। "आपः अन्तरिक्षनाम" (निघं० १।३)। बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा है कि "कतमे ते त्रयस्त्रिंशदिति, अष्टौ वसवः एकादश रुद्राः, द्वादशादित्याः, ते एकत्रिंशत्, इन्द्रश्च प्रजापतिश्च त्रयस्त्रिंशौ इति" (अध्याय ३, ब्राह्मण ९, काण्डिका ३)। अर्थात् ८ वसु, ११ रुद्र, १२ आादित्य, १ इन्द्र, १ प्रजापति-ये ३३ देव हैं। सम्भवतः रुद्र से विद्युत्, और प्रजापति से मेघ अभिप्रेत हो। क्योंकि ३३ देवों को प्रकृतिजन्य कहा है (अङ्गे गात्रा) (अथर्व० ७।२७)]।

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    मन्त्रार्थ

    (यस्य-अ-त्रयस्त्रिशत्-सर्वे-देवाः-समाहिताः-तं स्कम्भ) जिस ही आधारभूत परमात्मा के तेतीस सारे देव आठ वसु ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य शास्त्रप्रदर्शित रखे हैं अथवा तीनों लोकों में वर्तमान ग्यारह ग्यारह प्रमुख पदार्थ समाश्रित हैं (तं स्कस्म) पूर्ववत् ॥१३॥

    टिप्पणी

    इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥

    विशेष

    ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Skambha Sukta

    Meaning

    In whose power and presence are integrated and comprehended all the thirty-three divine forces, of that Skambha, pray, speak to me, which one is that? Say it is Skambha, only that of all, the ultimate centre and circumference of existence. (The thirty three Devas or divinities are: eight Vasus, eleven Rudras, twelve Adityas, Indra, i.e., energy, and yajna, natural dynamics of life sustenance.)

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    Translation

    In whose one part all the thirty-three (33) enlightened ones (deva) sit meditating (samāhita) tell me of that Skambha; which of so many, indeed, is He ?

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    Translation

    Who out of many powers, tell me O learned! Is that Supporting Divine Power in whose member are contained the thirty-three cosmic powers.

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    Translation

    Who out of many, tell me, is that All-pervading God, in Whom are contained all three and thirty forces of Nature.

    Footnote

    Thirtythree deities: Eight vasus i.e.,-Fire, Earth, Air, Atmosphere (अन्तरिक्ष), Sky, Sun, Moon, Star. (नक्षत्र). Eleven Rudras: Prana. Apana, Vyana,Udana, Samana, Naga, Kurma, Krikal, Dev Dutt, Dhananjya and Soul. Twelve Adityas: Twelve months. Indra: Lighting, Prajapati: Yajna. See Bribadaranyak Upnishada for a detailed account.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १३−(यस्य) परमेश्वरस्य (त्रयस्त्रिंशत्) वस्वादयः−ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृष्ठानि ६८-६८ (देवाः) वस्वादयो दिव्यपदार्थाः (अङ्गे) (सर्वे) समाहिताः सम्यक् स्थापिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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