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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 22
    ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः देवता - स्कन्धः, आत्मा छन्दः - उपरिष्टाज्ज्योतिर्जगती सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
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    यत्रा॑दि॒त्याश्च॑ रु॒द्राश्च॒ वस॑वश्च स॒माहिताः॑। भू॒तं च॒ यत्र॒ भव्यं॑ च॒ सर्वे॑ लो॒काः प्रति॑ष्ठिताः स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑ । आ॒दि॒त्या: । च॒ । रू॒द्रा: । च॒ । वस॑व: । च॒ । स॒म्ऽआहि॑ता: । भू॒तम् । च॒ । यत्र॑ । भव्य॑म् । च॒ । सर्वे॑ । लो॒का: । प्रति॑ऽस्थिता: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्रादित्याश्च रुद्राश्च वसवश्च समाहिताः। भूतं च यत्र भव्यं च सर्वे लोकाः प्रतिष्ठिताः स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र । आदित्या: । च । रूद्रा: । च । वसव: । च । सम्ऽआहिता: । भूतम् । च । यत्र । भव्यम् । च । सर्वे । लोका: । प्रतिऽस्थिता: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 7; मन्त्र » 22
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्र) जिस [परमेश्वर] में (आदित्याः) प्रकाशमान [सूर्य आदि लोक] (च च) और (रुद्राः) गति देनेवाले पवन (च) और (वसवः) निवास करनेवाले [प्राणी] (समाहिताः) परस्पर ठहराए गये हैं। (यत्र) जिसमें (भूतम्) भूतकाल (च) और (भव्यम्) भविष्यत् काल (च) और (सर्वे) सब (लोकाः) लोक (प्रतिष्ठिताः) ठहरे हैं, (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥२२॥

    भावार्थ

    ये सब सूर्य, वायु, प्राणी आदि जगत् परमात्मा की महिमा से परस्पर आकर्षण द्वारा स्थित हैं ॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(यत्र) यस्मिन् परमेश्वरे (आदित्याः) अ० १।९।१। आदीप्यमानाः सूर्यादिलोकाः (च च) (रुद्राः) रुङ् गतिरेषणयोः-क्विप्, तुक्+रा दाने-क। गतिदातारः पवनाः (वसवः) निवासिनः प्राणिनः (समाहिताः) सम्यक् स्थापिताः (भूतम्) गतकालः (च च) (यत्र) (भव्यम्) अनागतकालः (लोकाः) भुवनानि (प्रतिष्ठिताः) दृढं स्थिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    आदित्य, रुद्र, वस

    पदार्थ

    १. (यत्र) = जिसमें (आदित्याः च) = बारह आदित्य देव, (रुद्राः च) = ग्यारह रुद्रदेव (च) = तथा (वसवः) = आठ वसु (समाहिताः) = सम्यक् स्थापित हैं। सब देवों के आधारभूत वे प्रभु ही तो स्कम्भ हैं। (यत्र) = जहाँ (भूतं च भव्यं च) = जो लोक भूतकाल में थे तथा भविष्यत् में होंगे तथा वर्तमानकाल में (सर्वे लोका:) = सब लोक (प्रतिष्ठिता:) = प्रतिष्ठित हैं, (तम्) = उस (स्कम्भम्) = सर्वाधार प्रभु को (ब्रूहि) = कह-स्तवन कर। (सः एव) = वे प्रभु ही (स्वित्) = निश्चय से (कतम:) = अतिशयेन आनन्दमय हैं।

    भावार्थ

    आदित्यों, रुद्रों व वसुओं के आधार वे प्रभु ही है। कालत्रयी में होनेवाले सब लोक उस प्रभु में ही प्रतिष्ठित हैं। उस सर्वाधार 'स्कम्भ' का ही हम स्तवन करें, वे ही आनन्दस्वरूप हैं।

     

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    भाषार्थ

    (यत्र) जिस में (आदित्याः च, रुद्राः च, वसवः च) आदित्य, रुद्र, और वसु, (समाहिताः) स्थित हैं, (भूतम् च, भव्यं च) भूत और भावी जगत् (सर्वे लोकाः) तथा सब लोक (प्रतिष्ठिताः) स्थित हैं, (तम्) उसे (स्कम्भम्) स्कम्भ (ब्रूहि) तू कह, (कतमः, स्वित्, एव सः) देखो अर्थ (मन्त्र ४)

    टिप्पणी

    [व्याख्या के लिये देखो (मन्त्र १३)]

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    मन्त्रार्थ

    (यत्र-आदित्याः च रुद्राः च वसवः च समाहिता:) जिस आधाररूप परमात्मा में द्वादश आदित्य ग्यारह रुद्र और आठ चसु समाश्रित हैं (यत्र - भूतं-च-भव्यं-सर्वे-लोकाः-प्रतिष्ठिताः) जिसमें भूत भविष्यत् और वर्तमान काल तथा सारे लोक वर्त मान हैं (स्कम्भ) पूर्ववत् ॥२२॥

    टिप्पणी

    इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥

    विशेष

    ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Skambha Sukta

    Meaning

    Wherein Twelve Adityas, eleven Rudras and eight Vasus abide comprehended, wherein past, present and future and all regions of the world of existence abide, comprehended and sustained, of that Skambha, pray, speak to me, which one, for sure, is that? Say it is Skambha, only that of all, the ultimate centre and circumference of existence.

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    Translation

    Wherein the Adityas (twelve suns of the year), the Rudras (vital breaths) and the Vasus (treasures) are contained; wherein the past: and the future and all the worlds are properly placed; tell me of that Skambha; which of so many, indeed, is He ?

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    Translation

    Who out of many powers, tell me O learned! is that Supporting Divine power in whom twelve Adityas the months of the year; Rudras, the eleven vital breaths including the soul and Vasus, the eight localities are contained and in whom the past, future and all the worlds are firmly established.

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    Translation

    Who out of many, tell me, is that All-pervading God, in Whom Adityas dwell, in Whom Rudras and vasus are contained, in Whom, the past and the future and all the worlds are firmly set.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(यत्र) यस्मिन् परमेश्वरे (आदित्याः) अ० १।९।१। आदीप्यमानाः सूर्यादिलोकाः (च च) (रुद्राः) रुङ् गतिरेषणयोः-क्विप्, तुक्+रा दाने-क। गतिदातारः पवनाः (वसवः) निवासिनः प्राणिनः (समाहिताः) सम्यक् स्थापिताः (भूतम्) गतकालः (च च) (यत्र) (भव्यम्) अनागतकालः (लोकाः) भुवनानि (प्रतिष्ठिताः) दृढं स्थिताः। अन्यत् पूर्ववत् ॥

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