अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 7/ मन्त्र 14
ऋषिः - अथर्वा, क्षुद्रः
देवता - स्कन्धः, आत्मा
छन्दः - उपरिष्टाद्बृहती
सूक्तम् - सर्वाधारवर्णन सूक्त
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यत्र॒ ऋष॑यः प्रथम॒जा ऋचः॒ साम॒ यजु॑र्म॒ही। ए॑क॒र्षिर्यस्मि॒न्नार्पि॑तः स्क॒म्भं तं ब्रू॑हि कत॒मः स्वि॑दे॒व सः ॥
स्वर सहित पद पाठयत्र॑ । ऋष॑य: । प्र॒थ॒म॒ऽजा: । ऋच॑: । साम॑ । यजु॑: । म॒ही । ए॒क॒ऽऋ॒षि: । यस्मि॑न् । आर्पि॑त: । स्क॒म्भम् । तम् । ब्रू॒हि॒ । क॒त॒म: । स्वि॒त् । ए॒व । स: ॥७.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्र ऋषयः प्रथमजा ऋचः साम यजुर्मही। एकर्षिर्यस्मिन्नार्पितः स्कम्भं तं ब्रूहि कतमः स्विदेव सः ॥
स्वर रहित पद पाठयत्र । ऋषय: । प्रथमऽजा: । ऋच: । साम । यजु: । मही । एकऽऋषि: । यस्मिन् । आर्पित: । स्कम्भम् । तम् । ब्रूहि । कतम: । स्वित् । एव । स: ॥७.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
पदार्थ
(यत्र) जिस [परमेश्वर] में (प्रथमजाः) प्रथम उत्पन्न (ऋषयः) ऋषिः [मन्त्रों के अर्थ जाननेवाले महात्मा], (ऋचः) स्तुतिविद्याएँ [ऋग्वेद], (साम) मोक्षविद्या [सामवेद], (यजुः) सत्सङ्गविद्या [यजुर्वेद] और (मही) पूजनीय वाणी [ब्रह्मविद्या अर्थात् अथर्ववेद] वर्तमान है। (यस्मिन्) जिसमें (एकर्षिः) एकदर्शी [समदर्शी स्वभाव] (आर्पितः) भली-भाँति जमा हुआ है, (सः) वह (कतमः स्वित्) कौन सा (एव) निश्चय करके है ? [उत्तर] (तम्) उसको (स्कम्भम्) स्कम्भ [धारण करनेवाला परमात्मा] (ब्रूहि) तू कह ॥१४॥
भावार्थ
परमेश्वर की सत्ता में सृष्टि की आदि में उत्पन्न वेदार्थद्रष्टा ऋषि और समस्त वेदविद्याएँ और समदर्शी स्वभाव स्थित हैं। सृष्टि की आदि में जिनको वेदों का प्रकाश हुआ था, वे चार ऋषि ये हैं−अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा, महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पृ० १६ ॥१४॥
टिप्पणी
१४−(यत्र) यस्मिन् परमेश्वरे (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः (प्रथमजाः) सृष्ट्यादौ सृष्टाः (ऋचः) स्तुतिविद्याः। ऋग्वेदः (साम) अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि−मनिन्। दुःखनाशिका मोक्षविद्या। सामवेदः (यजुः) अ० ७।५४।२। सङ्गतिकरणविद्या। यजुर्वेदः (मही) वाणी-निघ० १।११। पूजनीयब्रह्मविद्या। अथर्ववेदः (एकर्षिः) ऋषिर्दर्शनात्-निरु० २।१। एकदर्शी। समदर्शी स्वभावः (यस्मिन्) परमात्मनि (आर्पितः) म० २१। समन्तात् स्थापितः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
प्रथमजा: ऋषयः, ऋचः, साम, यजुर्मही, एकर्षि:
पदार्थ
१. (यत्र) = जिसके आधार में (प्रथमजाः ऋषयः) = सृष्टि के प्रारम्भ में होनेवाले 'अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा' नामक ऋषि तथा इन ऋषियों को प्राप्त कराई गई (ऋच: सामयजुः मही) = ऋग्वेद की वाणियाँ, यजुरूप वाणियाँ, साम-मन्त्र तथा महनीय अथर्ववेद [ब्रह्मवेद] ये सब स्थित हैं तथा एक (ऋषि:) = [ऋषिः इन्द्रियम्-नि०१२,३६] अद्वितीय मुख्य इन्द्रिय 'मन' (यस्मिन् आर्पित:) = जिसमें अर्पित हुआ है, (तम्) = उस (स्कम्भम्) = सर्वाधार प्रभु का (ब्रूहि) = प्रतिपादन कर। (सः एव) = बही (स्वित्) = निश्चय से (कतमः अतिशयेन) = आनन्दमय है।
भावार्थ
सृष्टि के प्रारम्भ में होनेवाले 'अग्नि, वायु, आदित्य, अङ्गिरा' आदि ऋषि, इनके द्वारा दी जानेवाली 'ऋग, यज, साम व अथर्व' वाणियाँ तथा अनुपम इन्द्रिय 'मन' जिसमें अर्पित है, वही सर्वाधार आनन्दमय प्रभु है-'स्कम्भ' है।
भाषार्थ
(यत्र) जिस में (प्रथमजाः ऋषयः) प्रथमोत्पन्न ऋषि तथा (ऋचः, साम, यजुः, मही) ॠग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, और मही अर्थात् महती अथर्ववेद वाणी] [समाहिताः] (मन्त्र ११) समाहित हैं, सम्यकरूप में स्थित रहते हैं तथा (यस्मिन्) जिस में (एकर्षिः) प्रधान१--ऋषि अर्थात् अथर्वा (आर्पितः) समर्पित है, (तम्) उसे (स्कम्भम्) स्कम्भ (ब्रूहि) तू कह, (कतमः, स्वित्, एव, सः) अर्थ देखो (मन्त्र ४)।
टिप्पणी
[ऋषयः = सम्भवतः चार ऋषि, जिन के द्वारा चार वेद प्रकट हुए। ये चार मानस पुरुष थे। समग्र ७ वें सूत्र का द्रष्टा ऋषि है "अथर्वा", अतः सम्भवतः एकर्षि द्वारा "अथर्वा" ऋषि ही अभिप्रेत हो। अथर्ववेद "अथर्वा" द्वारा प्रकट हुआ हो, अतः अथर्वा२ को एकर्षि कहा है]। [१. एकोऽन्यार्थे प्रधाने च प्रथमे केवले तथा। साधारणे समानेऽल्पे संख्यायां च प्रयुज्यते। अथर्वा को 'प्रधान' इसलिये कहा है कि एतत्सम्बन्धी अथर्ववेद में जितनी विद्याओं का वर्णन है उतनी विद्याओं का वर्णन अन्य तीन वेदों में नहीं है। २. मन्त्रों में अथर्वा-ऋषि के कथन से वेद में ऐतिहासिक वर्णन नहीं जानना चाहिये। वेदाविर्भाव के साथ जिन "प्रथमजाः ऋषयः" का वर्णन हुआा है, प्रत्येक सृष्टि में इन्हीं चार ऋषियों द्वारा वेदाविर्भाव होता रहता है। अतः ये ऋषि नित्य ऋषि है। ये मानुष-पुत्र नहीं, जिन का कि सम्बन्ध इतिहास के साथ होता हैं।]
मन्त्रार्थ
(यत्र प्रथमजाः-ऋषयः) जिसके आश्रय आधारभूत परब्रह्म में प्रथम प्रादुर्भूत साङ्कल्पिक वेदप्रकाशक अग्नि-वायु-आदित्य-अङ्गिरा नामक प्रसिद्ध ऋषि हैं (ऋचः-साम-यजु:मही) ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद महतीविद्या-ब्रह्मविद्या-ब्रह्मवेद अथर्ववेद उन ऋषियों के प्रकाश्य विषय आश्रित हैं (यस्मिन्-एकर्षिः-आपितः) जिसके आश्रित उनके पश्चात् उत्पन्न एक सांसिद्धिक ऋषि उन अग्नि आदि से वेद को पढकर चतुर्वेदवेत्ता ब्रह्मा नाम का "ब्रह्मा-ह-वै देवानां प्रथमो बभूव” (मुण्डको० १-१-१) परम्परा से आश्रित है (स्क्रम्भं तं..) उस सर्वाधार - को कह विचार वह बहुतों में कौनसा या अत्यन्त सुखप्रद है ॥१४॥
टिप्पणी
इस सूक्त पर सायणभाष्य नहीं है, परन्तु इस पर टिप्पणी में कहा है कि स्कम्भ इति सनातनतमो देवो "ब्रह्मणो प्याद्यभूतः । अतो ज्येष्ठं ब्रह्म इति तस्य संज्ञा । विराडपि तस्मिन्नेव समाहितः” । अर्थात् स्कम्भ यह अत्यन्त सनातन देव है जो ब्रह्म से भी आदि हैं अतः ज्येष्ठ ब्रह्म यह उसका नाम है विराड् भी उसमें समाहित है । यह सायण का विचार है ॥
विशेष
ऋषिः—अथर्वा ( स्थिर-योगयुक्त ) देवनाः - स्कम्भः, आत्मा वा ( स्कम्भ-विश्व का खम्भा या स्कम्मरूप आत्मा-चेतन तत्त्व-परमात्मा )
इंग्लिश (4)
Subject
Skambha Sukta
Meaning
Wherein the first born Rshis, i.e., the seven Rshi pranas, seven first born evolutes of Prakrti comprising Mahan, Ahankara and five elements, and the first born Vedic visionaries abide; wherein Rks, Samans, Yajus and the great hymns of Atharva abide, wherein the one Rshi, i.e., omniscience and later Reason and logic abide in order, all self-surrendered, of that Skambha, pray, speak to me, which one of all is that? Say it is Skambha, only that of all, the ultimate centre and circumference of existence.
Translation
Wherein the first-born (prathamajaéh) seers, the Rk verses,Samans (praise songs), Yajus (sacrificial formulas), the great spiritual knowledge (Atharva hymns) and the sole seer (ekarsi) abide; tell me of that Skambha; which of so many, indeed, is He ?
Translation
Who out of many powers, tell me O learned! is that Supporting Divine Power in whom the first born seven Rishis, the cosmic elements with Riks, Yajus, Saman and Atharva abide and in whom one vital air has its maintenance.
Translation
Who out of many, tell me, is that All-pervading God, in Whom the sages earliest born, the Rigveda, the Samaveda, the Yajurveda and the Atharvaveda, and impartiality abide.
Footnote
Mahi has been translated by Pt. Jaidev Vidyalankar, Pt. Khem Karan Das Trivedi, and Pt. Damodar Satvalekar as Atharvaveda, which deals with the high knowledge of God and salvation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(यत्र) यस्मिन् परमेश्वरे (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः (प्रथमजाः) सृष्ट्यादौ सृष्टाः (ऋचः) स्तुतिविद्याः। ऋग्वेदः (साम) अ० ७।५४।१। षो अन्तकर्मणि−मनिन्। दुःखनाशिका मोक्षविद्या। सामवेदः (यजुः) अ० ७।५४।२। सङ्गतिकरणविद्या। यजुर्वेदः (मही) वाणी-निघ० १।११। पूजनीयब्रह्मविद्या। अथर्ववेदः (एकर्षिः) ऋषिर्दर्शनात्-निरु० २।१। एकदर्शी। समदर्शी स्वभावः (यस्मिन्) परमात्मनि (आर्पितः) म० २१। समन्तात् स्थापितः। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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