Sidebar
अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 14
सूक्त - आत्मा
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
आ॑त्म॒न्वत्यु॒र्वरा॒ नारी॒यमाग॒न्तस्यां॑ नरो वपत॒ बीज॑मस्याम्। सा वः॑प्र॒जां ज॑नयद्व॒क्षणा॑भ्यो॒ बिभ्र॑ती दु॒ग्धमृ॑ष॒भस्य॒ रेतः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒त्म॒न्ऽवती॑ । उ॒र्वरा॑ । नारी॑ । इ॒यम् । आ । अ॒ग॒न् । तस्या॑म् । न॒र॒: । व॒प॒त॒ । बीज॑म् । अ॒स्या॒म् । सा । व॒: । प्र॒ऽजाम् । ज॒न॒य॒त् । व॒क्षणा॑भ्य: । बिभ्र॑ती । दु॒ग्धम् । ऋ॒ष॒भस्य॑ । रेत॑: ॥२.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
आत्मन्वत्युर्वरा नारीयमागन्तस्यां नरो वपत बीजमस्याम्। सा वःप्रजां जनयद्वक्षणाभ्यो बिभ्रती दुग्धमृषभस्य रेतः ॥
स्वर रहित पद पाठआत्मन्ऽवती । उर्वरा । नारी । इयम् । आ । अगन् । तस्याम् । नर: । वपत । बीजम् । अस्याम् । सा । व: । प्रऽजाम् । जनयत् । वक्षणाभ्य: । बिभ्रती । दुग्धम् । ऋषभस्य । रेत: ॥२.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 14
विषय - 'आत्मन्वती उर्वरा' नारी
पदार्थ -
१. (आत्मन्यती) = प्रशस्त अन्त:करणवाली, आत्मिक बल से युक्त (उर्वरा) = उत्तम सन्तान को जन्म देने में समर्थ (इयं नारी आगन्) = यह नारी गृहपत्नी के रूप में इस घर में आई है। हे (नरः) = उन्नति-पथ पर चलनेवाले मनुष्यो! विषयों में आसक्त न होनेवाले पुरुषो [न रमते]। (तस्याम्) = ऐसी आत्मन्बती उर्वरा' नारी में (बीजं वपत) = सन्तानोत्पादनक्षम वीर्य का वपन करो। २. (सा) = वह नारी (ऋषभस्य) = शक्तिशाली पुरुष के दुग्ध रेत:-दोहन किये गये रेतस को, वीर्य को (बिभती) = धारण करती हुई (व:) = तुम्हारे लिए (वक्षणाभ्यः प्रजा जनयत्) = अपनी कोखों [वक्षणा sides, flank] से उत्तम सन्तान को जन्म दें। मनु का यह वाक्य मन्त्रांश को सुव्यक्त कर रहा है, 'क्षेत्रभूता स्मृता नारी बीजभूतः स्मृतः पुमान् । क्षेत्रबीजसमायोगात् सम्भव: सर्वदेहिनाम्॥' [१.३३]। नारी क्षेत्र है, पुमान् बीज है। क्षेत्रबीज के योग से ही सब देहियों का जन्म होता
भावार्थ -
स्त्री प्रशस्त मनवाली व सन्तानोत्पादन में समर्थ हो। वह शक्तिशाली पुरुष के वीर्य को धारण करती हुई उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली हो।
इस भाष्य को एडिट करें