Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 53
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    बृह॒स्पति॒नाव॑सृष्टां॒ विश्वे॑ दे॒वा अ॑धारयन्। वर्चो॒ गोषु॒ प्रवि॑ष्टं॒यत्तेने॒मां सं सृ॑जामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    बृह॒स्पति॑ना । अव॑ऽसृष्टाम् । विश्वे॑ । दे॒वा: । अ॒धा॒र॒य॒न् । वर्च॑: । गोषु॑ । प्रऽवि॑ष्टम् । यत् । तेन॑ । इ॒माम् । सम् । सृ॒जा॒म॒सि॒ ॥२.५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    बृहस्पतिनावसृष्टां विश्वे देवा अधारयन्। वर्चो गोषु प्रविष्टंयत्तेनेमां सं सृजामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    बृहस्पतिना । अवऽसृष्टाम् । विश्वे । देवा: । अधारयन् । वर्च: । गोषु । प्रऽविष्टम् । यत् । तेन । इमाम् । सम् । सृजामसि ॥२.५३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 53

    पदार्थ -

    १. (बृहस्पतिना) = उस ब्रह्मणस्पति-ज्ञान के स्वामी प्रभु से (अवसृष्टा) = [ form, create], वेदवाणी में प्रतिपादित कर्तव्यदीक्षा को (विश्वेदेवा:) = देववृत्ति के सब (विद्वान् आधारयन्) = धारण करते हैं। गृहस्थ बनने पर देववृत्ति के पुरुष प्रभु-प्रतिपादित कर्तव्यों का पालन करने के लिए यलशील होते हैं। २. गृहस्थ में प्रवेश करने पर इन देवों का यही संकल्प होता है कि (यत् वर्च:) = जो वर्चस, रोगनिरोधक शक्ति (गोषु प्रविष्टम्) = इन वेदवाणियों में प्रविष्ट है, (तेन) = उस वर्चस् से (इमाम्) = इस युवति को (संसृजामसि) = संसृष्ट करते हैं, अर्थात् वेदोपदिष्ट कर्तव्यों का पालन करते हुए हम वर्चस्वी जीवनवाले बनते हैं। ३. इसी प्रकार इन वाणियों में जो (तेजः प्रविष्टम) = तेज प्रविष्ट है, उस तेज से इसे संयुक्त करते हैं। (यः भगः प्रविष्ट:) = इनमें जो ऐश्वर्य निहित है, (यत् यश:) = जो यश स्थापित है, (यत् पयः) = जो आप्यायन [वर्धन] निहित है तथा (यः रस:) = जो रस, आनन्द विद्यमान है, उससे इस युवति को संसृष्ट करते हैं।

    भावार्थ -

    देववृत्तिवाला पति स्वयं वेदवाणी से अपना सम्बन्ध बनाता है, अपनी पत्नी को भी इस सम्बन्ध की महत्ता समझाता है। इस वेदवाणी के द्वारा वे 'वर्चस्, तेज, ऐश्वर्य, यश, शक्तिवर्धन व आनन्द' को प्राप्त करते हैं। इनसे युक्त होकर वे गृह को स्वर्गोपम बनाते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top