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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 51
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    ये अन्ता॒याव॑तीः॒ सिचो॒ य ओत॑वो॒ ये च॒ तन्त॑वः। वासो॒ यत्पत्नी॑भिरु॒तं तन्नः॑स्यो॒नमुप॑ स्पृशात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अन्ता॑: । याव॑ती: । सिच॑: । ये । ओत॑व: । ये । च॒ । तन्त॑व: । वास॑: । यत् । पत्नी॑भि: । उ॒तम् । तत् । न॒: । स्यो॒नम् । उप॑ । स्पृ॒शा॒त् ॥२.५१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये अन्तायावतीः सिचो य ओतवो ये च तन्तवः। वासो यत्पत्नीभिरुतं तन्नःस्योनमुप स्पृशात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अन्ता: । यावती: । सिच: । ये । ओतव: । ये । च । तन्तव: । वास: । यत् । पत्नीभि: । उतम् । तत् । न: । स्योनम् । उप । स्पृशात् ॥२.५१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 51

    पदार्थ -

    १. (ये अन्त:) = जो वस्त्रों की झालरें हैं, (यावती: सिच:) = जितनी किनारियौं हैं, (ये ओतव:) = जो उनके बाने हैं (च) = और (ये तन्तव:) = जो ताने के सूत्र हैं, इस प्रकार (यत् वास:) = जो वस्त्र (पत्नीभिः उतम्) = गृहदेवियों ने ही बुना है, (तत्) = वह (स्योनम्) = सुखकर वस्त्र ही (न: उपस्पृशात्) = हमारे शरीर को छूए। २. स्त्रियों का अतिरिक्त समय वस्त्र-निर्माण में व्यतीत होकर उन्हें भोगविलास की बृत्ति से ऊपर उठनेवाला बनाए। इसप्रकार प्रत्येक युवति देश के ऐश्वर्य की वृद्धि में भी कुछ न-कुछ सहायक हो रही होगी और समय को भी उत्तमता से व्यतीत कर पाएगी। वस्तुत: इन वस्त्रों के एक-एक तार में प्रेम भी ग्रथित हुआ-हुआ होता है। उस वस्त्र को धारण करके प्रेम की पवित्र भावना में भी वृद्धि होती है। यान्त्रिक वस्त्र 'मृत'-सा होता है तो यह 'जीवित' होता है। यान्त्रिक वस्त्रों में केवल 'सौन्दर्य' है तो गृह के वस्त्र में प्रेममय सौन्दर्य है।

    भावार्थ -

    गृहिणियाँ अपने अतिरिक्त समय का घर के वस्त्रों के निर्माण में सदुपयोग करें। इसप्रकार वे ऐश्वर्य-वृद्धि में व विलासवृत्ति-विनाश में सहायक बनेगी।

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