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अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 35
सूक्त - आत्मा
देवता - पुरोबृहती त्रिष्टुप्
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
नमो॑गन्ध॒र्वस्य॒ नम॑से॒ नमो॒ भामा॑य॒ चक्षु॑षे च कृण्मः। विश्वा॑वसो॒ ब्रह्म॑णाते॒ नमो॒ऽभि जा॒या अ॑प्स॒रसः॒ परे॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ग॒न्ध॒र्वस्य॑ । नम॑से। नम॑: । भामा॑य । चक्षु॑षे । च॒ । कृ॒ण्म॒: । विश्व॑वसो॒ इति॒ विश्व॑ऽवसो । ब्रह्म॑णा । ते॒ । नम॑: । अ॒भि । जा॒या: । अ॒प्स॒रस॑: । परा॑ । इ॒हि॒ ॥२.३५॥
स्वर रहित मन्त्र
नमोगन्धर्वस्य नमसे नमो भामाय चक्षुषे च कृण्मः। विश्वावसो ब्रह्मणाते नमोऽभि जाया अप्सरसः परेहि ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । गन्धर्वस्य । नमसे। नम: । भामाय । चक्षुषे । च । कृण्म: । विश्ववसो इति विश्वऽवसो । ब्रह्मणा । ते । नम: । अभि । जाया: । अप्सरस: । परा । इहि ॥२.३५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 35
विषय - नमसे, भामाय चक्षुषे
पदार्थ -
१. (गन्धर्वस्य) = ज्ञान को धारण करनेवाले इस युवक को (नमसे नमः) = नम्रता के लिए अथवा शत्रुओं को झकानेवाले बल के लिए हम नमस्कार (कृण्म:) = करते हैं (च) = और इस युवक के (भामाय) = तेजस्विता से दीप्त (चक्षुषे) = नेत्रों के लिए (नमः) = नमस्कार करते हैं। हे (विश्वावसो) = घर में सबको बसानेवाले व सब आवश्यक धनोंवाले युवक! (ब्रह्मणा) = ज्ञान के कारण (ते नमः) = हम तेरे लिए नमस्कार करते हैं। तू (अप्सरस:) = गृहकार्यों में गतिशील (जाया: अभि) = पत्नी का लक्ष्य करके [परा towards]-(इहि) = उसकी ओर जानेवाला हो।
भावार्थ -
उत्तम गृहपति वही है जो 'नम्रता, उत्तम बल, दीस नेत्र व ज्ञान' से युक्त है। यह घर में सबको बसाने के लिए आवश्यक धनों का अर्जन करनेवाला हो। क्रियाशील पत्नी को प्रास होकर उत्तम सन्तान को प्रास करे।
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