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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 2/ मन्त्र 73
    सूक्त - आत्मा देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    ये पि॒तरो॑वधूद॒र्शा इ॒मं व॑ह॒तुमाग॑मन्। ते अ॒स्यै व॒ध्वै॒ संप॑त्न्यै प्र॒जाव॒च्छर्म॑यच्छन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । पि॒तर॑: । व॒धू॒ऽद॒र्शा: । इ॒मम् । व॒ह॒तुम् । आ । अग॑मन् । ते । अ॒स्यै । व॒ध्वै । सम्ऽप॑त्न्यै । प्र॒जाऽव॑त् । शर्म॑ । य॒च्छ॒न्तु॒ ॥२.७३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये पितरोवधूदर्शा इमं वहतुमागमन्। ते अस्यै वध्वै संपत्न्यै प्रजावच्छर्मयच्छन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । पितर: । वधूऽदर्शा: । इमम् । वहतुम् । आ । अगमन् । ते । अस्यै । वध्वै । सम्ऽपत्न्यै । प्रजाऽवत् । शर्म । यच्छन्तु ॥२.७३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 2; मन्त्र » 73

    पदार्थ -

    १.(ये पितर:) = जो हमारे पितर-बड़े लोग (वधुदर्शा) = वधू को देखने की कामनावाले (इमम्) = इस वह (आगमन्) = विवाह में आये हैं, (ते) = वे सब (अस्यै) = इस (संपत्न्यै) = पति के साथ सम्यक् मेलवाली (वध्वै) = वधू के लिए (प्रजावत् शर्म यच्छन्तु) = प्रशस्त सन्तानवाले सुख को प्राप्त कराएँ। उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद दें।

    भावार्थ -

    विवाह में उपस्थित सब बड़े लोग इस पति के साथ मेलवाली वधू के लिए उत्तम सन्तति की प्राप्ति का आशीर्वाद दें।

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