अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 16
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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अ॑पू॒पवा॑न्क्षी॒रवां॑श्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पू॒पऽवा॑न् । क्षी॒रऽवा॑न् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥ ४.१६॥
स्वर रहित मन्त्र
अपूपवान्क्षीरवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे येदेवानां हुतभागा इह स्थ ॥
स्वर रहित पद पाठअपूपऽवान् । क्षीरऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥ ४.१६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
यजमान के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अपूपवान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (क्षीरवान्) दूधवाला (चरुः)चरु [स्थालीपाक] (इह) यहाँ [वेदी पर] (आ सीदतु) आवे। (लोककृतः) समाजों केकरनेवाले, (पथिकृतः) मार्गों के बनानेवाले [तुम लोगों] को (यजामहे) हम पूजतेहैं, (ये) जो तुम (देवानाम्) विद्वानों के बीच (हुतभागाः) भाग लेनेवाले (इह)यहाँ पर (स्थ) हो ॥१६॥
भावार्थ
यजमान को योग्य है किविद्वानों को सत्कारपूर्वक बुलाकर शुद्ध, सुगन्धित, पुष्टिकारक मोहनभोगमालपूए आदि पदार्थों के स्थालीपाक से यज्ञ करे ॥१६॥इस मन्त्र का उत्तर भाग आचुका है-अ० १८।३।२५-३५ ॥
टिप्पणी
१६−(अपूपवान्) पानीविशिभ्यः पः। उ० ३।२३। नञ्+पूयीविशरणे दुर्गन्धे च-प प्रत्ययः, यलोपः। सुसंस्कृतभोजनपदार्थयुक्तः (क्षीरवान्)दुग्धवान् (चरुः) भृमृशीङ्तॄचरि०। उ० १।७। चर गतिभक्षणयोः-उ प्रत्ययः।चरुर्मृच्चयो भवति चरतेर्वा समुच्चरन्त्यस्मादापः-निरु० ६।११। चरुर्मेघनाम-निघ०१।१०। यज्ञपाकः (इह) अत्र वेद्याम् (आ सीदतु) आ गच्छतु। तिष्ठतु। अन्यत्पूर्ववत्-अ० १८।३।२५ ॥
विषय
यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन
पदार्थ
१. यज्ञों को करनेवाला पुरुष सदा यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन ही करता है। वह प्रभु से यही प्रार्थना करता है कि (इह) = यहाँ-हमारे घरों में (चरु:) = चरणीय-भक्षणीय-भोजन (आसीदतु) = हमें प्राप्त हो। यह भोजन (अपूपवान्) = [न पूयते न विशीर्यते] दुर्गन्धित रोटी से युक्त न हो तथा (क्षीरवान्) = दूध से युक्त हो, इसी प्रकार यह भोजन (दधिवान्) = दहीवाला हो। (द्रपस्वान्) = [diluted curd] छाछ आदिवाला हो। (घृतवान) = मांसवान् [leshy part of fruits]-घृत से तथा फलों के गूदे से युक्त हो। (अन्नवान्-मधुमान्) = अन्नवाला हो तथा शहदवाला हो। (रसवान-अपवान्) = रस से युक्त हो तथा जलोंवाला हो। ये ही हमारे भोज्यद्रव्य हों। २. इन उत्तम सात्विक भोजनों को करते हुए हम उन सत्पुरुषों के (यजामहे) = संग को प्राप्त हों जो (लोककृत:) = प्रकाश फेलानेवाले हैं-ज्ञानमार्ग को दिखलानेवाले हैं। (पथिकृतः) = कर्त्तव्यपथ का प्रतिपादन करते हैं और (वे) = जो (इह) = यहाँ-जीवन में (देवानां हुतभागा: स्थ) = देवों के हुत का सेवन करनेवाले हैं, अर्थात् यज्ञशील हैं और यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले हैं।
भावार्थ
हमारा भोजन सात्त्विक हो और संग ज्ञानी, यज्ञशील पुरुषों के साथ हो।
भाषार्थ
सम्बन्धी प्राजापत्ययाजी के जीवनकाल के पश्चात् भी (इह) उस सम्बन्धित इस गृहस्थ में (अपूपवान्) माल-पूड़ों समेत (क्षीरवान्) और दूध समेत (चरुः) चावल, जौ आदि (आ सीदतु) बने रहें। तथा (देवानाम्) अतिथिदेवों में (ये) जो आप (हुतभागाः) आहुतियों के पश्चात् यज्ञशेष का भाग ग्रहण करनेवाले (इह) इस भूमण्डल पर (स्थ) अभी जीवित हो, और (लोककृतः) लोकोपकार करनेवाले और (पथिकृतः) लोकों को सत्पथ में चलानेवाले हो, उन आप का (यजामहे) अतिथियज्ञ द्वारा हम सत्कार कर सकें।
टिप्पणी
[संन्यासी आत्मयाजी होते हैं, वे हुतभागी नहीं होते। गृहस्थी तथा वानप्रस्थी अतिथि हुतभागी होते हैं। चरुः=चर भक्षणे।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Let the holy vessel full of delicacies prepared with milk and ghrta be here on the vedi. O divine performers of yajna for the divinities, benefactors of the world and path makers of humanity, we invoke and adore you who stay here with us and partake of our offerings.
Translation
Rich in cakes, rich in milk let the dish take seat here, to the world-makers, the road-makers, do we sacrifice, whoever of you are here, sharing in the oblation of the gods.
Translation
Let the preparation enriched with Apupas and milk rest here. We serve with it to them who are makers of the social order and finders of the path and who as the partakers of the Devas in oblation are present here.
Translation
Enriched with cake and milk let abundant food be stored in this world. We worship the benefactors of humanity, and the exhibitors of the path ot righteousness, who amongst the sages deserve to partake of these meals.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१६−(अपूपवान्) पानीविशिभ्यः पः। उ० ३।२३। नञ्+पूयीविशरणे दुर्गन्धे च-प प्रत्ययः, यलोपः। सुसंस्कृतभोजनपदार्थयुक्तः (क्षीरवान्)दुग्धवान् (चरुः) भृमृशीङ्तॄचरि०। उ० १।७। चर गतिभक्षणयोः-उ प्रत्ययः।चरुर्मृच्चयो भवति चरतेर्वा समुच्चरन्त्यस्मादापः-निरु० ६।११। चरुर्मेघनाम-निघ०१।१०। यज्ञपाकः (इह) अत्र वेद्याम् (आ सीदतु) आ गच्छतु। तिष्ठतु। अन्यत्पूर्ववत्-अ० १८।३।२५ ॥
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