Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 81
    ऋषिः - पितरगण देवता - प्राजापत्या अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    0

    नमो॑ वः पितरऊ॒र्जे नमो॑ वः पितरो॒ रसा॑य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । ऊ॒र्जे। नम॑:। व॒: । पि॒त॒र॒: । रसा॑य ॥४.८१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो वः पितरऊर्जे नमो वः पितरो रसाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम: । व: । पितर: । ऊर्जे। नम:। व: । पितर: । रसाय ॥४.८१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 81
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के सन्मान का उपदेश।

    पदार्थ

    (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (ऊर्जे) पराक्रम पाने के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (रसाय) रस [ज्ञानरस, ओषधिरस, और दूध, जल, विद्या आदि रस] पाने के लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो ॥८१॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥

    टिप्पणी

    ८१−(नमः) सत्करणम् (वः) युष्मभ्यम् (पितरः) हे पित्रादिपालकज्ञानिनः (ऊर्जे) क्रियार्थोपपदस्य चकर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। तुमुनः कर्मणि चतुर्थी। ऊर्जं पराक्रमं प्राप्तुम् (रसाय) ज्ञानरसौषधिरसदुग्धजलविद्यादिरसान् प्राप्तुम्। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पितरों के लिए 'स्वधा-व सत्कार'

    पदार्थ

    १. हे (पितर:) = पितरो! (वः कर्जे नमः) = आपके बल व प्राणशक्ति के लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो। (वः रसाय नमः) = आपकी वाणी में जो रस है उसके लिए हम नमस्कार करते हैं। २. हे (पितर:) = पितरो। (वः भामाय नम:) = आपकी तेजोदीसि के लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो! (व: मन्यवे नमः) = आपके ज्ञान [मन् अवबोधे] के लिए हम नमस्कार करते हैं। ३. हे (पितर:) = पितरो! (यत्) = जो (वः) = आपका (घोरम्) = शत्रुविनाशरूप हिंसात्मक कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए नमस्कार हो। हे (पितर:) = पितरो! (यत्) = जो (व:) = आपका (करम्) = निर्भयता पूर्ण शत्रुविच्छेदरूप कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए हम आदर करते हैं। ४. हे (पितरः) = पितरो! शत्रुविनाश द्वारा (यत्) = जो (व:) = आपका (शिवम्) = कल्याणकर कार्य है (तस्मै नमः) = उनके लिए हम नमस्कार करते हैं। निर्दयतापूर्वक पूर्णरूपेण शत्रुविनाश द्वारा (यत् वः स्योनम्) = जो आपका सुख प्रदानरूप कार्य है (तस्मै नमः) = उसके लिए हम आपका आदर करते हैं। ५. हे (पितर:) = पितरो! (वः नमः) = आपके लिए हम नमस्कार करते हैं। हे (पितर:) = पितरो! (वः स्वधः) = आपके शरीरधारण के लिए हम आवश्यक अन्न प्राप्त कराते हैं।

    भावार्थ

    पितर बल व प्राणशक्ति सम्पन्न हैं, उनकी वाणी में रस है। वे तेजस्विता व ज्ञान की दीप्तिवाले हैं। शत्रुओं के लिए घोर व क्रूर हैं-काम, क्रोध आदि शत्रुओं के विनाश में दया नहीं करते। कल्याण व सुख को प्राप्त करानेवाले हैं। हम इनके लिए अन्न प्रास कराते हैं और इनका सत्कार करते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (पितरः) हे पितरो! (वः) आप की (ऊर्जे) बलशक्ति तथा प्राणनशक्ति की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आप को नम्रभाव से प्राप्त होते हैं। (पितरः) हे पितरो! (वः) आप के (रसाय) जीवनीय आनन्द रस की प्राप्ति के लिए (नमः) हम आप को नम्रभाव से प्राप्त होते हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Homage and salutations to you, parents and parental seniors, for energy. Homage to you, parents and parental seniors, for the beauty, pleasure and flavour of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Homage, O Fathers, to your refreshment: homage, O Fathers, to your sap.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O elders, we present you grain etc. for the sake of your vigour, O fore-fathers, we present you grain etc. for the sake of your palatation.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    O fathers, all honor to you for the nourishing food. O fathers, all respect to you for the medicinal juices or extracts.

    Footnote

    (81-85) The verses teach the young ones how they should be respectful to their elders And tolerate all their frownings and terrible moods. There goes the proverb-Mother is cruel to be kind.]

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८१−(नमः) सत्करणम् (वः) युष्मभ्यम् (पितरः) हे पित्रादिपालकज्ञानिनः (ऊर्जे) क्रियार्थोपपदस्य चकर्मणि स्थानिनः। पा० २।३।१४। तुमुनः कर्मणि चतुर्थी। ऊर्जं पराक्रमं प्राप्तुम् (रसाय) ज्ञानरसौषधिरसदुग्धजलविद्यादिरसान् प्राप्तुम्। अन्यद् गतम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top