अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 21
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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अपू॒पवा॒नन्न॑वांश्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ ये दे॒वानां॑हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒पू॒पऽवा॑न् । अन्न॑ऽवान् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥४.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
अपूपवानन्नवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे ये देवानांहुतभागा इह स्थ ॥
स्वर रहित पद पाठअपूपऽवान् । अन्नऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥४.२१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
यजमान के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अपूपवान्) अपूपों [शुद्धपके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (अन्नवान्) अन्न [जौ, चावल, गेहूँ, उरद आदि]वाला (चरुः) चरु... [मन्त्र १६] ॥२१॥
भावार्थ
मन्त्र १६ के समान है॥२१॥
टिप्पणी
२१−(अन्नवान्) अदनीयपदार्थयुक्तः। यवव्रीहिगोधूममाषादियुक्तः। अन्यत्पूर्ववत्-म० १६ ॥
विषय
यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन
पदार्थ
१. यज्ञों को करनेवाला पुरुष सदा यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन ही करता है। वह प्रभु से यही प्रार्थना करता है कि (इह) = यहाँ-हमारे घरों में (चरु:) = चरणीय-भक्षणीय-भोजन (आसीदतु) = हमें प्राप्त हो। यह भोजन (अपूपवान्) = [न पूयते न विशीर्यते] दुर्गन्धित रोटी से युक्त न हो तथा (क्षीरवान्) = दूध से युक्त हो, इसी प्रकार यह भोजन (दधिवान्) = दहीवाला हो। (द्रपस्वान्) = [diluted curd] छाछ आदिवाला हो। (घृतवान) = मांसवान् [leshy part of fruits]-घृत से तथा फलों के गूदे से युक्त हो। (अन्नवान्-मधुमान्) = अन्नवाला हो तथा शहदवाला हो। (रसवान-अपवान्) = रस से युक्त हो तथा जलोंवाला हो। ये ही हमारे भोज्यद्रव्य हों। २. इन उत्तम सात्विक भोजनों को करते हुए हम उन सत्पुरुषों के (यजामहे) = संग को प्राप्त हों जो (लोककृत:) = प्रकाश फेलानेवाले हैं-ज्ञानमार्ग को दिखलानेवाले हैं। (पथिकृतः) = कर्त्तव्यपथ का प्रतिपादन करते हैं और (वे) = जो (इह) = यहाँ-जीवन में (देवानां हुतभागा: स्थ) = देवों के हुत का सेवन करनेवाले हैं, अर्थात् यज्ञशील हैं और यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले हैं।
भावार्थ
हमारा भोजन सात्त्विक हो और संग ज्ञानी, यज्ञशील पुरुषों के साथ हो।
भाषार्थ
(अपूपवान्) पूड़ों समेत, और (अन्नवान्) विविध अन्नों समेत (चरुः) भात आदि (इह) इस घर में, प्राजापत्ययाजी के जीवन-यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् भी (आ सीदतु) विद्यमान रहे, शेष पूर्ववत्।
टिप्पणी
[अन्नवान्=वेदों में कई प्रकार के अन्नों का वर्णन है। यथा—ब्रीहयः=चावल, यवाः=जौं, माषाः=उड़द, तिलाः=तिल, मुद्गाः=मूंग, खल्वाः=चने, प्रियङ्गवः=कंगुनी, अणवः=सूक्ष्म चावल, श्यामाकाः=सांक या समाः नीवाराः=बिना बोए उत्पन्न होनेवाला चावल, गोधूमाः=गेहूँ, मसूराः=मसूर, मसर (यजु० १८.१२)। इसी प्रकार कृष्टपच्याः=खेतों में पके हुए अन्न, तथा अकृष्टपच्याः=जंगलों में पके अन्न (यजुः १८.१४)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Let the holy vessel full of delicacies prepared with butter and food and food grains be here on the vedi. O divine performers of yajna for the divinities, benefactors of the world and path makers of humanity, we invoke and adore you who stay with us here and partake of our offerings.
Translation
Rich in cakes, rich in food, let the dish etc. etc,
Translation
Let the preparation enriched with Apupas and grains rest here.. We...present here.
Translation
Enriched with cake and cereals, let abundant food be stored in this world. We worship the benefactors of humanity, and the exhibitors of the path of righteousness, who amongst the sages deserve to partake of these meals.
Footnote
मांसं माननं वा मानसं मनोऽस्मिम्त्सदितोति वा, निरू० ४-३१ मननसाधकेन बुद्धिवर्धकवस्तुना युक्त:I The word Mansa does not here mean flesh, but sweet, juicy fruits, almonds, walnuts. The Vedas denounce the eating of flesh.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२१−(अन्नवान्) अदनीयपदार्थयुक्तः। यवव्रीहिगोधूममाषादियुक्तः। अन्यत्पूर्ववत्-म० १६ ॥
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