अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 86
ऋषिः - पितरगण
देवता - चतुष्पदा ककुम्मती उष्णिक्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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येऽत्र॑ पि॒तरः॑पि॒तरो॒ येऽत्र॑ यू॒यं स्थ यु॒ष्मांस्तेऽनु॑ यू॒यं तेषां॒ श्रेष्ठा॑ भूयास्थ॥
स्वर सहित पद पाठये । अत्र॑ । पि॒तर॑: । पि॒तर॑: । ये । अत्र॑ । यू॒यम् । स्थ । यु॒ष्मान् । ते । अनु॑ । यू॒यम् । तेषा॑म् । श्रेष्ठा॑: । भू॒या॒स्थ॒ ॥४.८६॥
स्वर रहित मन्त्र
येऽत्र पितरःपितरो येऽत्र यूयं स्थ युष्मांस्तेऽनु यूयं तेषां श्रेष्ठा भूयास्थ॥
स्वर रहित पद पाठये । अत्र । पितर: । पितर: । ये । अत्र । यूयम् । स्थ । युष्मान् । ते । अनु । यूयम् । तेषाम् । श्रेष्ठा: । भूयास्थ ॥४.८६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (अत्र) यहाँ (पितरः) पितर [पालक ज्ञानी] हैं, (ये) जो (यूयम्) तुम (अत्र) यहाँ पर (पितरः)पितर (स्थ) हो, (ते) वे लोग (युष्मान् अनु) [उन] तुम्हारे अनुकूल होवें, और (यूयम्) तुम (तेषाम्) उन के बीच (श्रेष्ठाः) श्रेष्ठ (भूयास्थ) होओ ॥८६॥
भावार्थ
श्रेष्ठ ज्ञानी पितरलोग मिलकर संसार का उपकार करें, जिन के अनुग्रह से सब मनुष्य सचेत और श्रेष्ठहोवें ॥८६-८७॥
टिप्पणी
८६−(ये) (अत्र)अस्मिन् संसारे (पितरः) पालका ज्ञानिनः (यूयम्) (स्थ) भवथ (युष्मान्) पितॄन् (ते) प्रसिद्धाः (अनु) अनुकूल्य (यूयम्) (तेषाम्) तेषां मध्ये (श्रेष्ठाः)प्रशस्यतमाः (भूयास्थ) तस्य थनादेशः। भूयास्त ॥
विषय
पितर पितर हों, हम श्रेष्ठ बनें
पदार्थ
१. (ये) = जो (अत्र) = यहाँ (पितरः) = पितर हैं, (ये यूयम्) = जो आप (अत्र) = यहाँ (पितरः स्थ) = पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त हो, जो (युष्मान् अनु) = आपका अनुसरण करनेवाले हैं। (यूयम्) = आप (तेषाम्) = उन सब पितरों में (श्रेष्ठाः भूयास्थ) = श्रेष्ठ हैं, अर्थात् पितरों में वे पितर जो साधना करके पालनात्मक कार्यों में प्रवृत्त हैं, वे श्रेष्ठ हैं। २. (ये) = जो (इह) = यहाँ (पितर:) = पितर (जीवा:) = जीवनशक्ति से परिपूर्ण हैं। (इह) = यहाँ उनके समीप (वयं स्म:) = हम होते हैं। (ते) = वे सब पितर (अस्मान् अनु) = हमें अनुकूलता से प्राप्त होते हैं। (वयम्) = हम (तेषाम्) = उनके ही बन जाते हैं उनके प्रति अपना अर्पण करते हैं और इसप्रकार हम (श्रेष्ठाः भूयास्म) = श्रेष्ठ हों।
भावार्थ
पितर सचमुच पितर हों-पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त हों। हम उनके समीप रहकर श्रेष्ठ जीवनवाले बनें।
भाषार्थ
(अत्र) इस भूमि पर (ये) जो (पितरः) हम पितर हैं, और (पितरः) हे पितरो! (अत्र) इस भूमि में (ये) जो (यूयम्) तुम (स्थ) हो, (ते) वे हम पितर (युष्मान् अनु) तुम्हारे अनुकूल रहें, और (यूयम्) तुम (तेषाम्) उन सब पितरों में (श्रेष्ठाः) श्रेष्ठ (भूयास्थ) बनो।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
All those pitaras that are and have been here on earth, and all of you, pitaras that are here right now, may they, be in harmony with you, and may you all be in harmony with them, and the best of them, and stay so too.
Translation
They who are there O Fathers - Fathers there are ye - (be) they after you; may ye be the best of them.
Translation
Let us be full of respect amongst the elders who are here and by whose guard and guidance we are alive. Let these elders be in accordance with us.
Translation
O elders who are here. Other elders are also there. You stay here. The others may be lower thou ye. You may be the most excellent of these.
Footnote
A son wishes his own fore-fathers to the most superior to all others, this is not out of jealousy, but of envy.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८६−(ये) (अत्र)अस्मिन् संसारे (पितरः) पालका ज्ञानिनः (यूयम्) (स्थ) भवथ (युष्मान्) पितॄन् (ते) प्रसिद्धाः (अनु) अनुकूल्य (यूयम्) (तेषाम्) तेषां मध्ये (श्रेष्ठाः)प्रशस्यतमाः (भूयास्थ) तस्य थनादेशः। भूयास्त ॥
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