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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 9
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    पूर्वो॑अ॒ग्निष्ट्वा॑ तपतु॒ शं पु॒रस्ता॒च्छं प॒श्चात्त॑पतु॒ गार्ह॑पत्यः।द॑क्षिणा॒ग्निष्टे॑ तपतु॒ शर्म॒ वर्मो॑त्तर॒तो म॑ध्य॒तोअ॒न्तरि॑क्षाद्दि॒शोदि॑शो अग्ने॒ परि॑ पाहि घो॒रात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पूर्व॑: । अ॒ग्नि: । त्वा॒ । त॒प॒तु॒ । शम‌् । पु॒रस्ता॑त् । शम् । प॒श्चात् । त॒प॒तु॒ । गार्ह॑ऽपत्य: । द॒क्षि॒ण॒ऽअ॒ग्नि: । ते॒ । त॒प॒तु॒ । शर्म॑ । वर्म॑ । उ॒त्त॒र॒त: । म॒ध्य॒त: । अ॒न्तर‍ि॑क्षात् । दि॒श:ऽदि॑श: । अ॒ग्ने॒ । परि॑ । पा॒हि॒। घो॒रात् ॥४.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पूर्वोअग्निष्ट्वा तपतु शं पुरस्ताच्छं पश्चात्तपतु गार्हपत्यः।दक्षिणाग्निष्टे तपतु शर्म वर्मोत्तरतो मध्यतोअन्तरिक्षाद्दिशोदिशो अग्ने परि पाहि घोरात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पूर्व: । अग्नि: । त्वा । तपतु । शम‌् । पुरस्तात् । शम् । पश्चात् । तपतु । गार्हऽपत्य: । दक्षिणऽअग्नि: । ते । तपतु । शर्म । वर्म । उत्तरत: । मध्यत: । अन्तर‍िक्षात् । दिश:ऽदिश: । अग्ने । परि । पाहि। घोरात् ॥४.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    सत्य मार्ग पर चलने का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे विद्वान् !] (पूर्वः) पूर्ववाली (अग्निः) अग्नि (त्वा) तुझे (शम्) आनन्द के साथ (पुरस्तात्)आगे से (तपतु) प्रतापी [ऐश्वर्यवान्] करे, (गार्हपत्यः) गृहपति की अग्नि [तुझे] (शम्) सुख के साथ (पश्चात्) पीछे से (तपतु) प्रतापी करे। (दक्षिणाग्निः)दक्षिणीय अग्नि (ते) तेरे लिये (शर्म) शरण और (वर्म) कवच होकर (तपतु) प्रतापीकरे ॥(अग्ने) हे सर्वव्यापक परमात्मन् ! (उत्तरतः) ऊपर से (मध्यतः) मध्य से, (अन्तरिक्षात्) आकाश से और (दिशोदिशः) प्रत्येक दिशा से [उस उपासक को] (घोरात्)घोर [भयानक कष्ट] से (परि) सर्वथा (पाहि) बचा ॥९॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य भौतिक यज्ञद्वारा आत्मिक यज्ञ सिद्ध करके समर्थ होते हैं, परमात्मा उनकी सर्वथा रक्षा करताहै ॥९॥

    टिप्पणी

    ९−(पूर्वः) पूर्वदिशि दीप्यमानः (अग्निः) यज्ञाग्निः (त्वा) (तपतु) तपऐश्वर्ये, अन्तर्गतण्यर्थः। ऐश्वर्यवन्तं प्रतापिनं करोतु (शम्) सुखेन (पुरस्तात्) अग्रतः (शम्) (पश्चात्) (तपतु) (गार्हपत्यः) गृहपतिनासंयुक्तोऽग्निः (ते) तुभ्यम् (शर्म) शरणरूपः सन् (वर्म) कवचरूपः सन् (उत्तरतः)उपरिदेशात् (मध्यतः) मध्यदेशात् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (दिशोदिशः) प्रत्येकदिशःसकाशात् (अग्ने) हे सर्वव्यापक परमात्मन् (परि) सर्वथा (पाहि) रक्ष (घोरात्) घुरभीमार्थशब्दयोः-अच्। भयानकात् कष्टात् ॥

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    विषय

    'पूर्व, गार्हपत्य व दक्षिण' अग्रियाँ

    पदार्थ

    १. ('पूर्वः अग्निः') = तेरा पूरण करनेवाला वह आचार्यरूप अग्नि (त्वा) = तुझे (शम्) = शान्तिकर होता हुआ (पुरस्तात् तपतु) = सबसे प्रथम दीस जीवनवाला बनाए। (पश्चात्) = इसके बाद (गार्हपत्यः) = पितारूप गार्हपत्य अग्नि (शम्) = शान्तिकर होता हुआ (तपतु) = तेरे जीवन को दीप्त करे। तेरे पिता तुझे अपनी प्ररेणा व उदाहरण से एक सद्गृहस्थ बनानेवाले हों। अब वानप्रस्थ में यह (दक्षिणाग्नि:) = मातृरूप दक्षिणाग्नि-सबके अन्दर मातृभावना (तपतु) = तुझे दीप्त जीवनवाला बनाए। (शर्म) = यह मातृभावना तुझे सुखी करे। यह भावना (वर्म) = तेरा कवच बने। इस भावना के द्वारा तू चरित्रहीनता में जाने से बचा रहे। २. हे (अग्ने) = परमात्मन्! आप (उत्तरत:) = उत्तर से, (मध्यतः) = मध्य से, (अन्तरिक्षात्) = अन्तरिक्षदेश से, (दिशः दिश:) = प्रत्येक दिशा से (घोरात् परि पाहि) = घोर, भयंकर पाप कर्मों से बचानेवाले होइए। आपका स्मरण व उपासन हमें अशुभ कर्मों में फंसने से बचाए।

    भावार्थ

    आचार्य, पिता व मातृभावना मुझे क्रमशः ब्रह्मचर्य, गृहस्थ व वानप्रस्थ में दीप्त जीवनवाला बनाएँ। यह मातृभावना मुझे सुखी करे और मेरा कवच बने-मुझे पतन से बचानेवाली हो। प्रभुस्मरण मुझे संन्यस्त दशा में सर्वतः घोर कर्मों से बचानेवाला हो।

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    भाषार्थ

    हे मनुष्य! (पूर्वः अग्निः) नासिक्य प्राणाग्नि (पुरस्तात्) पूर्व भाग से (त्वा) तुझे (तपतु) तपाए, और इस प्रकार तेरे मल को दूर कर (शम्) तुझे शान्ति प्रदान करे; (गार्हपत्यः) गृहपति बनाने वाली वीर्याग्नि (पश्चात्) तेरे पश्चिम१ भाग से तुझे (तपतु) तपाए, इस प्रकार तेरे मल को दूर कर (शम्) तुझे शान्ति प्रदान करे; इसी प्रकार (दक्षिणाग्निः) पाचकाग्नि (तपतु) तुझे तपाए, और (ते) तेरे लिए यह अग्नि (शर्म) गृह का सुख देवे, तथा (वर्म) तेरे लिए कवचरूप बने। (अग्ने) अग्निरूप में हे तीनों अग्नियो! तुम (उत्तरतः) उत्तर से, (मध्यतः) मध्य से, (अन्तरिक्षात्) अन्तरिक्ष से, (दिशः दिशः) तथा शरीर की प्रत्येक दिशा से इस मनुष्य की (घोरात्) घोर रोगों से (परि पाहि) पूर्णतया रक्षा करो।

    टिप्पणी

    [पूर्वः अग्निः=नासिक्य प्राण फेफड़ों के गन्ध CO2 को दूर करता, तथा रक्त में मिल कर उसके नीलपन को दूर कर रक्त के लालकणों का निर्माण करता है। पाचकाग्नि के स्वस्थ रहते नियमपूर्वक शौचक्रिया होने से रोग नहीं होने पाते। शर्म=गृह (निघं० ३.४), तथा सुख (निघं० ३.६)। तथा उत्तरतः=शिरोभाग; अन्तरिक्षात्=छाती, जिस के फेफड़ों में हवा भरी रहती, तथा जिसमें रहता हुआ हृदय निशिदिन शरीर के अङ्ग-प्रत्यङ्ग पर रक्त की वर्षा करता रहता है। मध्यतः=छाती से नीचे और टांगों से ऊपर का भाग, अर्थात् उदर।] [१. शरीर के ऊपर के हिस्से को "पूर्वकाय" कहते हैं। इस लिए शरीर का अधोभाग "पश्चात्-काय" है, जो कि वीर्याग्नि का स्थान है। पूर्वकाय=The upper part of body of man (आप्टे)। पश्चार्धः=The hinder part of the body (आप्टे)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Let Purvagni heat, shine and temper you to peace and perfection from the front. Let Garhapatyagni shine and temper you to sobriety, peace and perfection from behind, and let Dakshinagni temper and sober you to peace, perfection and protective fearlessness from above, middle and the space on all sides from all directions. O Agni, leading light of life, pray protect him all round against the violence, cruelty, awe and terrors of existence.

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    Translation

    Let the eastern fire burn thee happily in front; let the householder’s fire burn happily behind; tet the southern fire burn refuge, defense for thee; from the north, from the midst, from the atmosphere, from each quarter, O Agni, protect him round about from what is terrible.

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    Translation

    Let the first fire make you auspiciously ripe from the east, let the house-hold fire make you mature from the west with happiness, let the Dakshinagni make you ripe in all respect like happiness and protection from north, middle and atmosphere. Let this fire preet you from calamities on all sides.

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    Translation

    O man, may God shine for thy welfare and peace in the East; may God shine for thy welfare in the West. May God shine as thy Well-wisher, and Protector! O God, guard me from dire calamity, from the North and Centre, from air’s mid-region, on all sides!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ९−(पूर्वः) पूर्वदिशि दीप्यमानः (अग्निः) यज्ञाग्निः (त्वा) (तपतु) तपऐश्वर्ये, अन्तर्गतण्यर्थः। ऐश्वर्यवन्तं प्रतापिनं करोतु (शम्) सुखेन (पुरस्तात्) अग्रतः (शम्) (पश्चात्) (तपतु) (गार्हपत्यः) गृहपतिनासंयुक्तोऽग्निः (ते) तुभ्यम् (शर्म) शरणरूपः सन् (वर्म) कवचरूपः सन् (उत्तरतः)उपरिदेशात् (मध्यतः) मध्यदेशात् (अन्तरिक्षात्) आकाशात् (दिशोदिशः) प्रत्येकदिशःसकाशात् (अग्ने) हे सर्वव्यापक परमात्मन् (परि) सर्वथा (पाहि) रक्ष (घोरात्) घुरभीमार्थशब्दयोः-अच्। भयानकात् कष्टात् ॥

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