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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 22
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    अ॑पू॒पवा॒न्मधु॑मांश्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पू॒पऽवा॑न् । मधु॑ऽमान् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥४.२२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपूपवान्मधुमांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे येदेवानां हुतभागा इह स्थ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपूपऽवान् । मधुऽमान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥४.२२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 22
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    हिन्दी (3)

    विषय

    यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपूपवान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (मधुमान्) मधु [मक्खियों कारस]वाला (चरुः) चरु... [मन्त्र १६] ॥२२॥

    भावार्थ

    मन्त्र १६ के समान है॥२२॥

    टिप्पणी

    २२−(मधुमान्) माक्षिकरसयुक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

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    विषय

    यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन

    पदार्थ

    १. यज्ञों को करनेवाला पुरुष सदा यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन ही करता है। वह प्रभु से यही प्रार्थना करता है कि (इह) = यहाँ-हमारे घरों में (चरु:) = चरणीय-भक्षणीय-भोजन (आसीदतु) = हमें प्राप्त हो। यह भोजन (अपूपवान्) = [न पूयते न विशीर्यते] दुर्गन्धित रोटी से युक्त न हो तथा (क्षीरवान्) = दूध से युक्त हो, इसी प्रकार यह भोजन (दधिवान्) = दहीवाला हो। (द्रपस्वान्) = [diluted curd] छाछ आदिवाला हो। (घृतवान) = मांसवान् [leshy part of fruits]-घृत से तथा फलों के गूदे से युक्त हो। (अन्नवान्-मधुमान्) = अन्नवाला हो तथा शहदवाला हो। (रसवान-अपवान्) = रस से युक्त हो तथा जलोंवाला हो। ये ही हमारे भोज्यद्रव्य हों। २. इन उत्तम सात्विक भोजनों को करते हुए हम उन सत्पुरुषों के (यजामहे) = संग को प्राप्त हों जो (लोककृत:) = प्रकाश फेलानेवाले हैं-ज्ञानमार्ग को दिखलानेवाले हैं। (पथिकृतः) = कर्त्तव्यपथ का प्रतिपादन करते हैं और (वे) = जो (इह) = यहाँ-जीवन में (देवानां हुतभागा: स्थ) = देवों के हुत का सेवन करनेवाले हैं, अर्थात् यज्ञशील हैं और यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हमारा भोजन सात्त्विक हो और संग ज्ञानी, यज्ञशील पुरुषों के साथ हो।

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    भाषार्थ

    प्राजापत्ययाजी के जीवन-यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् भी (इह) इस घर में (अपूपवान्) पूड़ों समेत और (मधुमान्) शहद तथा मधुर वस्तुओं समेत (चरुः) भक्षणीय भात आदि (आ सीदतु) विद्यमान रहे, शेष पूर्ववत्।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Let the holy vessel full of delicacies prepared with butter and honey be here on the vedi. O divine performers of yajna for the divinities, benefactors of the world and path makers of humanity, we invoke and adore you who stay with us here and partake of our offerings.

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    Translation

    Rich in cakes, rich in honey, let the dish etc. etc.

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    Translation

    Let the preparation enriched with Apupas and honey rest here. We- -present here,

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    Translation

    Enriched with cake and mead let abundant food be stored in this world. We worship the benefactors of humanity, and the exhibitors of the path of righteousness, who amongst the sages deserve to partake of these meals.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २२−(मधुमान्) माक्षिकरसयुक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

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