अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 87
ऋषिः - पितरगण
देवता - चतुष्पदा शङकुमती उष्णिक्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
0
य इ॒ह पि॒तरो॑जी॒वा इ॒ह व॒यं स्मः॑। अ॒स्माँस्तेऽनु॑ व॒यं तेषां॒ श्रेष्ठा॑ भूयास्म ॥
स्वर सहित पद पाठये । इ॒ह । पि॒तर॑: । जी॒वा: । इ॒ह । व॒यम् । स्म॒: । अ॒स्मान् । ते । अनु॑ । व॒यम् । तेषा॑म् । श्रेष्ठा॑: । भू॒या॒स्म॒ ॥४.८७॥
स्वर रहित मन्त्र
य इह पितरोजीवा इह वयं स्मः। अस्माँस्तेऽनु वयं तेषां श्रेष्ठा भूयास्म ॥
स्वर रहित पद पाठये । इह । पितर: । जीवा: । इह । वयम् । स्म: । अस्मान् । ते । अनु । वयम् । तेषाम् । श्रेष्ठा: । भूयास्म ॥४.८७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (इह) यहाँ पर (पितरः) पितर [पालक ज्ञानी] हैं, [उन के अनुग्रह से] (वयम्) हम (इह) यहाँ पर (जीवाः) जीवते हुए [सचेत] (स्मः) हैं, (ते) वे लोग (अस्मान् अनु) हमारे अनुकूलहोवें और (तेषाम्) उनके बीच (वयम्) हम (श्रेष्ठाः) श्रेष्ठ (भूयास्म) होवें ॥८७॥
भावार्थ
श्रेष्ठ ज्ञानी पितरलोग मिलकर संसार का उपकार करें, जिन के अनुग्रह से सब मनुष्य सचेत और श्रेष्ठहोवें ॥८६-८७॥
टिप्पणी
८७−(जीवाः) जीवनवन्तः। सचेतसः (इह) (वयम्) (स्मः) भवामः (ते)प्रसिद्धाः (अनु) अनुसृत्य। अनुकूल्य (वयम्) अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
पितर पितर हों, हम श्रेष्ठ बनें
पदार्थ
१. (ये) = जो (अत्र) = यहाँ (पितरः) = पितर हैं, (ये यूयम्) = जो आप (अत्र) = यहाँ (पितरः स्थ) = पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त हो, जो (युष्मान् अनु) = आपका अनुसरण करनेवाले हैं। (यूयम्) = आप (तेषाम्) = उन सब पितरों में (श्रेष्ठाः भूयास्थ) = श्रेष्ठ हैं, अर्थात् पितरों में वे पितर जो साधना करके पालनात्मक कार्यों में प्रवृत्त हैं, वे श्रेष्ठ हैं। २. (ये) = जो (इह) = यहाँ (पितर:) = पितर (जीवा:) = जीवनशक्ति से परिपूर्ण हैं। (इह) = यहाँ उनके समीप (वयं स्म:) = हम होते हैं। (ते) = वे सब पितर (अस्मान् अनु) = हमें अनुकूलता से प्राप्त होते हैं। (वयम्) = हम (तेषाम्) = उनके ही बन जाते हैं उनके प्रति अपना अर्पण करते हैं और इसप्रकार हम (श्रेष्ठाः भूयास्म) = श्रेष्ठ हों।
भावार्थ
पितर सचमुच पितर हों-पालनात्मक कर्मों में प्रवृत्त हों। हम उनके समीप रहकर श्रेष्ठ जीवनवाले बनें।
भाषार्थ
(इह) इस भूमि पर (ये) जो (जीवाः) जीवित (पितरः) पितर हैं, और जो (वयम्) हम पितर (इह) इस भूमि पर (स्मः) हैं, (ते) वे पितर (अस्मान् अनु) हमारे अनुकूल रहें; और (वयम्) हम (तेषाम्) उन सब पितरों में (श्रेष्ठाः) श्रेष्ठ (भूयास्म) बनें।
टिप्पणी
[मन्त्र ४(८६) में दो “अत्र” शब्दों के अर्थ ह्विटनी ने किये हैं "There"; यह सूचित करने के लिए कि मन्त्र में परलोकगत पितरों का वर्णन है। “अत्र” का अर्थ होता है "Here"। इसी के अनुसार मन्त्रार्थ किया गया है। मन्त्र ४(८६) और ४(८७) में सामाजिक सुधार का निर्देश हुआ है। पृथक्-पृथक् परिवारों, पृथक्-पृथक् समाजों और राष्ट्रों में रहनेवाले पितरों अर्थात् बुजुर्गों के पारस्परिक व्यवहारों में अनुकूलता, और प्रत्येक वर्ग को अन्यवर्गों की अपेक्षा अपने-आप को श्रेष्ठ बनाने का आदेश मन्त्रों में दिया है। बुजुर्गों में परस्पर अनुकूलता हो जाने पर, और अपने आप को सद्गुणों में सर्वश्रेष्ठ बनाने की प्रवृत्ति हो जाने पर प्रत्येक वर्ग के बच्चों में भी ये दोनों प्रवृत्तियों सुतरां बद्धमूल हो जाती हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
All those pitaras that are and have been here on earth, and all of us alive here right now, may they be in harmony with us, and may we be in harmony with them, and the best of them, and stay so too.
Translation
They who are here, O Fathers — alive here are we - (be) they after us; may we be the best of them.
Translation
Let us enkindle this refulgent fire which is rich in splendor and which does not fade. That whatever is its glorious light, becomes luminous in the sun. This fire bestows grain to them who pray God.
Translation
O fathers, here are (other) men. We are also here in this world. They, may be lower than we. We may be the most excellent of them all.
Footnote
The offspring also wishes to be the most superior to all others in the same envious spirit, which is the right course for progress in life.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
८७−(जीवाः) जीवनवन्तः। सचेतसः (इह) (वयम्) (स्मः) भवामः (ते)प्रसिद्धाः (अनु) अनुसृत्य। अनुकूल्य (वयम्) अन्यत् पूर्ववत् ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal