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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 39
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - पुरोविराट् आस्तार पङ्क्ति छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    पु॒त्रंपौत्र॑मभित॒र्पय॑न्ती॒रापो॒ मधु॑मतीरि॒माः। स्व॒धां पि॒तृभ्यो॑ अ॒मृतं॒दुहा॑ना॒ आपो॑ दे॒वीरु॒भयां॑स्तर्पयन्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒त्रम् । पौत्र॑म् । अ॒भि॒ऽत॒र्पय॑न्ती: । आप॑: । मधु॑ऽमती: । इ॒मा: । स्व॒धाम् । पि॒तृऽभ्य॑: । अ॒मृत॑म् । दुहा॑ना: । आप॑: । उ॒भया॑न् । त॒र्प॒य॒न्तु॒ ॥ ४.३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुत्रंपौत्रमभितर्पयन्तीरापो मधुमतीरिमाः। स्वधां पितृभ्यो अमृतंदुहाना आपो देवीरुभयांस्तर्पयन्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुत्रम् । पौत्रम् । अभिऽतर्पयन्ती: । आप: । मधुऽमती: । इमा: । स्वधाम् । पितृऽभ्य: । अमृतम् । दुहाना: । आप: । उभयान् । तर्पयन्तु ॥ ४.३९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 39
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    गोरक्षा का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमाः) यह (मधुमतीः)मधुर रस [मीठे दूध घी] वाली (आपः) प्राप्तियोग्य [गौएँ] (पुत्रम्) पुत्र और (पौत्रम्) पौत्र को (अभितर्पयन्तीः) सब ओर से तृप्त करती हुई होवें और (पितृभ्यः) पितरों को (स्वधाम्) स्वधारण शक्ति और (अमृतम्) अमरण [जीवन] (दुहानाः) देती हुयीं, (देवीः) उत्तम गुणवाली (आपः) प्राप्तियोग्य [गौएँ] (उभयान्) दोनों पक्षों [स्त्री-पुरुषों] को (तर्पयन्तु) तृप्त करें ॥३९॥

    भावार्थ

    मनुष्यों को गौ आदिउपकारी पशुओं की सदा रक्षा करनी चाहिये, जिस से बालक युवा और वृद्ध स्त्री-पुरुषों का पालन होता रहे ॥३९॥

    टिप्पणी

    ३९−(पुत्रम्) आत्मजम् (पौत्रम्) पुत्रस्य पुत्रम् (अभितर्पयन्तीः) सर्वतः संतोषयन्त्यः (आपः) आप्लृ व्याप्तौ-क्विप्। आपःपदनाम-निघ० ५।३। आपः=आपनाः, आपनानि च-निरु० १२।३७। प्राप्तव्या गावः (मधुमतीः)मधुरसेन घृतदुग्धादिना युक्ताः (इमाः) दृश्यमानाः (स्वधाम्) आत्मधारणशक्तिम् (पितृभ्यः) पालकेभ्यो विद्वद्भ्यः (अमृतम्) अमरणम्। जीवनम् (दुहानाः)प्रयच्छन्त्यः (आपः) प्राप्तव्याः गावः (देवीः) देव्यः। शुभगुणवत्यः (उभयान्)उभयपक्षान् स्त्रीपुरुषान् (तर्पयन्तु) तोषयन्तु। वर्धयन्तु ॥

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    विषय

    सन्तान पालन व वृद्धपूजन

    पदार्थ

    १. (पुत्रं पौत्रम् अभितर्पयन्ती:) = पुत्रों व पौत्रों को प्रीणित करती हुई-उनके लिए सब आवश्यक पदार्थों को प्राप्त कराने के द्वारा उन्हें सदा प्रसन्न रखती हुई (इमाः आप:) = ये प्रजाएँ (मधमती:) = अतिशयेन मधुर जीवनवाली होती हैं। सन्तानों के उत्तम होने पर माता-पिता का जीवन तो आनन्दमय होता ही है। २. (पितृभ्यः) = अपने बड़े माता-पिता के लिए (स्वधाम्) = अन्नों को व (अमृतम्) = नीरोगता को (दुहाना:) = प्रपूरित करती हुई (देवीः आप:) = प्रकाशमय जीवनवाली स्वाध्यायशील प्रजाएँ (उभयान्) = एक और पुत्र-पौत्रों को तथा दूसरी ओर माता-पिता आदि बड़ों को (तर्पयन्तु) = प्रीणित करनेवाली हों।

    भावार्थ

    युवा गृहस्थों का कर्तव्य है कि वे सन्तानों का समुचित पालन व शिक्षण करें तथा बड़ों की भोजनादि की व्यवस्था को ठीक रखते हुए उन्हें नीरोग बनाएँ। यही जीवन को मधुर व प्रकाशमय बनाने का मार्ग है।

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    भाषार्थ

    (पुत्रं पौत्रम्) पुत्र और पौत्र को (अभितर्पयन्तीः) तृप्त करते हुए (इमाः) ये (मधुमतीः) मधुर (आपः) जल [४(३७)], (पितृभ्यः) माता-पिता के लिए, जो कि संन्यासी या वानप्रस्थ हो गये हैं, (स्वधाम्) आत्म-धारण-पोषण करनेवाला, अन्न, तथा (अमृतम्) मोक्ष (दुहानाः) प्रदान करते हुए (आपः देवीः) ये दिव्य जल (उभयान्) दोनों को—अर्थात् पितरों तथा आनेवाले पुत्र पौत्रों को (तर्पयन्तु) तृप्त करते रहें।

    टिप्पणी

    [अभिप्राय यह कि आश्रम के शुद्ध पवित्र जल द्वारा आश्रमोचित शुद्ध स्वधा=अन्न उपजे, और आश्रम-वासी अन्न और जल की दृष्टि से निश्चिन्त होकर, योगाभ्यास द्वारा मोक्ष का लाभ करें। तथा उनके पदानुगामी होकर उनके पुत्र-पौत्र भी इन आश्रमों में आकर मोक्षमार्गी हो सकें।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    These honey sweet waters, milk, honey and water leading to noble action, pleasing, satisfying and energising children and grand children, giving immortal energy and fulfilment to parents and grand parents, may, we pray, bring total fulfilment and salvation to both parents and children, all past, present and future generatious - divine flow of energy and joy as they are.

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    Translation

    These waters, rich in honey, satisfying son (and) grandson, yielding to the Fathers svadha (and) amrta—let the heavenly waters gratify both sides.

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    Translation

    Let these sweet and pure waters giving satisfaction to sons and grand-sons, and pouring grains and Amrit, the long life for elders both.

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    Translation

    These people, with divine qualities, like pure waters, fully satisfying their sons and grandsons with sweet provisions and providing rich food and pure drinks like nectar to their elders may fully satisfy both the younger’s and the elders.

    Footnote

    [The verse ordains that it is the duty of the noble persons to up bring their progeny and properly look after their elders.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३९−(पुत्रम्) आत्मजम् (पौत्रम्) पुत्रस्य पुत्रम् (अभितर्पयन्तीः) सर्वतः संतोषयन्त्यः (आपः) आप्लृ व्याप्तौ-क्विप्। आपःपदनाम-निघ० ५।३। आपः=आपनाः, आपनानि च-निरु० १२।३७। प्राप्तव्या गावः (मधुमतीः)मधुरसेन घृतदुग्धादिना युक्ताः (इमाः) दृश्यमानाः (स्वधाम्) आत्मधारणशक्तिम् (पितृभ्यः) पालकेभ्यो विद्वद्भ्यः (अमृतम्) अमरणम्। जीवनम् (दुहानाः)प्रयच्छन्त्यः (आपः) प्राप्तव्याः गावः (देवीः) देव्यः। शुभगुणवत्यः (उभयान्)उभयपक्षान् स्त्रीपुरुषान् (तर्पयन्तु) तोषयन्तु। वर्धयन्तु ॥

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