Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 20
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    0

    अ॑पू॒पवा॑न्मां॒सवां॑श्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पू॒पऽवा॑न् । मां॒सऽवा॑न् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥४.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपूपवान्मांसवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे येदेवानां हुतभागा इह स्थ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपूपऽवान् । मांसऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥४.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    यजमान के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अपूपवान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (मांसवान्) मननसाधकपदार्थोंवाला [अर्थात् बुद्धिवर्धक जैसे मीठे फल बादाम, अक्षोट आदिवस्तुओंवाला] (चरुः) चरु... [मन्त्र १६] ॥२०॥

    भावार्थ

    मन्त्र १६ के समान है॥२०॥

    टिप्पणी

    २०−(मांसवान्) अ० ९।६(३)९। मनेर्दीर्घश्च। उ० ३।६४। मन ज्ञाने-स प्रत्ययोदीर्घश्च। मांसं माननं वा मानसं वा मनोऽस्मिन्त्सीदतीति वा-निरु० ४।३। मननसाधकेनबुद्धिवर्धकवस्तुना युक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन

    पदार्थ

    १. यज्ञों को करनेवाला पुरुष सदा यज्ञशिष्ट उत्तम भोजन ही करता है। वह प्रभु से यही प्रार्थना करता है कि (इह) = यहाँ-हमारे घरों में (चरु:) = चरणीय-भक्षणीय-भोजन (आसीदतु) = हमें प्राप्त हो। यह भोजन (अपूपवान्) = [न पूयते न विशीर्यते] दुर्गन्धित रोटी से युक्त न हो तथा (क्षीरवान्) = दूध से युक्त हो, इसी प्रकार यह भोजन (दधिवान्) = दहीवाला हो। (द्रपस्वान्) = [diluted curd] छाछ आदिवाला हो। (घृतवान) = मांसवान् [leshy part of fruits]-घृत से तथा फलों के गूदे से युक्त हो। (अन्नवान्-मधुमान्) = अन्नवाला हो तथा शहदवाला हो। (रसवान-अपवान्) = रस से युक्त हो तथा जलोंवाला हो। ये ही हमारे भोज्यद्रव्य हों। २. इन उत्तम सात्विक भोजनों को करते हुए हम उन सत्पुरुषों के (यजामहे) = संग को प्राप्त हों जो (लोककृत:) = प्रकाश फेलानेवाले हैं-ज्ञानमार्ग को दिखलानेवाले हैं। (पथिकृतः) = कर्त्तव्यपथ का प्रतिपादन करते हैं और (वे) = जो (इह) = यहाँ-जीवन में (देवानां हुतभागा: स्थ) = देवों के हुत का सेवन करनेवाले हैं, अर्थात् यज्ञशील हैं और यज्ञशेष का ही सेवन करनेवाले हैं।

    भावार्थ

    हमारा भोजन सात्त्विक हो और संग ज्ञानी, यज्ञशील पुरुषों के साथ हो।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    प्राजापत्ययाजी के जीवन यज्ञ की समाप्ति के पश्चात् भी (इह) इस घर में (अपूपवान्) पूड़ों समेत और (मांसवान्) मांस समेत (चरुः) चावल, जौं आदि (आ सीदतु) विद्यमान रहें, शेष पूर्ववत्।

    टिप्पणी

    [मांसवान्=मांस का अर्थ पशुहिंसाजन्य मांस है—यह सर्वदा नहीं। मांस का अर्थ फल का गुद्दा भी है। मांस=The fleshy part of a fruit (आप्टे)। तथा रोहणी ओषधि के वर्णन में निम्नलिखित मन्त्र है—“मज्जा मज्ज्ञा सं धीयतां चर्मणा चर्म रोहतु। असृक्ते अस्थि रोहतु मांसं मांसेन रोहतु”॥ (अथर्व० ४.१२.४)।। अर्थात् हे रोगी! रोहणी (लाख, लाक्षा) की मज्जा (marrow) द्वारा तेरी मज्जा का संधान हो, रोहणी ओषधि के चर्म के द्वारा तेरा चर्म रोपित हो, स्वस्थ हो। रोहणी के असृक् तथा अस्थि द्वारा तेरा रक्त तथा तेरी हड्डी स्वस्थ हो। तथा रोहिणी के मांस अर्थात् गुद्दे द्वारा तेरा मांस बढ़े। इस प्रकार मन्त्र में रोहणी ओषधि [जिस से कि लाख बनती है] की मज्जा, चर्म, असृक् अर्थात् रक्त, हड्डी और मांस का वर्णन है। मज्जा=The pith of plants (आप्टे), तथा The marrow of the bones and flesh (आप्टे)। अतः मन्त्र ४(२०) में “मांस” का अर्थ “फल का गुद्दा” प्रतीत होता है। क्योंकि मन्त्रों में मांसभोजी को “पिशाच” कहा है। पिशितं मांसं भोजनार्थमञ्चन्ति प्राप्नुवन्ति इति पिशाचाः।]

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Let the holy vessel full of delicacies prepared with ghrta and cheese and fruit pulp be here on the vedi. O divine performers of yajna for the divinities, benefactors of the world and path makers of humanity, we invoke and adore you who stay with us here and partake of our offerings.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Rich in cakes, rich in flesh, let the dish etc. etc.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Let the preparation enriched with Apupas and the central part of fruit rest here, We...present here.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Enriched with cake and articles developing intellect, let abundant food be stored in this world. We worship the benefactors of humanity, and the exhibitors of the path of righteousness, who amongst the sages deserve to partake of these meals.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(मांसवान्) अ० ९।६(३)९। मनेर्दीर्घश्च। उ० ३।६४। मन ज्ञाने-स प्रत्ययोदीर्घश्च। मांसं माननं वा मानसं वा मनोऽस्मिन्त्सीदतीति वा-निरु० ४।३। मननसाधकेनबुद्धिवर्धकवस्तुना युक्तः। अन्यत् पूर्ववत्-म० १६ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top