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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 75
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    ए॒तत्ते॑प्रततामह स्व॒धा ये च॒ त्वामनु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तत् । ते॒ । प्र॒ऽत॒ता॒म॒ह॒ । स्व॒धा । ये । च॒ । त्वाम् । अनु॑ ॥४.७५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतत्तेप्रततामह स्वधा ये च त्वामनु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतत् । ते । प्रऽततामह । स्वधा । ये । च । त्वाम् । अनु ॥४.७५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 75
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के सन्मान का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रततामह) हे परदादे ! (एतत्) यहाँ (ते) तेरे लिये (स्वधा) अन्न हो, (च) और [उन के लिये भी अन्न हो] (ये) जो (त्वाम् अनु) तेरे साथ हैं ॥७५॥

    भावार्थ

    सन्तानों को चाहिये किबड़ों से आरम्भ करके परदादी परदादा, दादी दादा, माता-पिता आदि मान्यों की अन्न आदिसे सेवा करके उत्तम शिक्षा और आशीर्वाद पावें ॥७५-७७॥

    टिप्पणी

    ७५−(एतत्) अत्र (ते)तुभ्यम् (प्रततामह) तनु विस्तारे-क्त। तत इति सन्ताननाम पितुर्वा पुत्रस्यवा-निरु० ६।६। पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः। पा० ४।२।३६। प्रतत-डामहच्, बाहुलकात्। हे प्रपितामह (स्वधा) अन्नम् (ये) (च) तेभ्यश्च (त्वाम्) (अनु)अनुसृत्य वर्तन्ते ॥

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    विषय

    परदादा, दादा व पिता

    पदार्थ

    १. एक गृहस्थ युवक के परदादा आज से ५० वर्ष पूर्व वानप्रस्थ बने थे, इसी प्रकार इसके दादा २५ वर्ष पूर्व वनस्थ हुए थे। वहाँ वनों में कितने ही अन्य अपने समान वनस्थों के साथ उनका उठना-बैठना व परिचय हो गया था। आज वे अपने घर में आते हैं तो उनके साथियों के आने का भी सम्भव हो ही सकता है। इसके पिता तो अभी समीप भूत में ही वनस्थ हुए हैं। वे अभी इतने परिचित नहीं बना पाये। वे अभी अकेले ही आये हैं। २. इन सबके आने पर यह गृहस्थ उन्हें आदरपूर्वक कहता है कि हे (प्रततामह) = परदादाजी! (एतत्) = यह (ते) = आपके लिए (स्वधा) = अन्न है। च-और उनके लिए भी (स्वधा) = अन्न है, (ये) = जो (त्वाम् अनु) = आपके साथ आये हैं। ३. इसी प्रकार वह दादाजी के लिए भी कहता है कि हे (ततामह) = दादाजी! (एतत्) = यह ते आपके लिए (स्वधा) = अन्न है (च) = और (ये) = जो (त्वाम् अनु) = आपके साथ आये हैं, परन्तु पिताजी के लिए वह इतना ही कहता है कि हे (तत) = पितः। (एतत्) = यह (ते) = आपके लिए (स्वधा) = अन्न है।

    भावार्थ

    हम घर पर पधारे हुए वनस्थ परदादा, दादा व पिताजी के लिए उचित भोजन का परिवेषण करें।

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    भाषार्थ

    (प्र ततामह) हे प्रपितामह! (ते) आपके लिए (एतत्) यह (स्वधा) स्वधान्न है, आत्म-धारण-पोषणकारी अन्न है। (च) और (ये) जो पितर (त्वामनु) आपके बाद के होंगे, उनके लिए भी यह स्वधान्न है।

    टिप्पणी

    [प्रततामह=प्रपितामह। ततामह में “तन्” धातु हैं, जिसका अर्थ है—“विस्तार”। सन्तान सन्तनि में भी “तन्” धातु है। प्रपितामह वंशपरम्परा का विस्तार करते हैं, इसलिए “तन्” का प्रयोग है। त्वामनु=आप के बाद वानप्रस्थ तथा संन्यास में जो गये हैं, या जाएँगे।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Homage of food and reverence, is here, O great grandfather, to you and yours with you.

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    Translation

    Here is the svadha for thee, O great-grandfather and for them that are after thee.

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    Translation

    O living Grand-fathers' father, let this food given to you and those with you be efficacious.

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    Translation

    O Great-grandfather, here is this nourishing food for thee and those who follow thee.

    Footnote

    (75-77) These verses ordain the Patri-yajna of the living elders and not the dead.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७५−(एतत्) अत्र (ते)तुभ्यम् (प्रततामह) तनु विस्तारे-क्त। तत इति सन्ताननाम पितुर्वा पुत्रस्यवा-निरु० ६।६। पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः। पा० ४।२।३६। प्रतत-डामहच्, बाहुलकात्। हे प्रपितामह (स्वधा) अन्नम् (ये) (च) तेभ्यश्च (त्वाम्) (अनु)अनुसृत्य वर्तन्ते ॥

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