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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 77
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - दैवी जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
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    ए॒तत्ते॑ ततस्व॒धा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तत् । ते॒ । त॒त॒ । स्व॒धा ॥४.७७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतत्ते ततस्वधा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतत् । ते । तत । स्वधा ॥४.७७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 77
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    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के सन्मान का उपदेश।

    पदार्थ

    (तत) हे पिता ! (एतत्)यहाँ (ते) तेरे लिये (स्वधा) अन्न हो ॥७७॥

    भावार्थ

    सन्तानों को चाहिये किबड़ों से आरम्भ करके परदादी परदादा, दादी दादा, माता-पिता आदि मान्यों की अन्न आदिसे सेवा करके उत्तम शिक्षा और आशीर्वाद पावें ॥७५-७७॥

    टिप्पणी

    ७७−(तत) म० ७५ हे पिता।अन्यत् पूर्ववत् ॥

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    विषय

    परदादा, दादा व पिता

    पदार्थ

    १. एक गृहस्थ युवक के परदादा आज से ५० वर्ष पूर्व वानप्रस्थ बने थे, इसी प्रकार इसके दादा २५ वर्ष पूर्व वनस्थ हुए थे। वहाँ वनों में कितने ही अन्य अपने समान वनस्थों के साथ उनका उठना-बैठना व परिचय हो गया था। आज वे अपने घर में आते हैं तो उनके साथियों के आने का भी सम्भव हो ही सकता है। इसके पिता तो अभी समीप भूत में ही वनस्थ हुए हैं। वे अभी इतने परिचित नहीं बना पाये। वे अभी अकेले ही आये हैं। २. इन सबके आने पर यह गृहस्थ उन्हें आदरपूर्वक कहता है कि हे (प्रततामह) = परदादाजी! (एतत्) = यह (ते) = आपके लिए (स्वधा) = अन्न है। च-और उनके लिए भी (स्वधा) = अन्न है, (ये) = जो (त्वाम् अनु) = आपके साथ आये हैं। ३. इसी प्रकार वह दादाजी के लिए भी कहता है कि हे (ततामह) = दादाजी! (एतत्) = यह ते आपके लिए (स्वधा) = अन्न है (च) = और (ये) = जो (त्वाम् अनु) = आपके साथ आये हैं, परन्तु पिताजी के लिए वह इतना ही कहता है कि हे (तत) = पितः। (एतत्) = यह (ते) = आपके लिए (स्वधा) = अन्न है।

    भावार्थ

    हम घर पर पधारे हुए वनस्थ परदादा, दादा व पिताजी के लिए उचित भोजन का परिवेषण करें।

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    भाषार्थ

    (तत) हे पिता! (एतत्) यह (ते) आपके लिए (स्वधा) स्वधान्न है, आत्म-धारण-पोषणकारी अन्न है।

    टिप्पणी

    [तत=तात (लौकिक संस्कृत)। अंग्रेजी में Dad=father, a word used by children. Dad शब्द “तत” का विकृतरूप है। तत=पिता, ततामह=दादा; प्रततामह= परदादा। पितृयज्ञ श्राद्ध तथा पितृमेध में इन्हीं तीन का, अर्थात् पिता पितामह और प्रपितामह का सम्बन्ध होता है। प्रपितामह के पिता आदि का नहीं। १०० वर्षों की आयु की दृष्टि से श्राद्धकर्त्ता पुत्र के लिए इन्हीं तीन का जीवित रहना अधिक सम्भावित है। पञ्चमहायज्ञों में पितृयज्ञ है। ये यज्ञ विवाहित पुरुष को करने होते हैं। २४ वर्षों की आयु में स्नातक बनकर, २५ वें वर्ष में विवाह द्वारा सन्तानोत्पादन कर ब्रह्मचारी पिता बनता है। अपत्य की सन्तान हो जाने के समय इस नवपिता के पिता की आयु ५० वर्षों की, पितामह की ७५ वर्षों की, तथा प्रपितामह की १०० वर्षों की सम्भावित है। इससे प्रतीत होता है कि पितृयज्ञ आदि में इन तीनों के ही जीवित होने के कारण इन्हीं तीन का यजन अर्थात् सत्कार होता है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Here is homage of food and reverence, O father, to you.

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    Translation

    Here is svadha for thee, O father.

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    Translation

    O father, let this grain be efficacious for you.

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    Translation

    O father, here is this vitalizing food for thee.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७७−(तत) म० ७५ हे पिता।अन्यत् पूर्ववत् ॥

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