अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 10
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
अथो॒ सर्वं॒ श्वाप॑दं॒ मक्षि॑का तृप्यतु॒ क्रिमिः॑। पौरु॑षे॒येऽधि॒ कुण॑पे रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअथो॒ इति॑ । सर्व॑म् । श्वाप॑दम् । मक्षि॑का । तृ॒प्य॒तु॒ । क्रिमि॑: । पौरु॑षेये । अधि॑ । कुण॑पे । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
अथो सर्वं श्वापदं मक्षिका तृप्यतु क्रिमिः। पौरुषेयेऽधि कुणपे रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठअथो इति । सर्वम् । श्वापदम् । मक्षिका । तृप्यतु । क्रिमि: । पौरुषेये । अधि । कुणपे । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.१०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अथो) और भी (सर्वम्) सब (श्वापदम्) कुत्ते के से पैरवाले [सियार आदि हिंसकों का समूह], (मक्षिका) मक्खी और (क्रिमिः) कीड़ा (पौरुषेये) पुरुषों की (कुणपे अधि) लोथों के ऊपर, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (तृप्यतु) तृप्त होवें ॥१०॥
भावार्थ
शूर सेनापति के विध्वंस करने पर शत्रुओं की लोथों से हिंसक पशु-पक्षी पेट भरें ॥१०॥
टिप्पणी
१०−(अथो) अपि च (सर्वम्) (श्वापदम्) शुनो दन्तदंष्ट्राकर्णकुन्दवराहपुच्छपदेषु दीर्घो वाच्यः। वा० पा० ६।३।१३७। दीर्घः। शुन इव पदं यस्य सः श्वापदः, ततः समूहार्थे-अण्। हिंस्रपशूनां शृगालादीनां समूहः (मक्षिका) अ० ११।२।२। कीटभेदः (तृप्यतु) (क्रिमिः) (पौरुषेये) अ० ७।१०५।१। पुरुष−ढञ्। पुरुषसम्बन्धिनि (अधि) उपरि (कुणपे) क्वणेः सम्प्रसारणं च। उ० ३।१४३। क्वण शब्दे-कपन्, सम्प्रसारणम्, यद्वा कुण शब्दोपकरणयोः-कपन्। मृतदेहे। शवे। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥
विषय
श्वापदं मक्षिका क्रिमिः
पदार्थ
१. (अथो) = [अपि च] और (सर्वम्) = सब (श्वापदम्) = [शुनः पदानीव पदानि यस्य-सा०] शृगाल, व्याघ्र आदि हिंस्रपशु (मक्षिका) = मांसनिषेविणी नीलमक्षिका तथा (क्रिमि:) मांस के जीर्ण होने पर पैदा हो जानेवाले प्राणी-ये सब, हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते! (तव रदिते) = तेरा आक्रमण होने पर (पौरुषेये कुणपे अधि) = पुरुष-सम्बन्धी शव-शरीर पर (तृप्यन्तु) = तृप्त हों।
भावार्थ
सेनापति द्वारा शत्रु का विनाश होने पर शत्रुओं के मृत-शरीरों को हिंस्र-पशु मक्षिका व कृमि खानेवाले बनें।
भाषार्थ
(अथ उ) तथा (श्वापदम्) कुत्तों के सदृश पैरोंवाले (सर्वम्) सब हिंस्रप्राणी, (मक्षिका) मक्खियां, (क्रिमिः) और कीड़े मकौड़े, (पौरुषेये कुणपे अधि) पुरुषों के मृतशरीरों पर (तृप्यतु) तृप्त हों, (अर्बुदे) हे हिंसक, सेनापति! (तव) तुझ द्वारा (रदिते) शत्रुओं के कटने पर।
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे) महा तीक्ष्ण सेनानायक ! नाग के समान (तवर दिते) तेरे डस लेने पर (अथो) और (सर्वम्) सब प्रकार के (श्वापदम्) कुत्ते के समान पन्जों वाले शेर, चीते, बघेरे आदि जंगली जानवर (मक्षिकाः) मक्खियां और (क्रिमिः) कीड़े मकौड़े भी (तवर दिते) तेरे डस लेने पर (पौरुषेये कुणपे अधि) मानुष मुर्दार पर (तृप्यतु) अपना पेट भरकर तृप्त हों।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अथो) और भी (अर्बुदे तव रदिते) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! तेरे मर्दित-हत किए (कुणपे पौरुषेये-अधि) मुर्दे पुरुष में (सर्व-श्वापदम्) सब श्वापद-जङ्गल का पशु कुत्ते जैसे पैर वाला गीदड भेडिया आदि (मक्षिका) मक्खी (क्रिभिः) अन्य कीट (तृप्यतु) तृप्त होवे ॥१०॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, wild beasts with buzzing flies and creeping worms, would gorge upon the dead bodies of men rent and fallen under your attack.
Translation
Then let all wild beasts, let the fly, let the worm satisfy itself upon the carrion of men, bitten O Arbudi, of thee.
Translation
In your slaughter (caused on enemies) O Arbudi, let all the beasts of prey, fly and worm regale on the human corpse.
Translation
Then let each greedy beast of prey, and fly and worm regale itself upon the human corpse, when a foe hath been piereed by thee, O valiant general.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१०−(अथो) अपि च (सर्वम्) (श्वापदम्) शुनो दन्तदंष्ट्राकर्णकुन्दवराहपुच्छपदेषु दीर्घो वाच्यः। वा० पा० ६।३।१३७। दीर्घः। शुन इव पदं यस्य सः श्वापदः, ततः समूहार्थे-अण्। हिंस्रपशूनां शृगालादीनां समूहः (मक्षिका) अ० ११।२।२। कीटभेदः (तृप्यतु) (क्रिमिः) (पौरुषेये) अ० ७।१०५।१। पुरुष−ढञ्। पुरुषसम्बन्धिनि (अधि) उपरि (कुणपे) क्वणेः सम्प्रसारणं च। उ० ३।१४३। क्वण शब्दे-कपन्, सम्प्रसारणम्, यद्वा कुण शब्दोपकरणयोः-कपन्। मृतदेहे। शवे। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥
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