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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 23
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    अर्बु॑दिश्च॒ त्रिष॑न्धिश्चा॒मित्रा॑न्नो॒ वि वि॑ध्यताम्। यथै॑षामिन्द्र वृत्रह॒न्हना॑म शचीपते॒ऽमित्रा॑णां सहस्र॒शः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्बु॑दि: । च॒ । त्रिऽसं॑धि: । च॒ । अ॒मित्रा॑न् । न॒: । वि । वि॒ध्य॒ता॒म् । यथा॑ । ए॒षा॒म् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । हना॑म । श॒ची॒ऽप॒ते॒ । अ॒मित्रा॑णाम् । स॒ह॒स्र॒ऽश: ॥११.२३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्बुदिश्च त्रिषन्धिश्चामित्रान्नो वि विध्यताम्। यथैषामिन्द्र वृत्रहन्हनाम शचीपतेऽमित्राणां सहस्रशः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्बुदि: । च । त्रिऽसंधि: । च । अमित्रान् । न: । वि । विध्यताम् । यथा । एषाम् । इन्द्र । वृत्रऽहन् । हनाम । शचीऽपते । अमित्राणाम् । सहस्रऽश: ॥११.२३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 23
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अर्बुदिः) अर्बुदि [शूर सेनापति राजा] (च च) और (त्रिषन्धिः) त्रिसन्धि [तीनों कर्म, उपासना और ज्ञान में मेल अर्थात् प्रीति रखनेवाला विद्वान् पुरुष, आप दोनों] (नः) हमारे (अमित्रान्) शत्रुओं को (वि विध्यताम्) छेद डालें। (यथा) जिससे (वृत्रहन्) हे अन्धकारनाशक ! (शचीपते) वाणियों, कर्मों और बुद्धियों के पालनेवाले (इन्द्र) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले राजन्] (एषाम्) इन (अमित्राणाम्) शत्रुओं को (सहस्रशः) सहस्र-सहस्र करके (हनाम) हम मारें ॥२३॥

    भावार्थ

    बलवान् राजगण और त्रयी विद्या में कुशल, अर्थात् कर्म अपने कर्तव्य, उपासना ईश्वरभक्ति और ज्ञान सूक्ष्मदर्शितावाले विद्वान् जन परस्पर मिलकर शत्रुओं को हराकर प्रजापालन करें ॥२३॥

    टिप्पणी

    २३−(अर्बुदिः) म० १। शूरः सेनापतिः राजा (च) (त्रिषन्धिः) त्रिषु कर्मोपासनाज्ञानेषु सन्धिः संयोगः प्रीतिर्यस्य स त्रयीकुशलो विद्वान् पुरुषः (च) (अमित्रान्) (शत्रून्) (नः) अस्माकम् (वि) विविधम् (विध्यताम्) बहु ताडयताम् (यथा) येन प्रकारेण (एषाम्) कर्मणि षष्ठी। इमान् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (हनाम) मारयाम (शचीपते) म० २०। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालक (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सहस्रशः) अ० ८।८।१। सहस्रं सहस्रम् ॥

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    विषय

    अर्बुदि + त्रिषन्धिः च

    पदार्थ

    १. (अर्बुदिः च) = शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाला सेनापति (च) = और (त्रिषन्धिः) = तीनों 'जल, स्थल और वायु सेनाओं का अधिष्ठाता राजा (न: अमित्रान्) = हमारे शत्रुओं को (विविध्यताम्) = विद्ध करें। इसप्रकार इन्हें विद्ध करें कि हे (इन्द्र) = शत्रुओं के विद्रावक, (वृत्रहन्) = राष्ट्र को घेरनेवालों को नष्ट करनेवाले, (शचीपते) = शक्ति के स्वामिन् राजन्! (यथा) = जिससे (एषाम्) = इन (अमित्राणाम्) = शत्रुओं के (सहस्त्रश: हनाम) = हज़ारों को ही एक उद्योग से हम मारनेवाले हों।

    भावार्थ

    शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाला सेनापति तथा 'जल, स्थल व वायु सेनाओं का शासक राजा हमारे शत्रुओं को इसप्रकार विद्ध करें कि हज़ारों शत्रु एक ही उद्योग से नष्ट हो जाएँ।

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    भाषार्थ

    (अर्बुदिश्च त्रिषन्धिश्च)१ शत्रुघातक सेनापति, तथा त्रिषन्धि नामक सेना संचालक (नः अमित्रान्) हमारे शत्रुओं को (विविध्यताम्) विशेषतया बीन्धें। (यथा) जिस प्रकार की (वृत्रहन्) हे आवरण डाले हुए अर्थात् घेरा डाले हुए शत्रुओं का हनन करने वाले ! (शचीपते) राष्ट्रिय कर्मों के स्वामी (इन्द्र) हे सम्राट् ! (एषाम् अमित्राणाम्) इन शत्रुओं के (सहस्रशः) हजार-हजार सैनिकों को (हनाम) हम एक दम मारें।

    टिप्पणी

    [हजार-हजार शत्रुओं को एक-एक उद्योग में मारने के लिये अधिक शक्ति की आवश्यकता है। इसलिये न्युर्बुदि के स्थान में "त्रिषन्धि" सेना संचालक का वर्णन हुआ है। परस्पर सन्धि में बन्धे तीन राष्ट्रों के प्रतिनिधित्वरूप सेनासंचालक को "त्रिषन्धि" कहा है। ये तीन राष्ट्र हैं। (१) स्वराष्ट्र, (२) मित्रराष्ट्र, (३) मित्र के मित्र का राष्ट्र। इन तीनों की परस्पर सन्धि, त्रिषन्धि है इस त्रिषन्धि के प्रतिनिधि को भी मन्त्र में त्रिषन्धि कहा है। त्रिषन्धि की व्याख्या (११।१०।२) में विशेष की गई है।] [१. त्रिषन्धिः-"कश्चित् सेनामोहको देवः सन्धित्रयोपेतवज्रयुधाभिमानी वा" (सायण)। इस लेख से प्रतीत होता है कि सायणाचार्य भी त्रिषन्धि को चेतन तत्त्व मानता है, केवल जड़ बज्र नहीं।]

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    (अर्बुदिः) अर्बुदि और (त्रिसन्धिः च) तीन सन्धियों वाले, त्रिसंधिनामक बाण महास्त्रवाला सेनापति (नः अमित्रान् विविध्यतम्) हमारे शत्रुओं पर ऐसा प्रहार करे कि जिससे हे (वृत्रहन्) घेर लेने वाले शत्रुओं के नाशक ! हे (शचीपते) शक्तिपते ! सेनापते ! (एषां अमित्राणाम्) इन शत्रुओं को हम (सहस्रशः) हज़ारों की संख्या में (हनाम) मारें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अर्बुदिः च त्रिषन्धिः च) विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष और तीन वस्तुओं के मेल से प्रयुक्त वज्र "वज्रेण त्रिषन्धिना" (अथर्व ११।१०।३।२७) "अर्कस्त्रिधातु” (ऋ० ३।२६।७) गन्धक मनःशिलः शोरकयुक्त "अर्कोवत्र नाम (नि० २।२०) स्तनयित्नु शब्दकारी अस्त्र प्रयोक्ता सेनानायक (न:-अमित्रान्) -हमारे शत्रुओं को (विविध्यताम्) विशेषरूप से वीन्धे (वृत्रहन् शचीपते-इग्द्र) हे मेघहनन कर्त्ता कर्म के स्वामिन् ! विद्युत् देव (यथा-एषाम-अमित्राणां सहस्रशः-हनाम ) जैसे जिससे इन शत्रुओं के सहस्र का भी हम हनन करें ॥२३॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Let the Commander and Trishandhi, tripartite peace commission, settle and fix these enemies of ours so that, O Indra, destroyer of darkness, ruler and lord of all power of action, we may eliminate the enemies by the hundreds and uproot enmity from humanity.

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    Translation

    Let both Arbudi and Trisandhi pierce through our enemies, in order that, O Indra, Vritra-slayer, lord of might, we may slay of them, of our enemies, by thousands.

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    Translation

    Let Arbudi as our Commanding Chief and Trisaudhih, the arrows having three wings, fall upon our enemies to assail them. O slaughter of enemies, O master of might and wisdom you make them so frustrated that we kill thousands of these enemies.

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    Translation

    O valiant general, and a learned commander full of action, contemplation and knowledge, fall upon our foes and scatter them, so that, O king, Lord of Might, Dispeller of darkness, we may kill thousands of these our enemies!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २३−(अर्बुदिः) म० १। शूरः सेनापतिः राजा (च) (त्रिषन्धिः) त्रिषु कर्मोपासनाज्ञानेषु सन्धिः संयोगः प्रीतिर्यस्य स त्रयीकुशलो विद्वान् पुरुषः (च) (अमित्रान्) (शत्रून्) (नः) अस्माकम् (वि) विविधम् (विध्यताम्) बहु ताडयताम् (यथा) येन प्रकारेण (एषाम्) कर्मणि षष्ठी। इमान् (इन्द्र) हे परमैश्वर्यवन् राजन् (वृत्रहन्) अन्धकारनाशक (हनाम) मारयाम (शचीपते) म० २०। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालक (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सहस्रशः) अ० ८।८।१। सहस्रं सहस्रम् ॥

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