अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 22
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
ये च॒ धीरा॒ ये चाधी॑राः॒ परा॑ञ्चो बधि॒राश्च॒ ये। त॑म॒सा ये च॑ तूप॒रा अथो॑ बस्ताभिवा॒सिनः॑। सर्वां॒स्ताँ अ॑र्बुदे॒ त्वम॒मित्रे॑भ्यो दृ॒शे कु॑रूदा॒रांश्च॒ प्र द॑र्शय ॥
स्वर सहित पद पाठये । च॒ । धीरा॑: । ये । च॒ । अधी॑रा: । परा॑ञ्च: । ब॒धि॒रा: । च॒ । ये । त॒म॒सा: । ये । च॒ । तू॒प॒रा: । अथो॒ इति॑ । ब॒स्त॒ऽअ॒भि॒वा॒सिन॑:। सर्वा॑न् । तान् । अ॒र्बु॒दे॒ । त्वम् । अ॒मित्रे॑भ्य: । दृ॒शे । कु॒रु॒ । उ॒त्ऽआ॒रान् । च॒ । प्र । द॒र्श॒य॒ ॥११.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
ये च धीरा ये चाधीराः पराञ्चो बधिराश्च ये। तमसा ये च तूपरा अथो बस्ताभिवासिनः। सर्वांस्ताँ अर्बुदे त्वममित्रेभ्यो दृशे कुरूदारांश्च प्र दर्शय ॥
स्वर रहित पद पाठये । च । धीरा: । ये । च । अधीरा: । पराञ्च: । बधिरा: । च । ये । तमसा: । ये । च । तूपरा: । अथो इति । बस्तऽअभिवासिन:। सर्वान् । तान् । अर्बुदे । त्वम् । अमित्रेभ्य: । दृशे । कुरु । उत्ऽआरान् । च । प्र । दर्शय ॥११.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(ये) जो (धीराः) धीर [धैर्यवान्] (च च) और (ये) जो (अधीराः) अधीर [चंचल], (पराञ्चः) हट जानेवाले (च) और (ये) जो (बधिराः) बहिरे [शिक्षा न सुननेवाले] हैं। (च) और (ये) जो (तमसाः) अन्धकारयुक्त, (तूपराः) हिंसक (अथो) और (बस्ताभिवासिनः) उद्योगों में रहनेवाले हैं। (तान् सर्वान्) इन सब [लोगों] को, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः दृशे) अमित्रों के लिये देखने के लिये (कुरु) कर (च) और [हमें अपने] (उदारान्) बड़े उपायों को (प्र दर्शय) दिखादे ॥२२॥
भावार्थ
राजा को योग्य है कि वह धीर-अधीर, शूर-कातर, उद्योगी-अनुद्योगी आदि पुरुषों की विवेचना करके शत्रुओं को अपनी सुनीति का निश्चय करादे ॥२२॥मन्त्र के अन्तिम भाग के लिये मन्त्र १।१५ तथा २४ देखो ॥
टिप्पणी
२२−(ये) मनुष्याः) (च) (धीराः) धैर्यवन्तः। प्रज्ञानवन्तो ध्यानवन्तः निरु० ४।१०। (ये) (च) (अधीराः) चञ्चलाः (पराञ्चः) पराङ्मुखाः। पलायमानाः (बधिराः) शिक्षायां हतश्रवणसामर्थ्याः (च) (ये) (तमसाः) तमस्-अर्शआद्यच्। अन्धकारेण युक्ताः शठाः (ये) (च) (तूपराः) ऋच्छेररः। उ० ३।१३१। तुप हिंसायाम्-अर प्रत्ययः, गुणाभावे दीर्घः। हिंसकाः (अथो) अपि च (बस्ताभिवासिनः) वस्त गतिहिंसायाचनेषु-घञ्, वस्य बः+वस निवासे-णिनि। गतिषु उद्योगेषु निवासशीलाः (सर्वान्) (तान्) अन्यद्गतम्-म० १ ॥
विषय
तूपराः बस्ताभिवासिनः
पदार्थ
१. (ये च धीरा:) = और जो धीर [धिया ईत इति धीरः]-समझदार हैं, परन्तु (ये अधीराः) = जो शत्रु पर आक्रमण के लिए अति अधीर [चञ्चल] हैं, (च) = और (ये) = जो (पराञ्चः) = परे-दूर तक गति करनेवाले हैं, (बधिराः च) = आक्रमण की अधीरता में रुकने की किसी भी बात को न सुननेवाले हैं, (तमसा:) = आक्रमण के विषय में किसी भी विघ्न को न सोचनेवाले तमोगुण प्रधान हैं, (ये च) = और जो (तूपरा:) = तोप के गोले के समान हिंसक हैं [तुप हिंसायाम्], (अथो) = और (बस्ताभिवासिन:) = [बस्त गतिहिंसायाचनेषु] सदा हिंसा में ही निवासवाले हैं, अर्थात् स्वभावत: क्रूर हैं, (सर्वान् तान्) = उन सबको, हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते! (त्वम्) = तू (अमिन्त्रेभ्यः दृशे) = कुरु-शत्रुओं के देखने के लिए कर (च) = और (उदारान् प्रदर्शय) = युद्ध की प्रकृष्ट आयोजनाओं को उनके लिए दिखा, जिससे वे शत्रु भयभीत होकर युद्ध की रुचि व उत्साह से रहित हो जाएँ।
भावार्थ
शत्रु हमारे योद्धओं के उत्साह व युद्ध की विशाल आयोजनाओं को देखकर भयभीत हो उठे और युद्ध के उत्साह को छोड़ दें।
भाषार्थ
(ये च धीराः) जो धैर्यवाले, (ये च अधीराः) और जो धैर्यरहित (पराञ्चः) जोकि युद्ध से पराङ्मुख हो कर भागे हैं, (ये बधिराः) जो युद्ध में शस्त्रास्त्रों की ध्वनियों तथा कोलाहलों के कारण बहरे हो गए हैं, (च) और (तमसा) विजयी सेना द्वारा फैंके तामसास्त्रों के कारण (ये) जो (तूपराः) शृङ्गविहीन पशुओं के सदृश पराक्रम रहित हो गये हैं, (अथो) और जो (बस्ताभिवासिनः) बकरों की खाल के वस्त्र [कवचों के रूप में] धारण किये हुए हैं, (तान् सर्वान्) उन सब को, (अर्बुदे) हे शत्रुघातक सेनापति ! (त्वम्) तू (अमित्रेभ्यः) शत्रुओं के (दृशे) देखने के लिये (कुरु) उपस्थित कर, (उदारान् च) और उदार भावों को भी (प्रदर्शय) प्रदर्शित कर।
टिप्पणी
[जब अर्बुदि शत्रुओं पर विजय पा ले, तदनन्तर वह शत्रुपक्ष के धीर आदि पुरुषों को एकत्रित करके, शत्रु पक्ष के अधिकारियों के संमुख उन्हें उपस्थित करे, और कहे कि तुम्हें क्या लाभ हुआ युद्ध करके, देखो इन दीन सैनिकों की अवस्था को। परन्तु अधिकारियों के प्रति उदारभावों को भी दर्शाए जिस से उन्हें निश्चय हो जाय कि युद्ध लड़ने के कारण, विजयी राष्ट्र हमारे साथ निर्दयता का व्यवहार न करेगा। तमसा तूपराः; तूपरः= शूङ्गहीनः पशुः (सायण)। तमसा = तमस् फैलाकर अर्थात् तामसास्त्रों के द्वारा शत्रुओं को अन्धकारावृत करके। यथा "ग्राह्यमित्रांस्तमसा विध्य शत्रून्” (अथर्व० ३/२/५); तथा "तां विध्यत तमसापव्रतेन यथैषामन्यो अन्यं न जानात्" (अथर्व० ३/२/६), अर्थात् "अंगों को जकड़ देने वाले "अप्वास्त्र" के द्वारा, तथा “तामसास्त्र" के द्वारा शत्रुओं को वीन्ध"। तथा "उस शत्रुसेना को कर्मरहित कर देने वाले “तामसास्त्र" द्वारा वीन्ध, ताकि इन में से वे परस्पर एक-दूसरे को न पहचान सकें। "विध्य और विध्यत" में व्यध् धातु के प्रयोग के कारण, "अप्वा और तमसा" द्वारा अस्त्रों का ही ग्रहण किया जाना उचित प्रतीत होता है। देखो (यजु० १७/४४) तथा (ऋक् १०/१०३/१२]।
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे) सेनापते ! (ये च धीराः) जो धीर, शूरवीर या बुद्धिमान हैं, (ये च अधीराः) और जो अधीर, भीरू या मूर्ख हैं, (पराञ्चः) भागने वाले और (ये बधिराः च) जो बहरे हैं (तमसा) अन्धकार से जो (तूपराः) वे सींग के, भोले भाले (अथो) और जो (बस्ताभिवासिनः) भेड़ बकरों के समान बलबलाते हैं, (तान् सर्वान्) उन सबको (त्वम् अमित्रेभ्यो दृशे कुरु) शत्रुओं को दिखाने के लिये तैयार कर। और (उदारान् च प्रदर्शय) बड़े बड़े नाशक प्रयोग दिखला।
टिप्पणी
(च०) ‘वस्ताभिवाशिनः’ इति सायणाभिमतः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(च ये धीराः) और जो कर्मवान् क्रियाशील योद्धाजन "धी:कर्मनाम" (निघं० २।१) (च) और (ये-अधीराः पराञ्च) और जो कर्म न करते हुए चुपचाप परों-शत्रुओं में गुप्तरूप से प्रवेश कर युद्धात्र फेंकने वाले (च) और (ये बधिराः) बन्धन वाले व्यूहपाश में बान्धने वाले "बध संयमने" (चुरादि०) "सर्वधातुभ्यः- इन्” (उणादि० ४।१।२८) (तमसा:) अन्धकार फैलाने के अगले (च) और (ये तूपराः) तूप-तोप महान् हिंसक साधन वाले "तुप हिंसार्थः" (वा०) (अधो) और (बस्ता भिवासिनः) मर्दन- चकनाचूर करने वाले कणों को अभिवासित करने वाले अपने वीर हैं "वस्त मदने" (चुरादि) (तान् सर्वान्) उन सबको (अमित्रेभ्यः) शत्रुओं को (अर्बुदे) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता (त्वं दृशे कुरु) दिखाने के लिए कर (उदारान् च प्रदर्शय) उभरते हुए स्फोटक पदार्थों को भी प्रदर्शित कर ॥२२॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, let those that are patient and wise and those that are impatient and unwise, those that withdraw and those who were deaf and would not listen to anyone, those who are stupefied with darkness and those that are dressed in goat-skin: Let all those, O Arbudi, fall in so that the enemy may see them. And show them your own generosity too.
Translation
Both they who are wise (dhira) and they who are unwise, those going away and they who are deaf, they of darkness and they who are hornless (tupara) likewise those that smell of (?) the goat--all those (m.), O Arbudi; do thou make our enemies to see, and do thou show forth specters.
Translation
O Arbudi You make visible to enemies, them who are cleverer and who are clever them who are twisted round and them who are deaf. Show them also those men who are covered with darkness and whose voice is like the voice he-goat. Also show them explosive weapons.
Translation
The calm and restless soldiers, those who shun the battlefield, and are deaf to advice, rogues engulfed in darkness, violent persons, those fond of enterprise: all these, O valiant general, do thou make visible to our enemies, and show them thy deadly military devices!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(ये) मनुष्याः) (च) (धीराः) धैर्यवन्तः। प्रज्ञानवन्तो ध्यानवन्तः निरु० ४।१०। (ये) (च) (अधीराः) चञ्चलाः (पराञ्चः) पराङ्मुखाः। पलायमानाः (बधिराः) शिक्षायां हतश्रवणसामर्थ्याः (च) (ये) (तमसाः) तमस्-अर्शआद्यच्। अन्धकारेण युक्ताः शठाः (ये) (च) (तूपराः) ऋच्छेररः। उ० ३।१३१। तुप हिंसायाम्-अर प्रत्ययः, गुणाभावे दीर्घः। हिंसकाः (अथो) अपि च (बस्ताभिवासिनः) वस्त गतिहिंसायाचनेषु-घञ्, वस्य बः+वस निवासे-णिनि। गतिषु उद्योगेषु निवासशीलाः (सर्वान्) (तान्) अन्यद्गतम्-म० १ ॥
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