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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - त्र्यवसानोष्णिग्बृहतीगर्भा षट्पदातिजगती सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    अर्बु॑दि॒र्नाम॒ यो दे॒व ईशा॑नश्च॒ न्यर्बुदिः। याभ्या॑म॒न्तरि॑क्ष॒मावृ॑तमि॒यं च॑ पृथि॒वी म॒ही। ताभ्या॒मिन्द्र॑मेदिभ्याम॒हं जि॒तमन्वे॑मि॒ सेन॑या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्बु॑दि: । नाम॑ । य: । दे॒व: । ईशा॑न: । च॒ । निऽअ॑र्बुदि : । याभ्या॑म् । अ॒न्तरि॑क्षम् । आऽवृ॑तम् । इ॒यम् । च॒ । पृ॒थि॒वी । म॒ही । ताभ्या॑म् । इन्द्र॑मेदिऽभ्याम् । अ॒हम् । जि॒तम् । अनु॑ । ए॒मि॒ । सेन॑या ॥११.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्बुदिर्नाम यो देव ईशानश्च न्यर्बुदिः। याभ्यामन्तरिक्षमावृतमियं च पृथिवी मही। ताभ्यामिन्द्रमेदिभ्यामहं जितमन्वेमि सेनया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्बुदि: । नाम । य: । देव: । ईशान: । च । निऽअर्बुदि : । याभ्याम् । अन्तरिक्षम् । आऽवृतम् । इयम् । च । पृथिवी । मही । ताभ्याम् । इन्द्रमेदिऽभ्याम् । अहम् । जितम् । अनु । एमि । सेनया ॥११.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अर्बुदिः) अर्बुदि [शूर सेनापति राजा], (यः) जो (नाम) प्रसिद्ध (देवः) विजयी पुरुष है, (च) और [जो] (ईशानः) ऐश्वर्यवान् (न्यर्बुदिः) न्यर्बुदि [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] है। (याभ्याम्) जिन दोनों से (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष (आवृतम्) घिरा हुआ है (च) और (इयम्) यह (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी [घिरी है]। (ताभ्याम्) उन दोनों (इन्द्रमेदिभ्याम्) जीवों के स्नेहियों के द्वारा (सेनया) [अपनी] सेना से (जितम्) जीते हुए [प्रयोजन] को (अहम्) मैं [प्रजागण] (अनु) निरन्तर (एमि) पाऊँ ॥४॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजाजन पृथिवी, आकाश और जल में भी राज्य बढ़ाकर प्रजागण को जीते हुए देशों में विद्या प्रचार और वाणिज्य आदि से लाभ पहुँचावें ॥४॥

    टिप्पणी

    ४−(अर्बुदिः) म० १। शूरसेनापती राजा (नाम) प्रसिद्धौ (यः) (देवः) विजिगीषुः (ईशानः) ईशिता (च) (न्यर्बुदिः) नि+अर्ब गतौ हिंसायां च-उदिच्। निरन्तरपुरुषार्थी प्रजागणः (याभ्याम्) अर्बुदिन्यर्बुदिभ्याम् (अन्तरिक्षम्) (आवृतम्) आच्छादितम् (इयम्) दृश्यमाना (च) (पृथिवी) (मही) महती (ताभ्याम्) (इन्द्रमेदिभ्याम्) ञिमिदा स्नेहने-णिनि। जीवानां स्नेहिभ्याम् (अहम्) प्रजागणः (जितम्) जयेन प्राप्तं प्रयोजनम् (अनु) निरन्तरम् (एमि) प्राप्नोमि (सेनया) स्वसेनया ॥

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    विषय

    अर्बुदि + न्यर्बुदि

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (अर्बुदिः नाम) = 'अर्बुदि' नामवाला मुख्य सेनापति है, वह (देव:) = शत्रुओं को जीतने की कामनावाला है [दिब् विजिगीषायाम्], (च) = और (न्युर्बुदि) = अधीनस्थ सेनापति (ईशान:) = शत्रुओं को जीतने में समर्थ है। ये अर्बुदि व न्यर्बुदि वे हैं (याभ्याम्) = जिनसे (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष (च) = और (इयं मही पृथिवी) = यह महती पृथिवी (आवृतम्) = आवृत की गई है। वायुसेना द्वारा अन्तरिक्ष आवृत किया गया है, तथा नौसेना व स्थल [पदाति] सेना से यह प्रथिवी आवृत की गई है। २. (ताभ्याम्) = उन द्यावापृथिवी को व्याप्त करके वर्तमान (इन्द्रमेदिभ्याम्) = राजा के प्रति पूर्ण स्नेहवाले अर्बुदि व न्यर्बुदि द्वारा (सेनया) = सेना के द्वारा (जितम्) = जीते हुए प्रदेश को (अहे अनु एमि) = मैं अनुकूलता से प्राप्त होता हूँ।

    भावार्थ

    अर्बुदि व न्यर्बुदि शत्रुओं को जीतने की कामनावाले व शत्रुओं को जीतने में समर्थ हों। ये अन्तरिक्ष व पृथिवी को वायुसेना व स्थलसेना से आवृत करके शत्रुप्रदेश को जीतनेवाले बनें। वे प्रदेश हमारे लिए अनुकूलता से गति करने योग्य बनें।

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    भाषार्थ

    (अर्बुदिः नाम) अर्बुदि नाम वाला (यः देवः) जो विजिगीषु सेनापति है, (ईशानः च न्यर्बुदिः) और सेनाधीश्वर जो न्यर्बुदि है, (याभ्याम्) जिन दोनों द्वारा (अन्तरिक्षम्) युद्धभूमि का अन्तरिक्ष [वायु सेना द्वारा] (आवृतम्) घेरा गया है, (इयं च मही पृथिवी) और यह विस्तृत युद्धभूमि घेरी गई है, (ताभ्याम् इन्द्रमेदिभ्याम्) मुझ सम्राट् के साथ स्नेह करने वाले उन अर्बुदि मौर न्यर्बुदि के साथ (सेनया) तथा सेना के साथ (जितम्) विजित राष्ट्र में (अनु एभि) उन के पीछे पीछे या विजित राष्ट्र के अनुकूल होकर आता हूं।

    टिप्पणी

    [देवः = दिवु विजिगीषा, तद्वान्। न्यर्बुदि बड़ा आफिसर है, तभी इसे ईशान कहा है। इन्द्र= सम्राट् “इन्द्रश्च सम्राड् वरुणश्च राजा" (यजु० ८।३७)। सम्राट् दोनों आफिसरों तथा सेना के पीछे पीछे विजित राष्ट्र के प्रति अनुकल भावनाओं सहित, विजित राष्ट्र में पदार्पण करता है, विरोधी या बदला लेने की भावना से नहीं]।

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    (अर्बुदिः नाम यः देवः) जो देव ‘अर्बुदि’ नाम वाला है वह मेघ के समान शत्रु पर शरों की वर्षा करता है और दूसरा (न्यर्बुदिः ईशानः च) जो न्यर्बुदि है वह ‘ईशान’ अर्थात् विद्युत् के समान तीव्र प्रहार करने वाला है। (याभ्याम्) जिन दोनों ने (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष और (इयं मही पृथिवी च) यह विशाल पृथिवी भी (आवृतम्) घेर रक्खी है। (इन्द्रमेदिभ्यां) इन्द्र अर्थात् राजा के स्नेही (ताभ्याम्) उन दोनों के साथ (अहम्) मैं (जितम्) विजय से प्राप्त किये देश को (सेनया) सेना के बल से (अन्वेमि) वश करता हूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अर्बुदेः-नाम यः देवः) विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष जो विजिगीषु-विजयेच्छुक है (च) और (ईशान:-न्यर्बुदिः) सेना पर नियन्त्रण करने वाला सेनाध्यक्षक के नीचे स्फोटक पदार्थ प्रवक्ता सेनानायक, ये दोनों युद्ध संचालक हैं (याभ्याम् अन्तरिक्षम्-आवृतस्) जिन दोनों के द्वारा अर्थात् उनके अस्त्रप्रयोगों से आकाश घिर जाता है (च) और (इयं मही पृथवी) यह महती युद्धभूमि आवृता हो गई छा गई (इन्द्र मेदिभ्याम्) राजा को स्निग्ध करने वाले- मुझ राजा का हित साधने वालों के द्वारा (जितम्) जीत लिये गये शत्रुप्रदेश को (सेनया-अन्वेमि) सेना द्वारा अनुगत करता हूं-शासित करता हूं ॥४॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    Brilliant Arbudi, noble Commander, and the Commander-in-Chief, Nyarbudi who rules the forces, by whom the sky is covered with the air-force and this earth is covered with the ground forces, with these friends of Indra, the ruler, I enter the conquered territory with the army.

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    Translation

    The God that is Arbudi by name, and the lord (isana) Nyarbudi, by whom the atmosphere is involved’ (a-vr), and this great earth -- by those (two) who are allied with Indra I go after what is conquered with an army.

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    Translation

    The most wonderful amongst people who is named Arbudi, the destroyer, and good administrator of the army affairs named as Nyarbudi; the slaughtered of foes, are two unique powers with the influence of both of whom the space and this grand earth are encompassed sand enveloped. With them who are the friend of the king I, the chief of ministers go to the country subjugated by the army.

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    Translation

    The general whose name is Arbudi, and Nyarbudi the mighty general, the two by whom the air and this great earth are compassed and possessed, with these two friends of the king. I go forth with the army to control the conquered territory.

    Footnote

    I: King.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४−(अर्बुदिः) म० १। शूरसेनापती राजा (नाम) प्रसिद्धौ (यः) (देवः) विजिगीषुः (ईशानः) ईशिता (च) (न्यर्बुदिः) नि+अर्ब गतौ हिंसायां च-उदिच्। निरन्तरपुरुषार्थी प्रजागणः (याभ्याम्) अर्बुदिन्यर्बुदिभ्याम् (अन्तरिक्षम्) (आवृतम्) आच्छादितम् (इयम्) दृश्यमाना (च) (पृथिवी) (मही) महती (ताभ्याम्) (इन्द्रमेदिभ्याम्) ञिमिदा स्नेहने-णिनि। जीवानां स्नेहिभ्याम् (अहम्) प्रजागणः (जितम्) जयेन प्राप्तं प्रयोजनम् (अनु) निरन्तरम् (एमि) प्राप्नोमि (सेनया) स्वसेनया ॥

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