अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 25
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
ई॒शां वो॑ म॒रुतो॑ दे॒व आ॑दि॒त्यो ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑। ई॒शां व॒ इन्द्र॑श्चा॒ग्निश्च॑ धा॒ता मि॒त्रः प्र॒जाप॑तिः। ई॒शां व॒ ऋष॑यश्चक्रुर॒मित्रे॑षु समी॒क्षय॑न्रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठई॒शाम् । व॒: । म॒रुत॑: । दे॒व: । आ॒दि॒त्य: । ब्रह्म॑ण: । पति॑: । ई॒शाम् । व॒: । इन्द्र॑: । च॒ । अ॒ग्नि: । च॒ । धा॒ता । मि॒त्र: । प्र॒जाऽप॑ति: । ई॒शाम् । व॒: । ऋष॑य: । च॒क्रु॒: । अ॒मित्रे॑षु । स॒म्ऽई॒क्षय॑न् । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
ईशां वो मरुतो देव आदित्यो ब्रह्मणस्पतिः। ईशां व इन्द्रश्चाग्निश्च धाता मित्रः प्रजापतिः। ईशां व ऋषयश्चक्रुरमित्रेषु समीक्षयन्रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठईशाम् । व: । मरुत: । देव: । आदित्य: । ब्रह्मण: । पति: । ईशाम् । व: । इन्द्र: । च । अग्नि: । च । धाता । मित्र: । प्रजाऽपति: । ईशाम् । व: । ऋषय: । चक्रु: । अमित्रेषु । सम्ऽईक्षयन् । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.२५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्यो !] (मरुतः) शूर लोग, (देवः) विजयी, (आदित्यः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी] और, (ब्रह्मणः प्रतिः) वेद का रक्षक पुरुष (वः) तुम्हारे (ईशाम्) शासक [हुए हैं]। (इन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान्, (अग्निः) तेजस्वी, (धाता) धारणकर्ता (च) और (मित्रः) प्रेरक (च) और (प्रजापतिः) प्रजापालक मनुष्य (वः) तुम्हारे (ईशाम्) शासक [हुए हैं]। (ऋषयः) ऋषि लोग [महाज्ञानी पुरुष] (वः) तुम्हारे (ईशां चक्रुः) शासक हुए हैं, [जिन विद्वानों को] (अमित्रेषु) वैरियों पर (समीक्षयन्) दिखाता हुआ, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) अपने (रदिते) तोड़-फोड़ कर्म में [तू वर्तमान हुआ है] ॥२५॥
भावार्थ
जैसे पूर्वकाल में शूर वीर और महर्षियों के सत्सङ्ग से राजा लोग शासनविद्या में चतुर हुए हैं, वैसे ही सब मनुष्य पूर्वजों के अनुकरण से कार्यसिद्धि करें ॥२५॥अन्तिम भाग का मिलान मन्त्र ९ के अन्तिम भाग से करो ॥
टिप्पणी
२५−(ईशाम्) प्रत्ययश्रवणसामर्थ्यात्, चक्रुरिति अन्ते श्रूयमाणं सर्वत्र संबध्यते। ईशांचक्रुः (वः) अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति षष्ठी। युष्माकम् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः पुरुषाः (देवः) विजिगीषुः (आदित्यः) अ० १।९।१। अ+दो अवखण्डने-क्तिन्, अदिति-ण्य। अदितिर्व्रतखण्डराहित्यं यस्य सः। अखण्डव्रती (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिः) पालकः (ईशाम्) (वः) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (च) (अग्निः) तेजस्वी (च) (धाता) धाता (मित्रः) प्रेरकः (प्रजापतिः) प्रजापालकः (ईशांचक्रुः) ईश ऐश्वर्ये-लिट्। इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः। पा० ३।१।३६। आम् प्रत्ययः। आम् प्रत्ययवत् कृञोऽनुप्रयोगस्य। पा० १।३।६३। अनुप्रयुज्यमानस्य करोतेरात्मनेपदाभावश्छान्दसः। ईशांचक्रिरे। ईश्वरा नियन्तारो बभूवुः (वः) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः। अन्यद् गतम् म० ९ ॥
विषय
देवानुग्रह से शत्रुओं पर शासन
पदार्थ
१. हे (अर्बुदे) = सेनापते! (अमिन्त्रेषु) = शत्रुओं पर (तव रदिते) = तेरा आक्रमण होनेपर, उस आक्रमण को (समीक्षयन्) = [व्यत्येन एकवचनम्] देखते हुए (मरुतः) = वायुओं के समान वेगवान् भट, (देवः आदित्य:) = विजिगीषु, सूर्यसम तेजस्वी पुरुष तथा (ब्रह्मणस्पति:) = ज्ञानी पुरुष (व:) = [अमिन्नेषु] तुम्हारे शत्रुओं पर (ईशाम् चक्रुः) = शासन करें। (इन्द्रः च अग्निः च) = शत्रविद्रावक राजा, अग्निसम तेजस्वी सैनिक, (धाता मित्रा प्रजापति:) = धारण करनेवाला, प्रमीति [मृत्यु] से बचानेवाला, प्रजा का रक्षक (देव वः ईशाम्) [चाः] = शत्रुओं पर तुम्हारे शासन को स्थापित करे तथा (ऋषय:) = [ऋष् to kill] शत्रुसंहारक तत्त्वद्रष्टा लोग (वः ईशाम्) [चकुः] = शत्रुओं पर तुम्हारा शासन स्थापित करें।
भावार्थ
जब हमारे सेनापति द्वारा शत्रुओं पर आक्रमण किया जाता है तब सब देव हमारी सहायता करते हैं और शत्रुओं पर हमारा शासन स्थापित होता है। [God helps those who help themselves]
भाषार्थ
(मरुतः) हमारे सैनिक (वः) तुम्हारे राष्ट्र पर (ईशां चक्रुः) शासन करें, (देवः आदित्यः) दिव्य आदित्य ब्रह्मचारी जैसा व्यक्ति, तथा (ब्रह्मणस्पतिः) वैदिक विद्वान् शासन करे। (इन्द्रः) हमारा सम्राट् (च अग्निः) और हमारे राष्ट्र का अग्रणी प्रधानमन्त्री, (धाता) धारण-पोषण कर सकने वाला व्यक्ति, (मित्रः) तथा तुम्हारे साथ मित्र बन कर रहने वाला, (प्रजापतिः) तथा तुम्हारी प्रजा की रक्षा करने वाला (वः) तुम्हारे राष्ट्र पर (ईशाम् चक्रुः) शासन करें। (वः) तुम्हारे राष्ट्र पर (ऋषयः) ऋषि लोग (ईशाम्, चक्रूः) शासन करे, (अर्बुदे) हे शत्रुघातक सेनापति ! (तव रदिते) तुझ द्वारा शत्रुओं के कट जाने पर, (समीक्षयन्) तू इस व्यवस्था का समीक्षण करता रह, अर्थात् सम्यक् प्रकार से निरीक्षण और प्रबन्ध करता रह।
टिप्पणी
[मरुतः = सैनिक। यथा "यूयमुग्रा मरुत ईदृशे स्थाभिप्रेत मृणत सहध्वम्” (अथर्व० ३।१।२), अर्थात् हे उग्रमरुतो! तुम ऐसे कर्म करने वाले हो, शत्रु की ओर जाओ, मारो और पराभव करो"। आदित्य ब्रह्मचारी तथा वैदिक विद्वान् तुम्हारे राष्ट्र में सदाचार और वैदिक शिक्षा के लिये हों। ऋषयः= ऋषि कोटि के लोग पक्षपाती तथा अत्याचार करने वाले नहीं होते, ऐसे व्यक्तियों की देखभाल में तुम्हारे राष्ट्र का प्रबन्ध चले। विजित राष्ट्र के शासन में यह कितना ऊँचा और सहानुभूतिपूर्ण आदर्श है।]
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे) अर्बुदे ! सेनानायक ! (वः) तुम्हारे (अमित्रेषु) शत्रुओं में भी (मरुतः) वायुओं के समान वेगवान् भट (आदित्यः) सूर्य के समान प्रतापी पुरुष, (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्मज्ञानी, (ईशां चक्रुः) उन पर शासन करते हैं। (इन्द्रः च अग्निः च धाता मित्रः प्रजापतिः) तुम्हारे शत्रुओं में इन्द्र, राजा, अग्नि के समान शत्रुतापकरी धाता, सर्वपालक सब के मित्र और प्रजापति के समान प्रजापालक पुरुष (ईशां चक्रुः) उनका शासन करते हैं (वः अमित्रेषु ऋषयः ईशां चक्रुः) तुम्हारे शत्रुओं पर भी ऋषि अर्थात् मन्त्र द्रष्टा विद्वान् लोग वश करते हैं। (तव रदिते) तेरे आक्रमण कर लेने पर भी उनको (समीक्षयन्) भली प्रकार देखता हुआ तू शत्रु का नाश कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(वः-मरुतः-ईशाञ्चक्रुः) हे प्रजाजनो ! तुम्हारे पर सैनिक जन "सौ या सेना मरुतः परेषामस्मानेत्यभ्योजसा स्पर्द्धमानः तां विध्यत तमसा पत्रतेन" (अथर्व० ३।२।६) स्वामित्व करते हैं तुम्हारी रक्षा करते हैं (व:-ऋषय:-ईशां-ईशाञ्चक्रुः) तुम्हारी ऋषिजन वस्तुतत्त्व से साक्षात् ज्ञानी रक्षा करते हैं, तथा (देवः) दिव्यगुणवान् (आदित्यः) सूर्य (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्मजल का स्वामी मध्यस्थान का देव वर्षा करने वाला "ब्रह्मउदकनाम" (नि० १।१२) (इन्द्रः) विद्यत् "यदशनिरिन्द्रः" (कौ० ६।१) "विद्यद् वा अशनिः" (श० ६।१।३।१४) (अग्निः) आग (धाता) चन्द्रमा "चन्द्रमा वै धाता” (षड्ο ४।६) (मित्रः) स्नेहप्रेरक जल वाष्पप्रेरक वातप्रवाह (प्रजापतिः) गतिशील वायु "योऽयं पवते वायुः स एव प्रजापतिः" (जै० उ० १।३४।३) ये सात देव उपयुक्त अस्त्रप्रयुक्त हुए (व:-ईशां 'ईशांञ्चकु'-अमित्रेषु समीक्षयन्-अर्बुदे तव रदिते ) शत्रुओं में पते बल को दिखलाता हुआ तू विद्युदस्त्रप्रयोक्ता तेरे मदित शुत्रुगण पर तेरा विजय है ॥२५॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, Arbudi, enemies and enmity having been eliminated under your command, and O people of the land and earth, let Maruts, winds and powers vibrant as the winds, rule over you. Let self refulgent sun, Aditya, Brahmanaspati, lord of the universe and and master and promoter of Brahma, universal Word and voice, rule over you. Let Indra, lord omnipotent, and mighty ruler, Agni, universal light of life, fire of yajna, and enlightened leader, Dhata, universal law of sustenance and the powers of law and order, Mitra, world friendship and universal love, and Prajapati, Lord Divine and father of his children of creation, and the protector, ruler and controller of the people and their children rule over you. Let the Rshis, visionary sages of truth and enlightenment rule over you, all with love, justice, light and power of truth and law for peace, prosperity and happiness.
Translation
Mastery over you have the Maruts (gained), the heavenly Aditya, Brahmanaspati; mastery over you have both Indra and Agni, Dhatar, Mitra, Prajapati; mastery over you have the seers gained (kr) -- exhibiting among the enemies -- in case of thy bite, O Arbudi.
Translation
O Arbudi when you attack the enemies let the priests, enlightened wise man and the master of vedic speech have their control over you for guidance. The king the man of special effulgence in science, the man who supports your army the allied power, the leader of the people have their controlling guidance over you. May the seers of sharp vision control and guide you. You go on examining your purpose and plan.
Translation
High sway have heroes, victors, celibates, a Vedic savant, high sway have dignified the king, a tormentor of the foe-like fire, a protector of the people, a goader, a nourisher of the subjects, high sway have sages given you upon our enemies. O valiant look at them and destroy them!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२५−(ईशाम्) प्रत्ययश्रवणसामर्थ्यात्, चक्रुरिति अन्ते श्रूयमाणं सर्वत्र संबध्यते। ईशांचक्रुः (वः) अधीगर्थदयेशां कर्मणि। पा० २।३।५२। इति षष्ठी। युष्माकम् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः पुरुषाः (देवः) विजिगीषुः (आदित्यः) अ० १।९।१। अ+दो अवखण्डने-क्तिन्, अदिति-ण्य। अदितिर्व्रतखण्डराहित्यं यस्य सः। अखण्डव्रती (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिः) पालकः (ईशाम्) (वः) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् पुरुषः (च) (अग्निः) तेजस्वी (च) (धाता) धाता (मित्रः) प्रेरकः (प्रजापतिः) प्रजापालकः (ईशांचक्रुः) ईश ऐश्वर्ये-लिट्। इजादेश्च गुरुमतोऽनृच्छः। पा० ३।१।३६। आम् प्रत्ययः। आम् प्रत्ययवत् कृञोऽनुप्रयोगस्य। पा० १।३।६३। अनुप्रयुज्यमानस्य करोतेरात्मनेपदाभावश्छान्दसः। ईशांचक्रिरे। ईश्वरा नियन्तारो बभूवुः (वः) (ऋषयः) अ० २।६।१। साक्षात्कृतधर्माणः। अन्यद् गतम् म० ९ ॥
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