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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 20
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    तया॑र्बुदे॒ प्रणु॑त्ताना॒मिन्द्रो॑ हन्तु॒ वरं॑वरम्। अ॒मित्रा॑णां॒ शची॒पति॒र्मामीषां॑ मोचि॒ कश्च॒न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तया॑ । अ॒र्बु॒दे॒ । प्रऽनु॑त्तानाम् । इन्द्र॑: । ह॒न्तु॒ । वर॑म्ऽवरम् । अ॒मित्रा॑णाम् । श॒ची॒ऽपति॑: । मा । अ॒मीषा॑म् । मो॒चि॒ । क: । च॒न ॥११.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तयार्बुदे प्रणुत्तानामिन्द्रो हन्तु वरंवरम्। अमित्राणां शचीपतिर्मामीषां मोचि कश्चन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तया । अर्बुदे । प्रऽनुत्तानाम् । इन्द्र: । हन्तु । वरम्ऽवरम् । अमित्राणाम् । शचीऽपति: । मा । अमीषाम् । मोचि । क: । चन ॥११.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (शचीपतिः) वाणियों, कर्मों और बुद्धियों के पालनेवाले, (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले आप] (तया) उस [सेना के द्वारा] (प्रणुत्तानाम्) बाहिर हटाये गये (अमित्राणाम्) वैरियों में से (वरंवरम्) अच्छे-अच्छे को (हन्तु) मारे। (अमीषाम्) इनमें से (कः चन) कोई भी (मा मोचि) न छूटे ॥२०॥

    भावार्थ

    युद्धकुशल (शचीपति) यथार्थ बोलनेवाला, यथार्थ कर्मवाला और यथार्थ बुद्धिवाला सेनापति शत्रुओं के सब नायकों को मार कर परास्त कर देवे ॥२०॥देखो-अथर्व० ६।६७।२। और-अथर्व० ३।१९।८ ॥

    टिप्पणी

    २०−(तया) सेनया (अर्बुदे) म० १। हे शूरसेनापते राजन् (प्रणुत्तानाम्) बहिष्प्रेरितानाम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (हन्तु) मारयतु (वरंवरम्) अ० ६।६७।२। श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् (अमित्राणाम्) (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म २।१। प्रज्ञा−३।९। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालकः। यथार्थवक्ता यथार्थकर्मा यथार्थप्रज्ञश्च (अमीषाम्) शत्रूणाम् (मा मोचि) अ० ३।१९।८। मा मुच्यताम् (कश्चन) कोऽपि ॥

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    विषय

    'वरंवरम् हन्तु'

    पदार्थ

    १.हे (अर्बदे) = शत्रुसंहारक सेनापते । (तया) = गतमन्त्र में वर्णित धूमशिखा व अग्निज्वाला से (प्रणुत्तानाम्) = रणांगण से दूर धकेले हुए (अमित्राणाम्) = शत्रुओं के (वरंवरम्) = श्रेष्ठ-श्रेष्ठ योद्धाओं को (हन्तु) = आप मार डालें। (शचीपतिः) = शक्ति का स्वामी (इन्द्रः) = शत्रुविद्रावक राजा शत्रुओं को मारे । (अमीषां कश्चन मा मोचि) = इनमें से कोई छूट न जाए।

    भावार्थ

    शत्रुओं के प्रमुख व्यक्तियों को मार डाला जाए, विवशता में इनका सर्वोच्छेद ही ठीक है।

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    भाषार्थ

    (अर्बुदे) हे शत्रुघातक सेनापति! (तया) उस सेना द्वारा (१९) (प्रणुत्तानाम्) धकेले गए (अमित्राणाम्) शत्रुओं के (वरंवरम्) मुखियों का (शचीपतिः इन्द्रः) सब कर्मों का अधिपति सम्राट् (हन्तु) हनन करे, (एषाम्) इन मुखियों में (कश्चन) कोई भी (मा)(मोचि) छटे।

    टिप्पणी

    [शचीपतिः = राष्ट्र के सभी कर्मों का अधिपति सम्राट् है। वह जिस जिस मुखिया के हनन के सम्बन्ध में आज्ञा दे, उस-उस का हनन अर्बुदि करे। शची कर्मनाम (निघं० २।१)।]

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    हे (अर्बुदे) सेनापते ! (तया) उक्त सेना के बल से (प्रणुत्तानां) पराजित हुए (अमित्राणां) शत्रुओं में से (वरंवरं) बड़े बड़े, श्रेष्ठ श्रेष्ठ पुरुष को (शचीपतिः) शक्तिशाली, (इन्द्रः हन्तु) सेनापति मरवा डाले। (अमीषाम्) उन शत्रुओं में से (कः चन) कोई भी (मा मोचि) बच न पावे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अर्बुदे) हे विद्युदस्त्र प्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! (तया प्रणुत्तानां वरंवरम्) उस सेना द्वारा तडित शत्रुओं में बड़े बड़े को (शचीपतिः) युद्ध कर्म का स्वामी (इन्द्रः) राजा (हन्तु) मारे (अमीषाम्-अमित्राणाम्) उन शत्रुओं का (कः चन) कोई भी (मा मोत्रि) मत छोडा जावे ॥२०॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    O Commander, with that army, let Indra, all powerful ruler, pick up one by one and eliminate the prominent leaders and members of the enemies now thrust back. Let none of them be spared.

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    Translation

    Of our enemies, pushed forth by it, O Arbudi; let Indra, lord of might (Sacipati), slay each best man (vara); let no one soever of thém be freed.

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    Translation

    O Arbudi let the king of ours strike down each bravest warrior of the foes who mare defeated by the army and let not he the master of power and wisdom have any one of them escaped.

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    Translation

    May the king, Lord of Might, strike down each bravest warrior of the foes; whom this army of ours has put to flight: let not, O valiant general, one man of these escape!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २०−(तया) सेनया (अर्बुदे) म० १। हे शूरसेनापते राजन् (प्रणुत्तानाम्) बहिष्प्रेरितानाम् (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सेनापतिः (हन्तु) मारयतु (वरंवरम्) अ० ६।६७।२। श्रेष्ठं श्रेष्ठं नायकम् (अमित्राणाम्) (शचीपतिः) अ० ३।१०।१२। शची=वाक्-निघ० १।११। कर्म २।१। प्रज्ञा−३।९। शचीनां वाचां कर्मणां प्रज्ञानां च पालकः। यथार्थवक्ता यथार्थकर्मा यथार्थप्रज्ञश्च (अमीषाम्) शत्रूणाम् (मा मोचि) अ० ३।१९।८। मा मुच्यताम् (कश्चन) कोऽपि ॥

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