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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 8
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    सं॒कर्ष॑न्ती क॒रूक॑रं॒ मन॑सा पु॒त्रमि॒च्छन्ती॑। पतिं॒ भ्रात॑र॒मात्स्वान्र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒म्ऽकर्ष॑न्ती । क॒रूक॑रम् । मन॑सा । पु॒त्रम् । इ॒च्छन्ती॑ । पति॑म् । भ्रात॑रम् । आत् । स्वान् । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    संकर्षन्ती करूकरं मनसा पुत्रमिच्छन्ती। पतिं भ्रातरमात्स्वान्रदिते अर्बुदे तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सम्ऽकर्षन्ती । करूकरम् । मनसा । पुत्रम् । इच्छन्ती । पतिम् । भ्रातरम् । आत् । स्वान् । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (करूकरम्) कार्यकर्ता (पुत्रम्) पुत्र (पतिम्) पति, (भ्रातरम्) भाई (आत्) और (स्वान्) बन्धुओं को (संकर्षन्ती) समेटती हुई और (मनसा) मन से (इच्छन्ती) चाहती हुई [माता, पत्नी, भगिनी आदि स्त्री] (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति-म० १] (ते) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर, [रोवे-म० ७] ॥८॥

    भावार्थ

    शूर सेनापति से शत्रुओं के मारे जाने पर उनकी स्त्रियाँ अपने घरों के कार्यकर्ताओं के बिना अत्यन्त दुःखी होवें ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(संकर्षन्ती) सम्यग् गृह्णन्ती (करूकरम्) कृषिचमितनि०। उ० १।८०। करोतेः-ऊ प्रत्ययः स्त्रियाम्। कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु। पा० ३।२।२०। करोतेष्टः। करूं क्रियां करोतीति करूकरस्तं कार्यकर्तारम् (मनसा) हृदयेन (पुत्रम्) सुतम् (इच्छन्ती) कामयमाना (पतिम्) (भ्रातरम्) सहोदरम् (आत्) तथा (स्वान्) ज्ञातीन्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

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    विषय

    संकर्षन्ती-करूकरम्

    पदार्थ

    १. हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते! (तव रदिते) = तेरे आक्रमण करने पर शत्रु-स्त्री (करुकरं संकर्षन्ती) = अपने हाथ-पैर की हड्डियों को ['करू' शब्द करनेवाली हस्तपादादिगत संधिवाली अस्थियाँ-करूकर] मचकाती हुई [हड्डियों को बैंचती हुई], (मनसा पुत्रम् इच्छन्ती) = मन से पुत्र को चाहती हुई-युद्ध में गये हुए पुत्रादि की मृत्यु के भय से घबराकर उनके जीवन की कामना करती हुई-(पतिं भ्रातरम्) = पति व भाई को चाहती हुई, (आत् स्वान्) = और अन्य बन्धुओं को चाहती हुई [क्रोशतु] विलाप करे।

    भावार्थ

    युद्ध में अपने बन्धुओं की मृत्यु के भय से व्याकुल शत्रु-स्त्री, पुत्र, पति, भाई व बन्धुओं का विलाप करनेवाली हो।

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    भाषार्थ

    (अर्बुदे) हे हिंसा करने वाले सेनापति! (तव रदिते) तेरे काटने पर, (करूकरम्१) करूकर को (संकर्षन्ती) खींचती हुई, (मनसा पुत्रम् इच्छन्ती) मन से पुत्र को चाहति हुई, तथा (पतिम् भ्रातरम् आत् स्वान्) पति, भाई तदनन्तर निज सम्बन्धियों को मन से चाहती हुई (क्रोशन्तु) चिल्लाएं।

    टिप्पणी

    [करूकरम् = कुरीरम्? (अथर्व० १४।१।८), कुरीरम् या कुरीकम्। "कुरीर" पत्नी के हाथ का आभूषण है, जिसे कि पन्जाबी भाषा में कलीरा कहते हैं। अथर्व० ६।१३८।३ में कुरीर को शिरोभूषण कहा है। यथा कुरीमस्य शीर्षणि"]। [१. अथवा "करूकरम्" = करूकरम् (सारण)। क्रियते कर्म येन सः करुः सं चासौ करः (हस्तः), तम् संकर्षन्ती इतस्ततः चालयन्ती। अर्थात् कर्मसम्पादक हाथ को इधर-उधर पटकती हुई।]

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    हे (अर्बुदे तव रदिते) अर्बुदे सेनानायक ! सांप के समान तेरे डस लेने पर शत्रु स्त्री (करूकरं संकर्षन्ती) अपने हाथ पैर की (हड्डियों को मचकाती हुई या अपने कर्म कर नृत्यों को साथ लिए हुए (मनसा पुत्रम् इच्छन्ती) अपने मन से पुत्र को चाहती हुई, (पत्तिं भ्रातरम्) पति भाई और (आत् स्वान्) अपने अन्य बन्धुओं को भी चाहती हुई अर्थात् उनके नाम ले ले कर उनको याद करती हुई (क्रोशतु) विलाप करे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अर्बुदे तव रदिते) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! पर सेना के तेरे द्वारा रदन-नाश कर देने पर उन सैनिकों की माता पत्नी बहिन सम्बन्धिनी स्त्री (पुत्रं पतिं भ्रातरम्) पुत्र को पति को भाई को (आत्) अनन्तर और (स्वान्) अपने सम्बन्धियों को (मनसा-इच्छन्ती) मन से चाहती हुई- मन से स्मरण करती हुई (करुकर संकर्षन्ती) कर-कर अंङ्गो को तोडती फेंकती हुई चिल्लाती विलाप करती है ॥८॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    O Commander, after they were rent and killed by your attack, the widows, drawing together and wringing their hands together, would wish at heart that their sons, husbands, brothers and others of their people were alive.

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    Translation

    Drawing in her Karukara, seeking with her mind her son, husband, brother, also her people (sva) - in case of thy bite, O Arbudi.

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    Translation

    O Arbudi, in your slaughter, let the wife of foe (killed) rubbing her hands and feet, desiring son in her thought, remembering her husband, brother and kin, cry and shrick aloud.

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    Translation

    Snatching away the vertebra, with her mind she seeks her son, her husband, brother, kinsmen, and weeps when her relative, O valiant general has been pierced by thee!

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(संकर्षन्ती) सम्यग् गृह्णन्ती (करूकरम्) कृषिचमितनि०। उ० १।८०। करोतेः-ऊ प्रत्ययः स्त्रियाम्। कृञो हेतुताच्छील्यानुलोम्येषु। पा० ३।२।२०। करोतेष्टः। करूं क्रियां करोतीति करूकरस्तं कार्यकर्तारम् (मनसा) हृदयेन (पुत्रम्) सुतम् (इच्छन्ती) कामयमाना (पतिम्) (भ्रातरम्) सहोदरम् (आत्) तथा (स्वान्) ज्ञातीन्। अन्यत् पूर्ववत्-म० ७ ॥

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