अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 9
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
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अ॒लिक्ल॑वा जाष्कम॒दा गृध्राः॑ श्ये॒नाः प॑त॒त्त्रिणः॑। ध्वाङ्क्षाः॑ श॒कुन॑यस्तृप्यन्त्व॒मित्रे॑षु समी॒क्षय॑न्रदि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒लिक्ल॑वा: । जा॒ष्क॒म॒दा: । गृध्रा॑: । श्ये॒ना: । प॒त॒त्रिण॑: । ध्वाङ्क्षा॑: । श॒कुन॑य: । तृ॒प्य॒न्तु॒ । अ॒मित्रे॑षु । स॒म्ऽई॒क्षय॑न् । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.९॥
स्वर रहित मन्त्र
अलिक्लवा जाष्कमदा गृध्राः श्येनाः पतत्त्रिणः। ध्वाङ्क्षाः शकुनयस्तृप्यन्त्वमित्रेषु समीक्षयन्रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठअलिक्लवा: । जाष्कमदा: । गृध्रा: । श्येना: । पतत्रिण: । ध्वाङ्क्षा: । शकुनय: । तृप्यन्तु । अमित्रेषु । सम्ऽईक्षयन् । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अलिक्लवाः) अपने बल से भय देनेवाले [चील आदि] (जाष्कमदाः) हिंसा में सुख मनानेवाले [सारस आदि], (गृध्राः) खाऊ [गिद्ध], (श्येनाः) श्येन [बाज], (ध्वाङ्क्षाः) कौवे, (शकुनयः) चीलें, (पतत्रिणः) पक्षीगण (तृप्यन्तु) तृप्त होवें, [जिन पक्षियों को] (अमित्रेषु) अमित्रों पर (समीक्षयन्) दिखाता हुआ, तू (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) अपने (रदिते) तोड़-फोड़ कर्म में [वर्तमान हो] ॥९॥
भावार्थ
शूर सेनापति शत्रुओं को युद्ध में मारकर गिरा दे और चील आदि मांसभक्षक पक्षी उनकी लोथों को नोंच-नोंच कर खावें ॥९॥
टिप्पणी
९−(अलिक्लवाः) अ० ११।२।२। अलिना शक्त्या स्वबलेन भयानकाः पक्षिणः (जाष्कमदाः) इण्भीकापा०। उ० ३, ४३। जष हिंसायाम्-कन्, छान्दसी वृद्धिः+मदी हर्षे-पचाद्यच्। हिंसने हर्षशीलाः। सारसादयः पक्षिणः (गृध्राः) मांसभक्षकाः खगविशेषाः (श्येनाः) अ० ३।३।३। शीघ्रगतयः पक्षिविशेषाः (पतत्त्रिणः) अ० १।१५।१। पक्षिणः (ध्वाङ्क्षाः) ध्वाक्षि घोरशब्दे-अच्। काकाः (शकुनयः) अ० ७।६४।१। विल्लपक्षिणः (तृप्यन्तु) हृष्यन्तु (अमित्रेषु) शत्रुषु (समीक्षयन्) म० ६−त्वं सम्यग् दर्शयन् यान् पक्षिणः (रदिते) विदारणे, त्वं वर्त्तस्वेति शेषः (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते राजन् (तव) स्वकीये ॥
विषय
शत्रुशवों को खाकर पक्षी तृप्त हों
पदार्थ
१. (अलिक्लवा:) = [अल सामर्थों क्लव वैक्लव्ये] अपने बल से भय देनेवाले चील आदि (जाष्कमदा:) = [जसु हिंसायाम्] हिंसा में ही आनन्द लेनेवाले सारस आदि (गृध्रा:) = गिद्ध, (श्येना:) = बाज, (पतत्त्रिण:) = अन्य मांसभक्षक पक्षी, (ध्वांक्षा:) = कौवे आदि (शकुनयः) = पक्षी, हे (अर्बुदे) = सेनापते! (तव रदिते) = तेरा आक्रमण होने पर (अमित्रेषु) = शत्रुओं में (समीक्षयन्) = [व्यत्ययेन एकवचनम् - सा०] उनके मरण को देखते ही मरणानन्तर उन्हें खाने से (तृप्यन्तु) = तृप्त हों।
भावार्थ
शत्रुशवों को खाते हुए गिद्ध आदि तृति का अनुभव करें।
भाषार्थ
(अलिक्लबाः) भौरों की तरह विक्लव अर्थात् उत्तेजित हुए, (जाष्कमदाः) मदमस्त हुएं (गृध्राः, श्येनाः, पतत्रिणः) गीध, बाज पक्षी, (ध्वाङ्क्षाः) कौए, (शकुनयः) तथा अन्य शक्तिशाली पक्षी (अमित्रेषु) शत्रुओं के शरीरों पर (तृप्यन्तु) तृप्त हों, (अर्बुदे तव रदिते) हे अर्बुदि! तेरे काटने पर। (समीक्षयन्) तू इस दृश्य को देखता रह।
टिप्पणी
[अलिः = भौरे जैसे पुष्पमधु के लिये उत्तेजित होते हैं, वैसे मांस के लिये उत्तेजित हुए गीध आदि। उत्तेजना के कारण गृध्र आदि को मदमस्त कहा है। जाष्कमदाः= जष् हिंसायाम् (भ्वादि); जष् + क (कृ करणे); जाष्क = स्वार्थे अण; अर्थात् हिंसाकारक मदवाले, अतिमदवाले]।
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे तव रदिते) अर्बुदे ! महा नाग के समान तेरे इस लेने पर (अलिक्लवाः) भयानक बड़े बड़े पक्षी, (जाष्कमदाः) जाष्कमद बाज़ आदि शिकारी जानवर, (गृधाः) गीध, (श्येनाः) उकाब आदि (पतत्रिणः) बड़े बड़े पंखों वाले पक्षी और (ध्वांक्षाः) कौवे और (शकुनयः) शक्तिशाली पक्षी (अमित्रेषु) शत्रुओं के मांसों पर (तृप्यन्तु) तृप्स हों। और तू (समीक्षयन्) अपना बल दिखलाता रह।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अर्बुदे तब रदिते) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! तेरे शत्रु सेनाओं का मर्दन-नाश करने पर (समीक्षयन्) उन्हें मरा समझ कर (अलिक्लवा) पर्याप्त है क्लव-उछलने की गति जिनकी ऐसे पक्षी (जाष्क मदाः-या-क्लमदाः) प्रयत्न में क्लम-ग्लानि देने वाले (गृधाः) गिद्ध (श्येनाः) श्येन-वाज (पतत्रिणः) पक्षी है (ध्वाङ्क्षाः) कव्वे (शकुनयः) चिडियाएं (अमित्रेषु) शत्रुओं में (तृप्यन्तु ) तृप्त हों ।
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, after the enemy were rent and destroyed by your attack, voracious carnivores, vultures, falcons, ravens, crows, kites and other birds would hover and feast and rejoice on your enemies, showing well what you have done.
Translation
Let the buzzards, jaskamadas, vultures, falcons, winged one, let the crows, the birds (sakuni), satisfy themselves -- exhibiting among the enemies -- in case-of thy bite, O Arbudi
Translation
Let vultures, revense, kites, crows an carrion-eating birds feast on our foes, in your slaughter, O Arbudi, and you go on showing your adventures.
Translation
Let vultures, ravens, kites, hawks, crows and every carrion-eating bird, feast on our foes, seeing them dead, pierced by thee, O valiant general.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
९−(अलिक्लवाः) अ० ११।२।२। अलिना शक्त्या स्वबलेन भयानकाः पक्षिणः (जाष्कमदाः) इण्भीकापा०। उ० ३, ४३। जष हिंसायाम्-कन्, छान्दसी वृद्धिः+मदी हर्षे-पचाद्यच्। हिंसने हर्षशीलाः। सारसादयः पक्षिणः (गृध्राः) मांसभक्षकाः खगविशेषाः (श्येनाः) अ० ३।३।३। शीघ्रगतयः पक्षिविशेषाः (पतत्त्रिणः) अ० १।१५।१। पक्षिणः (ध्वाङ्क्षाः) ध्वाक्षि घोरशब्दे-अच्। काकाः (शकुनयः) अ० ७।६४।१। विल्लपक्षिणः (तृप्यन्तु) हृष्यन्तु (अमित्रेषु) शत्रुषु (समीक्षयन्) म० ६−त्वं सम्यग् दर्शयन् यान् पक्षिणः (रदिते) विदारणे, त्वं वर्त्तस्वेति शेषः (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते राजन् (तव) स्वकीये ॥
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