अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 14
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - पथ्यापङ्क्तिः
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
प्र॑तिघ्ना॒नाः सं धा॑व॒न्तूरः॑ पटू॒रावा॑घ्ना॒नाः। अ॑घा॒रिणी॑र्विके॒श्यो रुद॒त्यः पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ति॒ऽघ्ना॒ना: । सम् । धा॒व॒न्तु॒ । उर॑: । प॒टू॒रौ । आ॒ऽघ्ना॒ना: । अ॒घा॒रिणी॑: । वि॒ऽके॒श्य᳡: । रु॒द॒त्य᳡: । पुरु॑षे । ह॒ते । र॒दि॒ते ।अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रतिघ्नानाः सं धावन्तूरः पटूरावाघ्नानाः। अघारिणीर्विकेश्यो रुदत्यः पुरुषे हते रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठप्रतिऽघ्नाना: । सम् । धावन्तु । उर: । पटूरौ । आऽघ्नाना: । अघारिणी: । विऽकेश्य: । रुदत्य: । पुरुषे । हते । रदिते ।अर्बुदे । तव ॥११.१४॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(उरुः) छाती और (पटूरौ) दोनों पटूरों [छाती के दोनों ओर के भागों] को (प्रतिघ्नानाः) धुनती हुई और (आघ्नानाः) पीटती हुई, (अघारिणीः) बिना तेल लगाये, (विकेश्यः) केश बिखेरे हुए, (रुदत्यः) रोती हुई [स्त्रियाँ] (पुरुषे हते) [अपने] पुरुष के मारे जाने में, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (संधावन्तु) दौड़ती फिरें ॥१४॥
भावार्थ
रणक्षेत्र में शत्रुओं के मारे जाने पर उनकी स्त्रियाँ व्याकुल होकर इधर-उधर फिरती फिरें ॥१४॥इस मन्त्र का मिलान ऊपर मन्त्र ७ से करो ॥
टिप्पणी
१४−(प्रतिघ्नानाः) म० ७। ताडयन्त्यः (संधावन्तु) इतस्ततः शीघ्रं गच्छन्तु (उरः) वक्षःस्थलम् (पटूरौ) मीनातेरूरम्। उ० १।६७। पट गतौ दीप्तौ वेष्टने च-ऊरन्। उरःप्रदेशौ। कण्ठाधोभागौ (आघ्नानाः) म० ७। हन शानच्। समन्तात् पीडयन्त्यः (अघारिणीः) अ+घृ सेके-घञ्, अघार-इनि, ङीप्। अघारिण्यः। घारेण सेचनद्रव्येण तैलादिना रहिताः (विकेश्यः) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशाः (रुदत्यः) अश्रून् विमोचयन्त्यः। अन्यद् गतम् म० ७ ॥
विषय
उरः प्रतिघ्नानाः, पटूरौ आघ्नानाः
पदार्थ
१. हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते ! (तव रदिते) = तेरे द्वारा शत्रुविनाश होने पर (पुरुषे हते) = अपने पतियों के मारे जाने पर उनकी स्त्रियाँ (उरः प्रतिघ्नाना:) = छातियों को पीटती हुई (परौ आनाना:) = जंघाओं को दुहत्थड़ मार-मारकर रोती हुई (अघारिणी:) = भर्तृवियोगजनित दुःख से पीड़ित हुई-हुई, (विकेश्य:) = विकीर्ण केशोंवाली (रुदत्यः) = रोती हुई (संधावन्तु) = मृतपुरुषों के शवों की ओर शीघ्रता से दौड़ें।
भावार्थ
युद्ध में पतियों के मारे जाने से शत्र-स्त्रियाँ विलाप करती हुई इधर-उधर भागें।
भाषार्थ
(पुरुषे हते) पति आदि के मर जाने पर उन की स्त्रियां (रुदत्यः) रोती हुई, (प्रतिघ्नानाः) युद्धभूमि से प्रतिमुख हो कर जाती हुई, और (उरः) छातियों को तथा (पटूरौ) पटूरों को (आघ्नानाः) हाथों द्वारा पीटती हुई, (अघारिणीः) दुःख से आर्त, तथा (विकेश्यः) बिखरे केशों वाली हुई, (संधावन्तु) मिल कर युद्ध भूमि से दौड़ जांय (अर्बुदे) हे शत्रुघातक सेनापति! (तब रदिते) तुझ द्वारा शत्रुओं के कट जाने पर।
टिप्पणी
[पटूरौ = पटूरू= पट् (गतो) + उरू। गति के साधन "उरू" अर्थात् कटि प्रदेश और दो घुटनों के बीच के दो भाग, पंजाबी भाषा में "दो-पट्ट"। उरू का अर्थ प्राय जंघा किया जाता है जोकि वैदिक दृष्टि में ठीक नहीं। अथर्ववेद "ऊर्वोरोजो जङ्घयोर्जवः" (१९।६०।२) में, उरूओं और जङ्घाओं को पृथक्-पृथक् कहा है। प्रतिघ्नानाः= प्रति + हन् (गतौ)]।
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे तव रेदिते) भयकारिन् अर्बुदे ! सेनापते ! महानाग के समान तेरे डस लेने पर (हते पुरुषे) शत्रु के मरे मुर्दे पर (उरः) छाती को (प्रतिज्ञानाः) पीटती हुई और (पटूरौ आघ्नानाः) जंघाओं को मार मार कर रोती हुई (अघारिणीः) अपने सम्बन्धी पुरुषों के वियोग से दुःखी होकर (विकेश्यः) बाल खिलारती हुई (रुदत्यः) रोती पीटती हुई शत्रु स्त्रियां विलाप करें।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘पटौरावा’ इति क्वचित्।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अर्बुदे तव रहिते हते पुरुषे) हे विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष ! तेरे मर्दन करने पर शत्रुजन हृत हो जाने पर (प्रतिध्नानाः) प्रतिघात करती हुई स्त्रियां (उर:) छाती (पटूरौ) जङघाओं को "पट गतौ" [भ्वादि उणादि १।६७] (आन्नानाः) पीटती हुई (अघारिणी:) अघ-आघात को प्राप्त हुई "अयं हन्तेनिर्ह सितोपसर्गः आहन्तीति" (निरु० ६।११) (विकेश्यः) विरुद्ध केशों वाली-विखरे केशों वाली (रुदत्यः) रोती हुई (संधावन्तु) घूमती फिरें ॥१४॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Commander, let the widows of the enemies, their hair dishevalled, unanointed, run around together, weeping and wailing, beating their breast and thighs, when their men are rent and killed under the force of your attack.
Translation
Smiting themselves let them (f.) run together, smiting on the breast the thighs (? patdura), not anointing, with disheveled hair, wailing when the man is slain, bitten, O Arbudi, of thee.
Translation
O Arbudi. In your slaughter, when you kill a man, let the women of foes left beating their breast and thighs, being shocked and aggrieved, having their hair wild and keeping them weeping and crying.
Translation
Self-smiting, beating breast and thighs, careless of unguent, with their hair dishevelled, weeping, the women shall run together, when their relative is slain, when thou, O valiant general hast pierced him!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१४−(प्रतिघ्नानाः) म० ७। ताडयन्त्यः (संधावन्तु) इतस्ततः शीघ्रं गच्छन्तु (उरः) वक्षःस्थलम् (पटूरौ) मीनातेरूरम्। उ० १।६७। पट गतौ दीप्तौ वेष्टने च-ऊरन्। उरःप्रदेशौ। कण्ठाधोभागौ (आघ्नानाः) म० ७। हन शानच्। समन्तात् पीडयन्त्यः (अघारिणीः) अ+घृ सेके-घञ्, अघार-इनि, ङीप्। अघारिण्यः। घारेण सेचनद्रव्येण तैलादिना रहिताः (विकेश्यः) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशाः (रुदत्यः) अश्रून् विमोचयन्त्यः। अन्यद् गतम् म० ७ ॥
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