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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 7
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    प्र॑तिघ्ना॒नाश्रु॑मु॒खी कृ॑धुक॒र्णी च॑ क्रोशतु। वि॑के॒शी पुरु॑षे ह॒ते र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ति॒ऽघ्ना॒ना । अ॒श्रु॒ऽमु॒खी । कृ॒धु॒ऽक॒र्णी । च॒ । क्रो॒श॒तु॒ । वि॒ऽके॒शी । पुरु॑षे । ह॒ते । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतिघ्नानाश्रुमुखी कृधुकर्णी च क्रोशतु। विकेशी पुरुषे हते रदिते अर्बुदे तव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतिऽघ्नाना । अश्रुऽमुखी । कृधुऽकर्णी । च । क्रोशतु । विऽकेशी । पुरुषे । हते । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रतिघ्नाना) [शिर आदि] धुनती हुई, (अश्रुमुखी) मुख पर आँसू बहाती हुई, (कृधुकर्णी) मन्द कानोंवाली (च) और (विकेशी) केश बिखरे हुए [शत्रु की माता, पत्नी बहिन आदि] (पुरुषे हते) [अपने] पुरुष के मारे जाने में, (अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (क्रोशतु) रोवे ॥७॥

    भावार्थ

    शूर सेनापति शत्रुओं को ऐसा मारे कि उनकी स्त्रियाँ अति व्याकुल होकर विलाप करें ॥७॥

    टिप्पणी

    ७−(प्रतिघ्नाना) प्रति+हन हिंसागत्योः-शानच्। गमहनजन०। पा० ६।४।९८। उपधालोपः। शिरआद्यङ्गं ताडयन्ती (अश्रुमुखी) वाष्पमुखी (कृधुकर्णी) कृधु ह्रस्वनाम-निघ० २।३। अल्पश्रोत्रा। पटहध्वन्यादिना हतश्रवणसामर्थ्या (च) (क्रोशतु) क्रुश आह्वाने रोदने च। रोदितु (विकेशी) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशयुक्ता (पुरुषे) स्वबन्धौ (हते) मारिते सति (रदिते) रद विलेखने-भावे क्त। विदारणे सति (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते (तव) ॥

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    विषय

    प्रतिघ्नाना-अश्रुमुखी

    पदार्थ

    १. हे (अर्बुदे) = शत्रुओं का संहार करनेवाले सेनापते! (तव रदिते) = [रद विलेखने raid] तेरे द्वारा शत्रुओं का विलेखन-अवदारण होनेपर-तेरे द्वारा आक्रमण किये जाने पर (पुरुषे हते) = अपने पुरुषों के मारे जाने पर शत्रु-स्त्रियाँ (प्रतिघ्नाना) = अपनी-अपनी छाती को पीटती हुई, (अश्रुमुखी) = आँसुओं से व्यास मुखोंवाली (कृधुकर्णी च) = और कर्णाभरणों के त्याग से ह्रस्व कर्णीवाली व मन्द श्रवणशक्तिवाली होती हुई (क्रोशतु) = रोदन करे।

    भावार्थ

    हमारे सेनापति द्वारा शत्रुसैन्य के पुरुषों के संहार होने पर शत्रु-स्त्रियाँ छाती पीटती हुई आँसुओं से व्याप्त मुखोंवाली व मन्द श्रवणवाली चीखती-चिल्लाती दीखें।

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    भाषार्थ

    (अर्बुदे) हे हिंसा करने वाले सेनापति! (तव रदिते) तेरे काटने पर (पुरुष हते) पुरुष के मर जाने पर [उस की पत्नी] (प्रतिघ्नाना) छाती पीटती हुई, (अश्रुमुखी) मुख पर आसुओं वाली, (कृधुकर्णी) हलके कानों वाली, (विकेशी) और बिखरे केशों वाली होकर (क्रोशतु) चिल्लाएं।

    टिप्पणी

    [कृधु= ह्रस्वनाम (निरुक्त ६।१।३), दुःख के कारण कर्णाभूषण उतार लेने पर हलके कानों वाली। रदित = काटना, तलवार, कुल्हाड़े, बाण द्वारा (मन्त्र १)। रदिते= रद्= To split, rend (आप्टे)]

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    हे (अर्बुदे) सेनानायक ! सांप जिस प्रकार थोड़ा सा दांत लगा कर ही पुरुष को मार देता है उसी प्रकार (तव) तेरे (रदिते) थोड़ासा भी प्रहार करके शरीर के क्षत-विक्षत करने पर, (हते पुरुषे) पुरुष के मर जाने पर उसकी स्त्री (प्रतिघ्नाना) अपनी छाती पीटती हुई, (अश्रुमुखी) आंसुओं से मुँह धोती हुई (कृधुकर्णी) खुले कोनों को लिये (विकेशी) अपने बाल खोले (क्रोशतु) रोए, चिल्लाए।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (अर्बुदे तव रदिते) हे विद्युदस्त्र प्रयुक्ता युद्ध करने वाले सेनाध्यक्ष तेरे रदन-शस्त्रास्त्रों द्वारा शत्रुसेना की काट छांट रूप मर्दन हो जाने पर तथा (पुरुषे हते) शत्रु सेना के पुरुष-पौरष बल युक्त शत्रु सेनानायक के हत हो जाने पर उसकी सेना (प्रतिघ्नाना) जैसे पति के हत हो जाने पर, प्रतिघात मानसिक घात शोक को आप्त (अश्रुमुखी) आसुओं से पूर्ण मुख वाली (च) और (कृधुकर्णी) केवल छिद्रयुक्त कानों वाली भूषण रहित कान के छिद्रों वाली (विकेशी) विरुद्ध केशों वाली - विखरे केशवाली स्त्री की भांति (क्रोशतु) चिल्लावे-विलाप करे ॥७॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    O Commander, when her man is rent and killed by your attack, the widow, beating her breast, her face covered with flowing tears, ears void of rings, her hair dishevelled, would wail over the death of her husband.

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    Translation

    Smiting herself, tear-faced, and crop-eared (?), let her yell with disheveled hair, when thé man is slain, bitten (? rad), O Arbudi, of thee:

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    Translation

    O Arbudi Let the wife of the man killed in your attack, with tearful face, eyes, with wild hair, deprived of ornaments in the ears, beating her breast shrick loudly.

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    Translation

    Beating her breast, with tearful face, let the short-eared, the wild-haired wife shriek loudly when her husband is slain, pierced through by thee, O valiant general!

    Footnote

    Short-eared: Light-eared, wearing no ornaments. Wife, or mother, or sister i.e., a female relative weeps over the death of the male relative.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ७−(प्रतिघ्नाना) प्रति+हन हिंसागत्योः-शानच्। गमहनजन०। पा० ६।४।९८। उपधालोपः। शिरआद्यङ्गं ताडयन्ती (अश्रुमुखी) वाष्पमुखी (कृधुकर्णी) कृधु ह्रस्वनाम-निघ० २।३। अल्पश्रोत्रा। पटहध्वन्यादिना हतश्रवणसामर्थ्या (च) (क्रोशतु) क्रुश आह्वाने रोदने च। रोदितु (विकेशी) अ० १।२८।४। विकीर्णकेशयुक्ता (पुरुषे) स्वबन्धौ (हते) मारिते सति (रदिते) रद विलेखने-भावे क्त। विदारणे सति (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते (तव) ॥

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