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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 6
    ऋषिः - काङ्कायनः देवता - अर्बुदिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
    1

    स॒प्त जा॒तान्न्यर्बुद उदा॒राणां॑ समी॒क्षय॑न्। तेभि॒ष्ट्वमाज्ये॑ हु॒ते सर्वै॒रुत्ति॑ष्ठ॒ सेन॑या ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒प्त । जा॒तान् । नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒ । उ॒त्ऽआ॒राणा॑म् । स॒म्ऽई॒क्षय॑न् । तेभि॑: । त्वम् । आज्ये॑ । हु॒ते । सर्वै॑: । उत् । ति॒ष्ठ॒ । सेन॑या ॥११.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सप्त जातान्न्यर्बुद उदाराणां समीक्षयन्। तेभिष्ट्वमाज्ये हुते सर्वैरुत्तिष्ठ सेनया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सप्त । जातान् । निऽअर्बुदे । उत्ऽआराणाम् । सम्ऽईक्षयन् । तेभि: । त्वम् । आज्ये । हुते । सर्वै: । उत् । तिष्ठ । सेनया ॥११.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 9; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] (उदाराणाम्) बड़े उपायों में से (सप्त) सात (जातान्) उत्तम [उपायों अर्थात् राज्य के अङ्गों] को (समीक्षयन्) दिखाता हुआ तू (तेभिः सर्वैः) उन सब [शत्रुओं] के साथ [जैसे अग्नि में] (आज्ये हुते) घी चढ़ने पर, (त्वम्) तू (सेनया) [अपनी] सेना सहित (उत् तिष्ठ) खड़ा हो ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे अग्नि घी डालने से प्रचण्ड होता है, वैसे ही शत्रु से भारी युद्ध ठनने पर सब प्रजा गण राज्य के सात अङ्गों को दृढ़ करके टूट पड़ें ॥६॥राज्य के सात अङ्ग शब्दकल्पद्रुम में इस प्रकार हैं−[स्वाम्यमात्यश्च राष्ट्रञ्च दुर्गं कोपो बलं सुहृत्। परस्परोपकारीदं सप्ताङ्गं राज्यमुच्यते ॥१॥] १-स्वामी अर्थात् राजा, और २-मन्त्री और ३-राजधानी आदि राज्य, ४-गढ़, ५-सुवर्ण आदि कोष, ६-सैन्य दल, और ७-मित्र, परस्पर उपकारी सात अङ्गोंवाला यह राज्य कहा जाता है ॥

    टिप्पणी

    ६−(सप्त) सप्तसंख्याकान् स्वाम्यमात्यादीन् राज्योपायान् (जातान्) प्रशस्तान् (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (उदाराणाम्) म० १। गम्भीराणामुपायानां मध्ये (समीक्षयन्) ईक्ष दर्शने-णिच् शतृ। सम्यग् दर्शयन्। प्रकटयन् (तेभिः) तैः शत्रुभिः (त्वम्) (आज्ये) घृते (हुते) अग्नौ प्रक्षिप्ते सति (सर्वैः) समस्तैः (उत्तिष्ठ) (सेनया) ॥

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    विषय

    'सप्त जातान्'

    पदार्थ

    १. हे (न्यर्बुदे) = निश्चय से शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाले सेनानि! (त्वम्) = तू (उदाराणाम्) = विशाल आयोजनाओं का (समीक्षयन्) = शत्रुओं के लिए सन्दर्शन कराता हुआ तथा (सप्त जातान्) = ['स्वाम्यमात्यसुहत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च' राज्यांगानि प्रकृतयः] 'स्वामी, अमात्य, सहत, कोश, राष्ट्र, दुर्ग तथा सैन्य' रूप सातों विकसित हुए-हुए राज्यांगों को दिखलाता हुआ, (तेभिः सर्वैः) = उन सब राज्यांगों के साथ तथा (सेनया) = विशेषकर सेना के साथ (आज्ये हुते) = युद्धाग्नि में घृत पड़ जाने पर-युद्ध के भड़क उठने पर (उत्तिष्ठ) = उठ खड़ा हो।

    भावार्थ

    युद्ध की परिस्थिति में राज्य के सभी अंग, विशेषतया सेना उसमें पूर्ण योग देनेवाली हो तभी विजय सम्भव होती है।

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    भाषार्थ

    (न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि सेनाधीश्वर (४) (त्वम्) तू (उदाराणाम्) उदार भावों के (सप्त जातान्) सात उत्पत्ति स्थानों का (समीक्षयन) सम्यक्-ईक्षण या विचार करता हुआ, (आज्ये हुते) पर राष्ट्र में प्रवेश के समय यज्ञ में आज्याहुति दे कर, (तेभिः सर्वैः) उन सब उत्पत्ति स्थानों के साथ, और (सेनया) पर राष्ट्र की सेना के साथ (उतिष्ठ) अपने राष्ट्र का उत्थान कर, समुन्नति कर।

    टिप्पणी

    [सप्त जातान् = राज्य सप्ताङ्ग होता है, “स्वाम्यमात्मसुहृत्कोशराष्ट्रदुर्गबलानि च" अर्थात् राजा, मन्त्रिगण, मित्र राज्य, खजाना, राष्ट्र, किले और सैन्यबल। इन सात में से किस द्वारा विजित राष्ट्र के लिये उदारता प्रदर्शित करनी चाहिये इस पर सम्यक् विचार कर के, इन सब उदार भावों के साथ, पर-राष्ट्र में प्रवेश कर और शुभ-यज्ञ में घृताहुतियां देकर न्यर्बुदि, विजित राष्ट्र की सेना की भी उन्नति करता हुआ उत्थान करे, अपनी समुन्नति करे]।

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    विषय

    महासेना-संचालन और युद्ध।

    भावार्थ

    हे (न्यर्बुद) महा सेनापते ! तू अपने (उदाराणाम्) विशाल, ऊपर उठने वाले या ऊपर से प्रहार करने वाले महायन्त्रों में से (सप्त) सात प्रकार के (जातान्) उत्पातों को (समीक्षयन्) दिखाता हुआ (आज्ये हुते) अग्नि में घी पड़ चुकने पर जैसे अग्नि प्रचण्ड हो जाती है उसी प्रकार युद्ध की अग्नि के प्रचण्ड हो जाने पर (तेभिः सर्वैः) उन सब महास्त्रों सहित (सेनया) अपनी सेना से (उत्तिष्ठ) उठ खड़ा हो। अपनी सेना की धागे की दिशा में शत्रु है, उस दिशा को छोड़ शेष सातों दिशाओं में सात महास्त्रों की योजना करे और युद्ध छिड़ जाने पर सेना सहित महास्त्रों से लदे।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥

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    मन्त्रार्थ

    (न्यर्बुदे) हे स्फोटक पदार्थो के अस्त्रप्रयोक्ता सेनानायक ! तू (उदाराणाम्) ऊपर स्फुटित होने वाले धूम धूल फेंकने वाले सूक्ष्म अस्त्रों के मध्य में से (जातान् सप्त) प्रकट या प्रसिद्ध हुए सात धूम, धूलि, विषवात, वाष्प, वृष्टि, अग्नि, लोह आदि धातु कणों के फैकने वालों को (समीक्षयन्) लक्ष्य में रखता हुआ (तभिः सर्वैः–आज्ये हुते) उन सब स्फोटक अस्त्र प्रयोगों से आज्य-वज्र-स्फोटक पदार्थ हुत-प्रयुक्त हो जाने पर शत्रु से रिक्त स्थान की ओर या शत्रुसेना परास्त हो जाने पर "वज्रो वा आज्यं वज्रेणैवैतद् रक्षांसि नाष्ट्रा अपहन्ति” (शत० ७।४।१।३४ (सेनया उत्तिष् ) अपनी सेना के साथ उठ चढ़ाई कर ॥६॥

    विशेष

    ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    War, Victory and Peace

    Meaning

    O Nyarbudi, examine the seven newly developed explosive thunder arms, and when the ghrta has been offered into the fire, rise with them and march with the army.

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    Translation

    Presenting to view, O nyarbudi, the seven kinds of specters, with them all do thou stand up, when the bitter is offered, with the army.

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    Translation

    O Nyarbudi, the sub-commanding chief! You seeing the seven kinds of the explosive weapons, after the molten butter having been offered (as oblations in the fire of Yajna) with the army equipped with all these arms, stand up (to invade).

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    Translation

    O ever-enterprising general, exhibiting to the enemy, the seven well-known sources of strength of the state, rise with all of them and with thy army, as fire rises when butter is poured into it!

    Footnote

    The seven pillars of the state have been mentioned in the Shabd Kalpa Druma as (1) King (2) Minister (3) Grandeur of the capital (4) Citadel (5) Treasury (6) Military strength (7) Friendly nations.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ६−(सप्त) सप्तसंख्याकान् स्वाम्यमात्यादीन् राज्योपायान् (जातान्) प्रशस्तान् (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (उदाराणाम्) म० १। गम्भीराणामुपायानां मध्ये (समीक्षयन्) ईक्ष दर्शने-णिच् शतृ। सम्यग् दर्शयन्। प्रकटयन् (तेभिः) तैः शत्रुभिः (त्वम्) (आज्ये) घृते (हुते) अग्नौ प्रक्षिप्ते सति (सर्वैः) समस्तैः (उत्तिष्ठ) (सेनया) ॥

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