अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 13
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
मुह्य॑न्त्वेषां बा॒हव॑श्चित्ताकू॒तं च॒ यद्धृ॒दि। मैषा॒मुच्छे॑षि॒ किं च॒न र॑दि॒ते अ॑र्बुदे॒ तव॑ ॥
स्वर सहित पद पाठमुह्य॑न्तु । ए॒षा॒म् । बा॒हव॑: । चि॒त्त॒ऽआ॒कू॒तम् । च॒ । यत् । हृ॒दि । मा । ए॒षा॒म् । उत् । शे॒षि॒ । किम् । च॒न । र॒दि॒ते । अ॒र्बु॒दे॒ । तव॑ ॥११.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
मुह्यन्त्वेषां बाहवश्चित्ताकूतं च यद्धृदि। मैषामुच्छेषि किं चन रदिते अर्बुदे तव ॥
स्वर रहित पद पाठमुह्यन्तु । एषाम् । बाहव: । चित्तऽआकूतम् । च । यत् । हृदि । मा । एषाम् । उत् । शेषि । किम् । चन । रदिते । अर्बुदे । तव ॥११.१३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(एषाम्) इन [शत्रुओं] की (बाहवः) भुजाएँ (मुह्यन्तु) निकम्मी हो जावें, (च) और (यत्) जो कुछ (हृदि) हृदय में (चित्ताकूतम्) विचार और सङ्कल्प हैं, (एषाम्) इनका (किं चन) वह कुछ भी, (अर्बुदे) हे अर्बुदि [शूर सेनापति राजन्] (तव) तेरे (रदिते) तोड़ने-फोड़ने पर (मा उत् शेषि) न बचा रहे ॥१३॥
भावार्थ
युद्धविशारद सेनापति की वीरता प्रकट होने पर शत्रुदल और उनके विचार और मनोरथ निष्फल पड़ जावें ॥१३॥
टिप्पणी
१३−(मुह्यन्तु) मूढा निरर्थका भवन्तु (एषाम्) शत्रूणाम् (बाहवः) (चित्ताकूत्तम्) म० १। विचाराणां सङ्कल्पानां च समाहारः (च) (यत्) (हृदि) हृदये (एषाम्) (मा उच्छेषि) शिष्लृ विशेषणे-कर्मणि लुङ्। अवशिष्टं मा भूत् (किंचन) तत् किमपि। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥
विषय
भुजाओं व चित्तों की मूढ़ता
पदार्थ
१. हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहारक सेनापते ! (तव रदिते) = तेरा आक्रमण होनेपर (एषाम्) इन शत्रुओं की (बाहव:) = भुजाएँ विष के आवेश के कारण (मुहान्तु) = मूढ-अपने व्यापार में असमर्थ हो जाएँ, (च) = और इन शत्रुओं के (हृदि) = हृदय में और (यत्) = जो (चित्ताकूतम्) = चित्त में सङ्कल्प हैं, वह भी मूढ़ व विस्मृत हो जाए। (एषाम्) इन शत्रुओं का (किंचन) = कुछ भी रथ, तुरग, हस्ति आदि लक्षण बल[सैन्य] (मा उच्छेषि) = मत अवशिष्ट हो।
भावार्थ
हे सेनापते! तू शत्रुओं की भुजाओं व चित्तों को मूढ़ बना दे। शत्रुओं का सब सैन्य तेरे द्वारा समाप्त कर दिया जाए।
भाषार्थ
(एषाम्) इन शत्रुओं की (बाहवः) बाहुएं (मुह्यन्तु) मूढ़ हो जांय, कर्तव्य रहित हो जावें, इन के (हृदि) हृदयों में (यत्) जो (चित्ताकूतम) विचार और संकल्प है वह (मुह्यतु) कर्तव्याकर्तव्य से शून्य हो जाय। (एषाम्) इन का (किंचन) कुछ भी (मा उच्छेषि) शेष न बचे, (अर्बुदे) हे शत्रुघातक सेनापति! (तव रदिते) तुझ द्वारा शत्रुओं के कट जाने पर।
टिप्पणी
[मुह्यन्तु = "अप्वा" द्वारा चित्तों के मूढ़ हो जाने पर, संज्ञाशून्य हो जाने पर प्रतिमोहयन्ती (मन्त्र १२ की व्याख्या]।
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे) सेनापते ! महानाग के समान महाभयंकर (तव रदिते) तेरे काट लेने पर (एषां बाहवः) इनकी बाहवें (मुह्यन्तु) जकड़ जावें (यद् हृदि) जो हृदय में (चित्ताकूतं च) चेतना और संकल्प विकल्प हैं वे भी मूढ़ हो जांय (एषाम्) इनका (किंचन) कुछ भी (मा उत् शेषि) न बचा रहे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अर्बुदे तब रदिते) हे विद्युदस्त्र प्रयोक्ता) सेनाध्यक्ष ! तेरे प्रहार होने पर (एषाम्) इन शत्रुत्रों के (बाहवः) बाहु (च) और (हृदि) हृदय में (यत्) जो (चित्ताकृतम) चित्त का सङ्कल्प है वह भी सब (मुह्यन्तु) मुग्ध हो जावे-जड हो जाये (एषां किंचन) इनका कुछ भी (मा-उच्छेषि) मत बचा लव शक्तिहीन कर दें ॥१३॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Supreme Commander, let their arms be paralysed, let their mind and morale at heart be stupefied, spare none and nothing of them, O Commander, under the force of your attack.
Translation
Let their arms be confounded, and what thought and design is in their heart; let not anything of them be left; in case of thy bite, O Arbudi.
Translation
In your slaughter, O Arbudi, let the arms of those men grow faint, let be weak and dull the purpose and plan in their hearts. Let not any one of them be left.
Translation
Let these men's arms grow faint and weak, dull be the purpose of their heart; and let not aught of them be left when thou, O valiant general hast pierccd them.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१३−(मुह्यन्तु) मूढा निरर्थका भवन्तु (एषाम्) शत्रूणाम् (बाहवः) (चित्ताकूत्तम्) म० १। विचाराणां सङ्कल्पानां च समाहारः (च) (यत्) (हृदि) हृदये (एषाम्) (मा उच्छेषि) शिष्लृ विशेषणे-कर्मणि लुङ्। अवशिष्टं मा भूत् (किंचन) तत् किमपि। अन्यद् गतम्-म० ७ ॥
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