अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 3
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - परोष्णिक्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
उत्ति॑ष्ठत॒मा र॑भेथामादानसंदा॒नाभ्या॑म्। अ॒मित्रा॑णां॒ सेना॑ अ॒भि ध॑त्तमर्बुदे ॥
स्वर सहित पद पाठउत् । ति॒ष्ठ॒त॒म् । आ । र॒भे॒था॒म् । आ॒दा॒न॒ऽसं॒दा॒नाभ्या॑म् । अ॒मित्रा॑णाम् । सेना॑: । अ॒भि । ध॒त्त॒म् । अ॒र्बु॒दे॒ ॥११.३॥
स्वर रहित मन्त्र
उत्तिष्ठतमा रभेथामादानसंदानाभ्याम्। अमित्राणां सेना अभि धत्तमर्बुदे ॥
स्वर रहित पद पाठउत् । तिष्ठतम् । आ । रभेथाम् । आदानऽसंदानाभ्याम् । अमित्राणाम् । सेना: । अभि । धत्तम् । अर्बुदे ॥११.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(अर्बुदे) हे अर्बुदि ! [हे शूर सेनापति राजन् और प्रजागण] तुम दोनों (उत् तिष्ठतम्) खड़े हो जाओ, (आदानसन्दानाभ्याम्) दोनों पकड़ने और बाँधने के यन्त्रों से [युद्ध] (आ रभेथाम्) आरम्भ करो, और (अमित्राणाम्) वैरियों की (सेनाः) सेनाओं को (अभि धत्तम्) तुम दोनो बाँध लो ॥३॥
भावार्थ
सेनापति राजा और सब प्रजागण मिलकर वीरता के साथ अनेक यन्त्रसमूहों से शत्रुओं को घेर लेवें ॥३॥
टिप्पणी
३−(उत्तिष्ठतम्) उच्चलतम् (आरभेथाम्) युद्धमुपक्रमेथाम् (आदानसन्दानाभ्याम्) आदीयते-गृह्यत अनेनेति आदानं ग्रहणयन्त्रम्, सन्दीयते बध्यते अनेनेति बन्धनयन्त्रम्। ताभ्यां यन्त्राभ्याम् (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सेनाः) (अभिधत्तम्) युवां बध्नीतम् (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते त्वम् हे राजागण त्वं च युवाम् ॥
विषय
आदान-संदान
पदार्थ
१. हे (अर्बुदे) = शत्रुसंहार करनेवाले सेनापते ! तथा (न्यर्बुदे) = [मन्त्र ४ से उद्धृत] निश्चय से शत्रु के प्रति जानेवाले सेनापते! आप (उत्तिष्ठतम्) = उठ खड़े होओ, (आरभेथाम्) = [राभस्य कार्योपक्रम:] शत्रुसंहार का कार्य प्रारम्भ करो॥ (आदान-संदानाभ्याम्) = [आदीयते अनेन, ग्रहणार्थ रज्जुयन्त्रम् आदानम्, सन्दीयते बध्यते अनेन सन्दानम्] आदान व सन्दानरूप रजुयन्त्रों से (अमित्राणाम्) = शत्रुओं की (सेना:) = सेनाओं को (अभिधत्तम्) = बाँध डालो।
भावार्थ
मुख्य सेनापति [अर्बुदि] तथा अधीन सेनापति [न्यर्बुदि] मिलकर शत्रुसेनाओं को पाशरज्जु व बन्धनरज्जुओं से जकड़ डालें।
भाषार्थ
(अर्बुदे) हे अर्बुदि! और न्यर्बुदि! (४) तुम दोनों (उत्तिष्ठतम्) दोनों (उत्तिष्ठतम्) उठो, (आरभेथाम्) और युद्ध आरम्भ करो, (आदानसंदानाभ्याम्) पकड़ने तथा बान्धने के द्वारा, (अमित्राणाम् सेनाः) शत्रुओं की सेनाओं को (अभिधत्तम्) रस्सियों और शृङ्खलाओं द्वारा बान्धो।
टिप्पणी
[आदान = पकड़ना। सन्दान = बान्धना। अभिधत्तम्; अभिधानी= रस्सी, यथा “अश्वाभिधानीमादत्ते" (ते० सं० ५/१/२/१)]
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (अर्बुदे) अर्बुदे ! लक्षदण्डपते ! और हे न्यर्बुदे ! दश लक्षसेनापते ! तुम दोनों (उत्तिष्टतम्) उठो ! (आदानसंदानाभ्याम्) आदान और संदान, घर और पकड़ द्वारा (आरभेथाम्) अपना कार्य शुरु करो. शत्रुओं को पकड़ो। और इस प्रकार (अमित्राणाम्) शत्रुओं की (सेनाः) सेनाओं को (अभि धत्तम्) बांध लो।
टिप्पणी
‘सेनाम्’ सायणाभिमतः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(अबु दे-उत्तिष्ठतम्) हे र्बुदे ! विद्युदस्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष एवं न्यर्बुदे! 'न्यर्बुदे द्विवचन प्रयोगात्' स्फोटक पदार्थ प्रयोक्ता सेनानायक तुम दोनों उठ खडे हो प्रो (आरभेथाम्) युद्ध आरम्भ कर दो (आदान सन्दानाभ्याम्) छेदन- चूर्ण करने वाले तथा तोड 'फोडने वाले साधनों द्वारा "दो अवखण्डने" [दिवादि०] (अमित्राणां सेनाः) शत्रुओं की सेनाओं को (अभिधत्तम्) वश में धारण करो- अधिकार में ले लो ॥३॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अबुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
O Arbudi, O Nyarbudi, officer in command and supreme commander, rise and take on the enemy forces, hold them up and force them to surrender, Take them into captivity.
Translation
Stand ye (two) up, take ye hold; with tying up, with tying together, gird ye the armies of our enemies, O Arbudi.
Translation
O Commanding Chief and sub-Commanding Chief, you both arise and start your work with fettering and binding fast (the enemies) O Arbudi! You assail the armies of our enemies.
Translation
Rise both of you: begin the battle with fettering and binding fast. Assail, both of you, Arbudi, the armies of our enemies.
Footnote
Both of You: Arbudi, the Commander of a lakh of soldiers. Nyarbudi, the Commander of a million soldiers.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(उत्तिष्ठतम्) उच्चलतम् (आरभेथाम्) युद्धमुपक्रमेथाम् (आदानसन्दानाभ्याम्) आदीयते-गृह्यत अनेनेति आदानं ग्रहणयन्त्रम्, सन्दीयते बध्यते अनेनेति बन्धनयन्त्रम्। ताभ्यां यन्त्राभ्याम् (अमित्राणाम्) शत्रूणाम् (सेनाः) (अभिधत्तम्) युवां बध्नीतम् (अर्बुदे) म० १। हे शूर सेनापते त्वम् हे राजागण त्वं च युवाम् ॥
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