अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 9/ मन्त्र 19
ऋषिः - काङ्कायनः
देवता - अर्बुदिः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - शत्रुनिवारण सूक्त
1
प्रब्ली॑नो मृदि॒तः श॑यां ह॒तोऽमित्रो॑ न्यर्बुदे। अ॑ग्निजि॒ह्वा धू॑मशि॒खा जय॑न्तीर्यन्तु॒ सेन॑या ॥
स्वर सहित पद पाठप्रऽब्ली॑न: । मृ॒दि॒त: । श॒या॒म् । ह॒त: । अ॒मित्र॑: । नि॒ऽअ॒र्बु॒दे॒ । अ॒ग्नि॒ऽजि॒ह्वा: । धू॒म॒ऽशि॒खा: । जय॑न्ती: । य॒न्तु॒ । सेन॑या ॥११.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रब्लीनो मृदितः शयां हतोऽमित्रो न्यर्बुदे। अग्निजिह्वा धूमशिखा जयन्तीर्यन्तु सेनया ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽब्लीन: । मृदित: । शयाम् । हत: । अमित्र: । निऽअर्बुदे । अग्निऽजिह्वा: । धूमऽशिखा: । जयन्ती: । यन्तु । सेनया ॥११.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
राजा और प्रजा के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(न्यर्बुदे) हे न्यर्बुदि ! [निरन्तर पुरुषार्थी प्रजागण] (प्रब्लीनः) घिरा हुआ, (मृदितः) कुचला हुआ (हतः) मारा गया (अमित्रः) वैरी (शयाम्) सो जावे। (अग्निजिह्वाः) अग्नि की जीभें [लपटें] और (धूमशिखाः) धुएँ की चोटियाँ [आग्नेय शस्त्रों से] (सेनया) सेना द्वारा (जयन्तीः) जीतती हुई (यन्तु) चलें ॥१९॥
भावार्थ
धर्मात्माओं के सेना दल आग्नेय आदि शस्त्रों को जल, थल और आकाश से इस प्रकार छोड़ें कि शत्रु लोग रुन्ध-खुँद कर मर जावें ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(प्रब्लीनः) व्ली स्वीकरणे वेष्टने गतौ च-क्त, वस्य बः। वेष्टितः। आच्छादितः (मृदितः) संपिष्टगात्रः (शयाम्) लोपस्त आत्मनेपदेषु। पा० ७।१।४१। तलोपः। शेताम् (हतः) नाशितः (अमित्रः) पीडकः शत्रुः (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (अग्निजिह्वाः) आग्नेयशस्त्राणामग्नेर्ज्वालाः (धूमशिखाः) धूमस्य शिखररूपाः समुच्चयाः (जयन्तीः) शत्रुबलं जयन्त्यः (यन्तु) गच्छन्तु (सेनया) ॥
विषय
अग्निजिह्वाः धूमशिखा
पदार्थ
१. हे (न्यर्बुदे) = निश्चय से शत्रुओं पर आक्रमण करनेवाले सेनापते ! (प्रब्लीन:) = [ब्ली वेष्टने] घिरा हुआ (मृदित:) = पिसे हुए गात्रोंवाला (हत:) = गतप्राण हुआ-हुआ (अमित्र:) = शत्रु (शयाम्) = भूमि पर सोनेवाला हो। (अग्निजिह्वाः) = आग की ज्वालाएँ (धूमशिखा:) = धूम के प्ररोहोंवाली (सेनया जयन्ती:) = सेना के साथ शत्रुओं को पराजित करती हुई (यन्तु) = गतिवाली हों।
भावार्थ
हे सेनापते ! तू आग्नेयास्त्रों का प्रयोग करती हुई सेना के साथ विजय को प्राप्त हो।
भाषार्थ
(न्यर्बुदे) हे नितरां शत्रुघातक सेनाधीश! (अमित्रः) शत्रुगण (प्रब्लीनः) घिरा हुआा, (मृदितः) कुचला हुआ, और (हतः) मरा हुआ (शयाम्) भूमि पर सो जाय। (अग्निजिह्वाः) अग्नियों की ज्वालाओं वाले इषु, (धूमशिखाः) तथा धूएं की शिखाओं वाले इषु, (जयन्तीः) विजय पाते हुए, (सेनया) हमारी सेना के साथ (यन्तु) युद्ध भूमि में चलें।
टिप्पणी
[प्रब्लीनः = प्र + ब्ली (वरणे, क्र्यादि)। अग्निजिह्वाः, ध्रूमशिखा ="धू॒मम॒ग्निं प॑रा॒दृश्या॒ऽमित्रा॑ हृ॒त्स्वा द॑धतां भ॒यम् ॥” अथर्व० (८/८/२) अर्थात् धूम और अग्नि को दूर से देख कर शत्रु, हृदयों में भय धारण करें। तथा "धूमाक्षी [सेना] अथर्व (११।१०।७), अर्थात् धूम द्वारा आवृत आंखों वाली शत्रु सेना। अग्निजिह्वाः= अग्नेजिह्वाः याभ्यः ता इषवः। अग्नि को "सप्तजिह्व२" कहा है, (मुण्डक उप. मुण्डक १, खण्ड २, सन्दर्भ ४)। धूम शिखाः = धूमस्य शिखाः याभ्यः ताः इषवः। यह आग्नेयास्त्र तथा धूमास्त्र है।] [१. "इषु" के सम्बन्ध में कहा है कि "सुपर्ण वस्ते मृगो अस्या दन्तोः" (ऋ० ६।७५।११)। निरुक्त में कहा है कि "मृगमयो अस्या दन्तः" (९।२।१८; खण्ड १४), अर्थात् इषु का दन्त मृगमय है, मृग के सींग द्वारा निर्मित है। इस लिये इषु के अग्रभाग में लगी तीक्ष्ण वस्तु को भी "दन्त" कहा है। २. सात जिह्वाओं सात ज्वालाओं वाली अग्नि।]
विषय
महासेना-संचालन और युद्ध।
भावार्थ
हे (न्यर्बुदे) न्यर्बुदे ! (अमित्रः) शत्रु (प्रब्लीनः) चारों सरफ से घेरा जाय, (मृदितः) कुचला जाय, (हतः शयाम्) और मारा आकर भूमि पर लेट जाय। सेना के साथ (अग्निजिह्वाः) आग की जिह्वाएं, लपटें, (धूमशिखाः) धूएं की चोटियां उड़ाती हुई (जयन्तीः यन्तु) विजय करती हुई धागे बढ़ें।
टिप्पणी
‘प्रञ्लीनो’ इति सायणाभिमतः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कांकायन ऋषिः। मन्त्रोक्ता अर्बुदिर्देवता। १ सप्तपदा विराट् शक्वरी त्र्यवसाना, ३ परोष्णिक्, ४ त्र्यवसाना उष्णिग्बृहतीगर्भा परा त्रिष्टुप् षट्पदातिजगती, ९, ११, १४, २३, २६ पथ्यापंक्तिः, १५, २२, २४, २५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी, १६ व्यवसाना पञ्चपदा विराडुपरिष्टाज्ज्योतिस्त्रिष्टुप्, १७ त्रिपदा गायत्री, २, ५–८, १०, १२, १३, १७-२१ अनुष्टुभः। षडविंशर्चं सूक्तम्॥
मन्त्रार्थ
(न्यर्बुदे) हे स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता सेनानायक (सेनया) अपनी सेना द्वारा (प्रब्लीन) घेरा हुआ "ली वरणे" (क्रयादि०) (मृदित:) मसला हुआ (हतः) मारा हुआ (अमित्रः) शत्रु (शयाम् ) सो जावे “लोपस्त आत्मनेपदेषु (अष्टा० ७।१।४१) (अग्निजिह्राः) सेना द्वारा अस्त्रों से फेंकी हुई अग्नि की ज्वालाएं (धूमशिखा:) धूम की शिखाएं (जयन्ती:) जय प्राप्त करती हुई (यन्तु) चलें ॥१६॥
विशेष
ऋषिः - काङ्कायनः (अधिक प्रगतिशील वैज्ञानिक) "ककि गत्यर्थ" [स्वादि०] कङ्क-ज्ञान में प्रगतिशील उससे भी अधिक आगे बढा हुआ काङ्कायनः। देवता-अर्बुदि: "अबु दो मेघ:" [निरु० ३|१०] मेघों में होने वाला अर्बुदि-विद्युत् विद्युत का प्रहारक बल तथा उसका प्रयोक्ता वैद्युतास्त्रप्रयोक्ता सेनाध्यक्ष “तदधीते तद्वेद” छान्दस इञ् प्रत्यय, आदिवृद्धि का अभाव भी छान्दस । तथा 'न्यर्बु''दि' भी आगे मन्त्रों में आता है वह भी मेघों में होने वाला स्तनयित्नु-गर्जन: शब्द-कडक तथा उसका प्रयोक्ता स्फोटकास्त्रप्रयोक्ता अर्बुदि के नीचे सेनानायक न्यर्बुदि है
इंग्लिश (4)
Subject
War, Victory and Peace
Meaning
Fallen, crushed, dead, let the enemy lie and sleep, O Nyarbudi, Supreme Commander, and let the flames of fire and columns of smoke with the army, victorious, move forward.
Translation
Let our enemy lie squelched, crushed, slain, O Nyarbudi; let - tongues of fire, tufts of smoke, go conquering with the army.
Translation
O Nyarbudi I let the enemy assailed, crushed and slain below and let the wings with tongues of fire and the crest of smokes go conquering with army.
Translation
O ever-enterprising general, let the surrounded, crushed, smitten foeman lie low. Let fiery warlike instruments and weapons emitting smoke go conquering with our host!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(प्रब्लीनः) व्ली स्वीकरणे वेष्टने गतौ च-क्त, वस्य बः। वेष्टितः। आच्छादितः (मृदितः) संपिष्टगात्रः (शयाम्) लोपस्त आत्मनेपदेषु। पा० ७।१।४१। तलोपः। शेताम् (हतः) नाशितः (अमित्रः) पीडकः शत्रुः (न्यर्बुदे) म० ४। हे निरन्तरपुरुषार्थिन् प्रजागण (अग्निजिह्वाः) आग्नेयशस्त्राणामग्नेर्ज्वालाः (धूमशिखाः) धूमस्य शिखररूपाः समुच्चयाः (जयन्तीः) शत्रुबलं जयन्त्यः (यन्तु) गच्छन्तु (सेनया) ॥
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