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अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 24
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त
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    दे॒वा व॒शाम॑याच॒न्यस्मि॒न्नग्रे॒ अजा॑यत। तामे॒तां वि॑द्या॒न्नार॑दः स॒ह दे॒वैरुदा॑जत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒वा: । व॒शाम् । अ॒या॒च॒न् । यस्मि॑न् । अग्रे॑ । अजा॑यत । ताम् । ए॒ताम् । वि॒द्या॒त् । नार॑द: । स॒ह । दे॒वै: । उत् । आ॒ज॒त॒ ॥४.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवा वशामयाचन्यस्मिन्नग्रे अजायत। तामेतां विद्यान्नारदः सह देवैरुदाजत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देवा: । वशाम् । अयाचन् । यस्मिन् । अग्रे । अजायत । ताम् । एताम् । विद्यात् । नारद: । सह । देवै: । उत् । आजत ॥४.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 24
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    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (देवाः) विजय चाहनेवालों ने (वशाम्) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] को [उस परमेश्वर से] (अयाचन्) माँगा है, (यस्मिन्) जिस [परमेश्वर] में (अग्रे) पहिले ही पहिले (अजायत) वह उत्पन्न हुई। (ताम्) उस [दूर वर्तमान] और (एताम्) इस [समीप वर्तमान वेदवाणी] को (नारदः) नारद [नीति, यथार्थ ज्ञान देनेवाला विद्वान्] (विद्यात्) जान लेवे, वह [वेदवाणी] (देवैः सह) दिव्य गुणों के सहित (उत् आजत) उदय हुई है ॥२४॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की वाणी वेद को विद्वानों ने भक्तिपूर्वक परमेश्वर से पाया है, उस वेदवाणी को प्रत्येक विद्वान् जानकर उसके दिव्य गुणों का प्रकाश करे ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(देवाः) विजिगीषवः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (अयाचन्) याचितवन्तः परमेश्वरमिति शेषः (यस्मिन्) परमेश्वरे (अग्रे) आदौ (अजायत) प्रादुरभवत् (ताम्) दूरस्थाम् (एताम्) समीपस्थाम् (विद्यात्) जानीयात् (नारदः) म० १६। नीतिप्रदो विद्वान् (सह) (देवैः) दिव्यगुणैः (उत् आजत) अज गतिक्षेपणयोः−लङ्, आत्मनेपदं छान्दसम्। उदाजत उदयं प्रापत् ॥

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    विषय

    नारदः

    पदार्थ

    १. (यस्मिन्) = जिसमें (अग्ने अजायत) = सबसे प्रथम अथवा सृष्टि के प्रारम्भ में इस वेदवाणी का प्रादुर्भाव हुआ, (देवा:) = देवों ने (वशाम् अयाचन्) = उनसे इस वेदवाणी की याचना की। प्रभु ने सष्टि के आरम्भ में 'अग्नि' आदि के हृदयों में इस वेदवाणी का प्रादुर्भाव किया। उनसे अन्य देवों ने इसकी याचना की और इसप्रकार गुरु-शिष्य परम्परा से इसका ज्ञान संसार में प्रसृत हुआ। २. (ताम् एताम्) = सृष्टि के प्रारम्भ में दी गई इस वेदवाणी को (विद्यात्) = मनुष्य जानता है और (नार-द:) = नारद बनता है-नर-सम्बन्धी इन्द्रियों, मन व बुद्धि को शुद्ध करनेवाला बनता है [नरसम्बन्धिनं नारं दायति]। यह (देवैः सह) = दिव्य गुणों के साथ सम्पृक्त हुआ-हुआ (उद् आजत) = उत्कृष्ट मार्ग पर गतिवाला होता है।

    भावार्थ

    प्रभु ने वेदवाणी का प्रादुर्भाव अग्नि आदि के हृदयों में किया। उनसे अन्य देवों ने इस वेदज्ञान को प्राप्त किया। वेदज्ञान द्वारा वे शुद्ध इन्द्रिय व प्रशस्त मन, बुद्धिवाले बने और दिव्यगुणों के साथ उत्कृष्ट मार्ग पर गतिवाले हुए।

     

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    भाषार्थ

    (देवाः) देवों ने (वशाम्) वेदवाणी की (अयाचन्) याचना उस से की (यस्मिन्) जिस किसी व्यक्ति में (अग्रे) प्रथम (अजायत) वेदवाणी प्रकट हुई। (नारदः) नर-नारी समाज को शुद्ध करने वाला वह व्यक्ति (ताम्) उस वशा के स्वरूप को (विद्यात्) जान ले। (देवैः सह) राष्ट्र के देवों के साथ मिल कर वह व्यक्ति (एताम्) इस वशा अर्थात् वेदवाणी को (उदाजत) समुन्नत करता है। "अग्रे अजायत" देखो (मन्त्र १४)

    टिप्पणी

    [जिस किसी व्यक्ति में वेदप्रचार की अभिव्यक्ति प्रथम हो उस की सहायता सभी देवकोटि के विद्वान् कर के वेदविद्या की समुन्नति में सहयोग दें। नारदः=नार (नर नारियों का समाज)+द(दैप शोधने)]।

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    विषय

    ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (यस्मिन्) जिस पुरुष के पास (अग्रे) प्रथम यह वशा (अजायत) उत्पन्न हुई (देवाः) देवों ने उससे ही (वशाम् अयाचत्) ‘वशा’ को मांगा। (नारदः विद्यात्) नारद पुरुषों का हितकारी विद्वान् तो यही जाने कि उसने (ताम् एताम्) उस वशा को (देवैः सह) देवों के साथ ही (उद् आजत) हांक कर कर दिया था।

    टिप्पणी

    (तृ०) ‘विद्वान् इति लुडविग् कामित’।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha

    Meaning

    Devas, divine souls, at the earliest prayed and asked for Vasha, universal knowledge and speech, of that Omniscient Spirit in which it first emerged and manifested in thought and Word at the dawn of creation. And that very knowledge, thought and Word, Narada, the man of knowledge and love for humanity, along with other enlightened souls, ought to advance in human society.

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    Translation

    The gods asked the cow (of him) in whose possession she was first born; that same one may Narada know; together with the gods he drove her away.

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    Translation

    In whose possession this cow is first produced, the Davas, beg her from him. The cow says Narada, the learned man, flourishes with these Devas.

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    Translation

    The learned begged the Vedic knowledge from God, in Whom it already existed. A man of learning should know that this Vedic knowledge has been revealed, full of lofty ideas.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(देवाः) विजिगीषवः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (अयाचन्) याचितवन्तः परमेश्वरमिति शेषः (यस्मिन्) परमेश्वरे (अग्रे) आदौ (अजायत) प्रादुरभवत् (ताम्) दूरस्थाम् (एताम्) समीपस्थाम् (विद्यात्) जानीयात् (नारदः) म० १६। नीतिप्रदो विद्वान् (सह) (देवैः) दिव्यगुणैः (उत् आजत) अज गतिक्षेपणयोः−लङ्, आत्मनेपदं छान्दसम्। उदाजत उदयं प्रापत् ॥

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